सरिय्या उसामा बिन ज़ैद
सरिय्या हज़रत उसामा बिन ज़ैद रजि०: शुरुआती मुस्लिम खिलाफत का उसामा बिन ज़ैद के नेतृत्व में सैन्य अभियान था। जो जून 632 में हुआ था, जिसमें मुस्लिम सेना ने बाइज़ेंटाइन साम्राज्य में सीरिया पर छापा मारा था। यह अभियान ग़ज़वा ए मूता की लड़ाई के तीन साल बाद हुआ। यह पैग़म्बर मुहम्मद के आदेश पर सहाबा का आखरी सैन्य अभियान था।
सरिय्या हज़रत उसामा बिन ज़ैद रजि० | |||||||
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अरब-बाइज़ेन्टाइन युद्ध का भाग | |||||||
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योद्धा | |||||||
राशिदून ख़िलाफ़त | बाइज़ेंटाइन साम्राज्य | ||||||
सेनानायक | |||||||
हरक्यूलस या हरकल | |||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
लगभग 3,000 सैनिक | अनजान | ||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||
अनजान | अनजान |
विदाई तीर्थयात्रा के बाद , इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद ने उसामा इब्न ज़ैद को एक अभियान दल के कमांडर के रूप में नियुक्त किया, जिसे बाइज़ेंटाइन साम्राज्य में बलका के क्षेत्र पर आक्रमण करना था। मुताह की लड़ाई में मुसलमानों का बदला लेने के लिए मुहम्मद ने उसामा को सीरिया भेजा , जिसमें उसामा के पिता और मुहम्मद के दत्तक पुत्र, ज़ैद बिन हारिसा शहीद (इस्लाम) हो गए थे।
उसामा का अभियान सफल रहा और उसकी सेना बीजान्टिन क्षेत्र पर सफलतापूर्वक आक्रमण करने और छापा मारने वाली पहली मुस्लिम सेना थी, इस प्रकार सीरिया पर मुस्लिम विजय और मिस्र पर मुस्लिम विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ, जो दोनों उसामा के जीवनकाल में हुए थे।
पृष्ठभूमि
संपादित करेंग़ज़वा ए मूता की लड़ाई सितंबर 629 में मूता के गांव के पास, जॉर्डन नदी के पूर्व और अल-कराक, मुहम्मद की सेना और बाइज़ेंटाइन साम्राज्य की सेना और उनके अरब ईसाई जागीरदारों के बीच लड़ी गई थी। इस्लामी ऐतिहासिक स्रोतों में, लड़ाई को आमतौर पर मुसलमानों के रूप में वर्णित किया जाता है, जो घाससनीद के खिलाफ प्रतिशोध लेने का प्रयास करते हैं, जब एक घसानीद अधिकारी ने मुहम्मद के दूत को मार डाला, जो बोसरा के रास्ते में था। लड़ाई के दौरान मुस्लिम सेना को भगा दिया गया था। तीन मुस्लिम नेताओं (उसामा के पिता, ज़ैद बिन हारिसा ) के शहीद (इस्लाम) हो जाने के बाद, कमान खालिद इब्न अल- वलीद को दी गई और वह बाकी ताकतों को बचाने में सफल रहे। बची हुई मुस्लिम सेना मदीना की ओर पीछे हट गई।
632 में विदाई तीर्थयात्रा के बाद, मुहम्मद ने उसामा इब्न ज़ायद को एक अभियान बल के कमांडर के रूप में नियुक्त किया, जिसे बीजान्टिन साम्राज्य में बलका के क्षेत्र पर आक्रमण करना था। इस अभियान का घोषित उद्देश्य मुताह की लड़ाई में मुस्लिम नुकसान का बदला लेना था, जिसमें उसामा के पिता और मुहम्मद के दत्तक पुत्र ज़ैद बिन हारिसा शहीद (इस्लाम) हो गए थे। उसामा ने लगभग 3000 आदमियों का एक दल इकट्ठा किया, जिनमें से 1000 घुड़सवार सैनिक थे, और अबू बकरअभियान में उसामा में शामिल होने का इरादा था। उसामा ने अपने आगे जासूस भी भेजे थे, जिनसे उसे पता चला कि दुश्मन अभी भी उसकी सेना के आसन्न दृष्टिकोण से अनजान थे।
हालाँकि, 8 जून को मुहम्मद की वफ़ात के कारण, अभियान में देरी हुई और अबु बक्र को मदीना में खलीफा के रूप में चुना गया। मुहम्मद की मृत्यु के साथ, कुछ मुस्लिम नेताओं और नागरिकों ने उसामा की कमान में जाने का विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि वह, जो उस समय 20 वर्ष का था, एक सेना का नेतृत्व करने के लिए बहुत छोटा था। मुहम्मद ने इन चिंताओं को खारिज कर दिया। इस घटना का उल्लेख सही अल-बुखारी में भी किया गया है। पैगंबर के कुछ साथियों ने अबू बक्र को मनाने की कोशिश की, जिसने मुहम्मद को इस्लामिक समुदाय के नेता के रूप में उत्तराधिकारी बनाया, उसामा की युवावस्था के कारण, उमर इब्न अल-खत्ताब के साथ सेना के कमांडर के रूप में उसामा को बदलने के लिए।
