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प्रितिपाल सिंह भारतीय फील्ड़ हॉकी खिलाड़ी है। उन्होंने ओलंपिक खेल में तीन बार भाग लिया, और तीनों बार पदक जीते। फील्ड़ हॉकी के क्षेत्र में उनका योगदान बहुमूल्य है। उनके इस योगदान को मान्यता देते हुए, भारतीय सरकार के युवा और खेल मंत्रालय ने सन १९६१ में इन्हें अर्जुन पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंप्रितिपाल सिंह का जन्म २८ जनवरी १९३२ को अविभाजित भारत के ननकाना साहेब में हुआ। उनके पिता, सरदार वधवा सिंह चांड़ी शिक्षक एवं कृषक थे। भारत विभाजन के बाद, प्रितिपाल पूर्व पुंजाब चले गये। उन्होंने अपना स्नातकोत्तर लुधियाना के अग्रिकल्चर कॉलेज में कृषि के क्षेत्र में पूरा किया। प्रितिपाल सिंह पढ़ाई और खेल, दोनों में ही कुशल थे। वे अपने पढ़ाई में अति-उत्तम अंक प्राप्त कर छात्रवृत्ति के भागी भी हुए थे। [1]
प्रितिपाल सिंह | |||||||||||||||
व्यक्तिगत जानकारी | |||||||||||||||
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जन्म | ननकाना साहब,अविभाजित भारत | ||||||||||||||
मृत्यु | लुधियाना, पुंजाब,भारत | ||||||||||||||
वजन | ७१ | ||||||||||||||
Senior career | |||||||||||||||
वर्ष | टीम | Apps | (Gls) | ||||||||||||
पंजाब पुलिस क्लब | |||||||||||||||
पदक की जानकारी
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खेल जीवन
संपादित करें१९५० से १९५६ की अवधी में कॉलेज हॉकी टीम के साथ इन्हें अनेक पदवियाँ प्रप्त हुई। अपने परिपक्व विकास के लिए उन्हें "रोल ओफ ओनर्स" दिया गया। १९५०-१९५४ में उन्होंने अपने कॉलेज हॉकी टीम को चार बार प्रतिनिधित्व किया और १९५५ में उन्हें कप्तान बनाया गया। अपने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वे पंजाब पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में व्यवसाय करने लगे। यहाँ फील्ड़ हॉकी की उनकी रूचि और तीव्र हुई। यहीं पर मौजूद पंजाब पुलिस क्लब के साथ उनका हॉकी खेलना प्रारंभ हुआ। [1] १९५८ में भारतीय फील्ड़ हॉकी टीम में शामिल उगांड़ा, केन्या और टैंजेनिया के विरुद्ध हॉकी खेला। १९५९ के म्यूनिच फेस्टिवल में सर्वोत्त्म परिपक्व खिलाड़ी माने गए। इसी साल में उन्होंने सारे यूरोपीय देशों का दौरा किया। रोम में आयोजित १९६० के ओलंपिक खेल में प्रितिपाल ने दो हैट्रिक बनाए( डेनमार्क और नेदर्लैंड़्स के विरुद्ध)। उन्होंने सबसे ज़्यादा अंक स्कोर किया और सर्वोत्त्म परिपक्व खिलाड़ी कहलाए। इस ओलंपिक खेल में प्रितिपाल को रजत पदक प्राप्त हुआ। १९६१ में वे भारतीय वांडरर्स हॉकी के प्रतिनिधि बने जो न्यू ज़िलैंड़ और औस्ट्रेलिया के विरुद्ध खेला और १९६२ में इण्डोनेशिया में आयोजित एशियाई खेल में भी भाग लिया।[2] १९६३ में पंजाब पुलिस को छोड़कर रैलवे पुलिस में नियुक्त हुए। १९६५ में सर्वोत्तम रैलवे खिलाड़ी होने के कारण रैलवे मंत्री तमगा से सम्मानित किया गया। १९६३ में भारतीय हॉकी महासंघ ने उनका चुनाव नहीं किया, किन्तु, प्रितिपाल फिर भी रैलवे पुलिस के अधीन हॉकी खेलते रहे। १९६४ में भारतीय हॉकी महासंघ ने उनका चुनाव टोक्यो में आयोजित ओलंपिक खेल के लिए किया। प्रितिपाल ने २२ में ११ गोल्स स्कोर किया और उनको स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। १९६६ में बैंकौक में आयोजित एशियाई खेल में उन्होंने भाग लिया और उनके टीम ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। १९६७ में वे टीम के कप्तान बने और कई जीत उत्प्रेरित किया। १९६७ के मेक्सिको ओलंपिक खेल के लिए गुरबक्ष सिंह के साथ वे संयुक्त कप्तान बनाए गए। प्रितिपाल पुनः सर्वोत्तम खिलाड़ी माने गए और भारत को कांस्य पदक प्राप्त हुआ।[1]
