सदस्य वार्ता:Kajolchugh/सिंधी भाषा
सिंधी भाषा ने पाकिस्तान के " सिन्ध " नामक जगह में जन्म लिया था। माना जाता है कि सिन्ध भाषा सबसे पुरानी भाषाओं में से एक हैं। इस भाषा के बोलने वाले दुनिया के हर कोने में पाए जा सकते हैं। मौलिक रूप से जो सिन्धी सिन्ध में रहा करते थे, वे मुस्लिम सिन्धी और हिन्दु सिन्धी थे। तथापि सिन्धी में और कईं भाग हैं जिनके बोली में अंतर हैं। सिन्धी शिकारपुरि, साहिती और हैदेराबादी होते हैं।
विभाजन समय और उसका नतीजा
संपादित करेंजब देश का विभाजन हुआ, तभी अधिक्तर हिन्दु सिन्धी भारत में आ बसे। पाकिस्तान में पीछे रह जाने का परिणाम उनके जन्म जाति पर भारी पड़ा। पाकिस्तान में रहने वाले हर आत्मा को मुस्लिम में बदलना पड़ा। जो लोग अपनी जाति खो रहें थे उन्होने स्वतंत्रता के साथ साथ अपनी पेहचान भी खो दी। भारत एक धर्म निरपेक्ष चिह्न जैसे माना जाता था और है। जो सिन्धी सिन्ध छोदकर हिन्दुस्तान चल दिए, उन्होंने अपनी जन्म-जाति समान रूप में खोया। खोना तो एक झतके में होता है, एक दिन में सब खतम। पर यहाँ तो थोड़े-थोड़े मूल्य से सिन्धियों ने अपना सिन्धिपन को खोया नहीं बल्कि परिवरतित रूप को बढ़ाने की कोशिश की। बँटवारे के बाद पहले तो उन्हें अपना जीवन फिर से नई जगह में शुरु करना पड़ा। सब कुछ आरंभिक स्तिथि जैसे बन गया। इस सबके बीच, सिन्धियों ने अपने आशावाद विचार भूले नहीं। नए देश और समाज के पाबंदी और नियमों का अपनाना और पलन तथा योगदान देते हुए उन्होंने अपना जगह बना दिया। सिन्धियों ने अपना पेहचान बना लिया। टकसाली / रूढ़धारणा के वजह से सिन्धियों को हमेशा "पापड़" नामक खाद्य वस्तु से संबंधित करते आए हैं। पर सिन्धियों को उनके भाषा, कठोर परिश्रम, प्रसन्न तथा रसिक स्वभाव से, आधुनिक विचारों और ज़्यादातर उनके उपनामों से पेहचाना जा सकता है। सिन्धी अपने फ़िल्म वित्तदाता, उत्पादक तथा वितरकों व्यापार से जाना जाते हैं। जेडब्ल्यू मैरियट फ्रेंचाइजी भी सिन्धी के नाम ही है।
सामान्य सिन्धी उपनाम की सूची
संपादित करें- अहुजा
- चांदनानी
- लालवानी
- जयचंदानी
- हिंगोरानी
- देवनानी
- छाब्बरिया
- जादवानी
- असरानी
- चावला
- मखीजा
- सजनानी
- सधीजा
- चुघ
भाषा आज के दिन में
संपादित करेंसिन्धी भाषा ने अपना महत्व खो दिया है। दुख की बात यह है कि नई पीड़ा ने भाषा की महत्व न जानने के बगैर उसे सीखना व्यर्थ घोषित कर दिया है। इस पीड़ा ने उसे सिखने का सुख कभी प्राप्त ही नहीं किया। इसका कारण परिवारिक परवरिश में कमी या भाषा की प्रयोग में कमी हो सकता है। बच्चों को विद्यालय में पहले अंग्रेज़ी सिखाई जाती है और फिर भाषा में उनके रुचि के हिसाब से उन्हें सिखाया जाता है। यह रुचि कभी बढ़ने का नाम ही नहीं लेती क्योंकि भाषा सीखने का कोइ विवशता नहीं है, जैसे की मुस्लिम बच्चों को कुरान और उर्दु सीखना ज़रुरी माना जाता है। अंग्रेज़ी सीखते ही उन्हें पाटशाला में डाला जाता हैं जहाँ जाहिर है कि उन्हें अंग्रेज़ी में ही जटिल विषय सिखाया जाता है। अगर मात्र भाषा घर में भी नहीं बोली जाती है, तो मानो उस बच्चे की ज़िंदगी में उसकी मात्र भाषा का कोई भूमिका नहीं।
देश के सारे सिन्धियों ने महासंघ बनाकर भाषा तथा संस्कृति को जिवित रखने का वचन लिया है। यहीं बेंगलुरू में सिन्धी महासंघ के दो भाग है जो बारंबार कईं कार्यक्रम के सहायता से भाषा की उपयोग बढ़ाते रहते हैं।