पूरे अरब में बढ़ते विद्रोह और धर्मत्याग के कारण इस अभियान को लेकर अबू बकर पर बहुत दबाव था, लेकिन वह दृढ़ निश्चयी था। मुहम्मद के निर्णय की फिर से पुष्टि की और उसामा के नेतृत्व में अभियान भेजा।[1] [2]
आखरी सरिय्या "सरिय्या उसामा"
संपादित करेंजैशे उसामा, इस लश्कर का दूसरा नाम "सरिय्या उसामा" भी है। यह सब से आखिरी फौज है जिस के रवाना करने का रसूलुल्लाह ने हुक्म दिया। 26 सफ़र 11 हि. दो शम्बा के दिन रूमियों से जंग की तय्यारी का हुक्म दिया और दूसरे दिन हजरते उसामा बिन जैद को बुला कर फरमाया कि मैं ने तुम को इस फौज का अमीरे लश्कर मुकर्रर किया तुम अपने बाप की शहादत गाह मकामे "उबना" में जाओ और निहायत तेजी के साथ सफ़र कर के उन कुफ्फार पर अचानक हमला कर दो ताकि वोह लोग जंग की तय्यारी न कर सकें। वा वुजूदे कि मिज़ाजे नासाज था मगर आप ने खुद अपने दस्ते मुबारक से झन्डा बांधा और यह निशाने इस्लाम हजरते उसामा के हाथ में दे कर इरशाद फ़रमाया इसी हालत अल्लाह के नाम से और अल्लाह की राह में जिहाद करो और काफिरों के साथ जंग करो।
हज़रते उसामा ने हज़रते बरीदा बिन अल हुसैब को झंडा संभालने वाला बनाया और मदीने से निकल कर एक कोस दूर मकामे "जरफ़" में पड़ाव किया ताकि वहाँ पूरा लश्कर जमा हो जाए। मुहम्मद ने अन्सार व मुहाजिरीन के तमाम मुअज्जिजीन को भी इस लश्कर में शामिल हो जाने का हुक्म दे दिया। लोगों पर यह शाक गुज़रा कि ऐसा लश्कर जिस में अन्सार, मुहाजिरीन के अकाबिर व अमाइद मौजूद हैं एक नौ उम्र लड़का जिस की उम्र बीस बरस से अधिक नहीं किस तरह अमीरे लश्कर बना दिया गया ? जब हुजूर को इस ए'तिराज़ की ख़बर मिली तो आप ने कमज़ोरी के बावजूद सर में पट्टी बांधे हुए एक चादर ओढ़ कर मिम्बर पर एक खुत्बा दिया जिस में इरशाद फ़रमाया कि अगर तुम लोगों ने उसामा की सिपहसालारी पर तानाजनी की है तो तुम लोगों ने इस से क़ब्ल इस के बाप के सिपह सालार होने पर भी ताना जुनी की थी हालां कि खुदा की कसम ! इस का बाप (जैद बिन हारिसा) सिपहसालार होने के लाइक था और उस के बाद उस का बेटा (उसामा बिन जैद) भी सिपहसालार होने के काबिल है और यह मेरे नज़दीक मेरे महबूब तरीन सहाबा में से है जैसा कि इस का बाप मेरे महबूब तरीन अस्हाब में से था लिहाजा उसामा के बारे में तुम लोग मेरी नेक वसिय्यत को क़बूल करो कि वह तुम्हारे बेहतरीन लोगों में से है। यह खुत्बा दे कर मकान में तशरीफ़ ले गए और आप की अलालत में कुछ और भी इजाफा हो गया।
उसामा हुक्मे नबवी की तक्मील करते हुए मकामे जरफ़ में पहुंच गए थे और वहां लश्करे इस्लाम का इजतिमाअ होता रहा यहां तक कि एक अज़ीम लश्कर तय्यार हो गया। 10 रबीउल अव्वल 11 हिजरी को जिहाद में जाने वाले मुहम्मद से रुख़्सत होने के लिये आए और रुख़्सत हो कर मकामे जर में पहुंच गए। इस के दूसरे दिन हुजूर की अलालत ने और ज़ियादा शिद्दत इख़्तियार कर ली। हज़रते उसामा भी मिज़ाज पुर्सी और रुख्सत होने के लिये में हाज़िर हुए। उसामा को देखा मगर कमज़ोरी की वजह से कुछ बोल न सके, बार बार दस्ते मुबारक को आस्मान की तरफ़ उठाते थे और उन के बदन पर अपना मुक़द्दस हाथ फैरते थे। हज़रते उसामा का बयान है। कि इस से मैं ने यह समझा कि हुजूर मेरे लिये दुआ फरमा रहे हैं। इस के बाद हज़रते उसामा रुख्सत हो कर अपनी फ़ौज में