पुरस्कार और सम्मान
संपादित करेंअर्जुन पुरस्कार खिलाड़ियों को भारत सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारम्भ १९६१ में हुआ था।भारतीय सरकार ने प्रितिपाल सिंह के योगदान का मान करते हुए, सन १९६१ में फील्ड़ हॉकी में पहला अर्जुन पुरस्कार प्रस्तुत करके उन्हें सम्मानित किया। यह राजेन्द्र प्रसाद (जो उस समय के राष्ट्रपति थे) द्वारा दिया गया। पुरस्कार स्वरूप पाँच लाख रुपये की राशि, अर्जुन की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। [1] फील्ड़ हॉकी के क्षेत्र में सराहनीय और बहूमूल्य योगदान के लिए १९६७ में ज़ाकिर हुसैन द्वारा उन्हें पद्म श्री प्राप्त हुआ। १९६८ में वे फील्ड़ हॉकी से रिटायर हो गए और कुछ देर तक भारतीय हॉकी महासंघ के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे। १९७४ के मलेशियन विश्व कप के प्रेक्षक रहे और उस बार भारत ने विष्व कप जीता। वे पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्था, लुधियाना के अग्रिकल्चर विश्वविद्यालय और अनेक संस्थाओं के सदस्य रहे।[3] उनका अभिनंदन करते हुए, २०१२ में, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने फील्ड़ हॉकी स्टेडियम का निर्माण किया है। इस स्टेडियम का नाम प्रितिपाल सिंह फील्ड़ हॉकी स्टेडियम है, जो पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, में स्थित है। [4]
उपसंहार
संपादित करेंप्रितिपाल सिंह 'पेनाल्टी कॉर्नर'में माहिर थे। उनकी शाक्तिशाली कलाइयाँ और सजगता ने उन्हें एक बलवान खिलाड़ी बना दिया था। इन सब के साथ-साथ, निष्ठा और समर्पण उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था। उन्होंने अनेक खिलाड़ियाँ का प्रशिक्षण किया है। लुधियाना के अग्रिकल्चर विश्वविद्यालय के एक उग्रवादी विद्यार्थी ने १९८३ में प्रितिपाल सिंह पर गोली चलाकर उनकी हत्या कर दी। [5] उनकी प्रेरणादायक जीवन को बबीता पुरी ने एक मर्मस्पर्षी चलचित्र ,'प्रितिपाल सिंह-अ स्टोरी ' का रूप दिया जो २०१५ में प्रकाशित हुआ। [6]
ग्रंथसूची
संपादित करें- ↑ अ आ इ ई https://en.wikipedia.org/wiki/Prithipal_Singh
- ↑ https://www.dailypioneer.com/2016/sunday-edition/the-nation-slept-when-a-sportsman-was-murdered.html
- ↑ https://web.archive.org/web/20110716070801/http://www.sikhhockeyolympians.com/Player%20Profiles/PrithipalSingh.html
- ↑ https://worldarchitecture.org/architecture-projects/npzz/hockey-stadium-pau-ludhiana-building-page.html
- ↑ https://www.indiatoday.in/magazine/indiascope/story/19830615-former-olympic-hockey-star-prithipal-singh-murder-sends-shock-waves-throughout-india-770740-2013-07-19
- ↑ https://www.boxofficeindia.com/movie.php?movieid=3118