तशरीफ़ ले गए और 12 रबीउल अव्वल 11 हिजरी को कूच करने का एलान भी फ़रमा दिया। सवार होने के लिये 'तय्यारी कर रहे थे कि उन की वालिदा हज़रते उम्मे ऐमन का फ़रिस्तादा आदमी पहुंचा कि हुजूर नज्अ की • हालत में हैं। यह होशरुबा ख़बर सुन कर हज़रते उसामा व हज़रते उम हज़रते अबू उबैदा वग़ैरा फ़ौरन ही मदीना आए तो येह देखा कि आप सकरात के आलम में हैं और उसी दिन दोपहर को या सह पहर के वक्त आप का विसाल हो गया। यह ख़बर सुन कर हज़रते उसामा का लश्कर मदीना वापस चला आया मगर जब हज़रते अबू बक्र सिद्दीक मस्नदे खिलाफ़त पर रौनक अफरोज़ हो गए तो बाज़ लोगों की मुखालफत के बावजूद रबीउल आखिर की आखिरी तारीखों में उस लश्कर को रवाना फ़रमाया और हज़रते उसामा मक़ामे "उबना" में तशरीफ ले गए और वहां बहुत ही खूरैज़ जंग के बाद लश्करे इस्लाम फत्ह याब हुवा और आप ने अपने बाप के क़ातिल और दूसरे कुफ्फार को क़त्ल किया और बेशुमार माले ग़नीमत ले कर चालीस दिन के बाद मदीने वापस तशरीफ लाए।[3]
स्रोत
संपादित करेंअल-तबारी के अनुसार, इससे पहले कि उसामा ने सीरिया के निवासियों पर छापा मारे, अबू बकर ने उसामा को युद्ध के दस नियमों का पालन करने का आदेश दिया। अबू बक्र के दस नियमों की परंपरा का उल्लेख अल-मुवत्ता के सुन्नी हदीस संग्रह में भी किया गया है ।
तबरी का कहना है कि अभियान सफल रहा, और उसामा सीरिया पहुंच गया और बीजान्टिन क्षेत्र में सफलतापूर्वक छापा मारने वाली पहली मुस्लिम सेना बन गई , इस प्रकार बीजान्टिन साम्राज्य से सीरिया और मिस्र के बाद के मुस्लिम विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
यह अभियान इस्लाम के इतिहास में उल्लेखनीय हो गया कि कैसे अभी भी अठारह वर्ष की उसामा को प्रमुख दिग्गजों और पैगंबर के उच्च रैंक वाले साथी जैसे उमर, सआद इब्न अबी वक़्क़ास, सईद इब्न ज़ैद, अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह, और en:Qatada ibn al-Nu'man क़तादा इब्न अल-नुमान का समग्र कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था।
सराया और ग़ज़वात
संपादित करेंइस्लामी शब्दावली में अरबी शब्द ग़ज़वा [4] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह (सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[5] [6]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Gil, A history of Palestine, 634-1099, pp. 31-32.
- ↑ "Abu Bakr | Biography & Facts". Encyclopedia Britannica (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-11-06.
He suppressed the tribal political and religious uprisings known as the riddah (“political rebellion,” sometimes translated as “apostasy”), thereby bringing central Arabia under Muslim control.
- ↑ "जैशे उसामा,या सरिय्या उसामा, पुस्तक 'सीरते मुस्तफा', शैखुल हदीस मौलाना अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी, पृष्ट 536". Cite journal requires
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(मदद) - ↑ Ghazwa https://en.wiktionary.org/wiki/ghazwa
- ↑ siryah https://en.wiktionary.org/wiki/siryah#English
- ↑ ग़ज़वात और सराया की तफसील, पुस्तक: मर्दाने अरब, पृष्ट ६२] https://archive.org/details/mardane-arab-hindi-volume-no.-1/page/n32/mode/1up
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Ar-Raheeq Al-Makhtum|Ar Raheeq Al Makhtum– The Sealed Nectar (Biography Of The Noble Prophet) -First PRIZE WINNER BOOK Ar Raheeq Al Makhtum
- अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुस्तक) अर्रहीकुल मख़तूम