साँचा:आज का आलेख ५ नवंबर २००९
आल्हखण्ड एक प्रसिद्ध लोक महाकाव्य है। आल्हखण्ड के रचयिता जगनिक माने गए हैं। जगनिक कालिंजर तथा महोबा के शासक परमाल (परमर्दिदेव) के दरबारी कवि थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि जगनिक भाट थे तथा कुछ का मानना है कि जगनिक बन्दीजन थे। जगनिक का समय ११७३ ई० के आसपास रहा है। उन्होंने महोबा के दो ख्याति-लब्ध वीरों आल्हा और ऊदल के वीर चरित का विस्तृत वर्णन एक वीरगीतात्मक काव्य के रूप में किया था। जगनिक द्वारा लिखे गए आल्हखण्ड की कोई भी प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है। इस काव्य का प्रचार प्रसार समस्त उत्तर भारत में है। उसके आधार पर प्रचलित गाथा हिन्दी भाषा भाषी प्रान्तों के गाँव-गाँव में सुनी जा सकती है। आल्हा लोकगाथा वर्षा ऋतु में विशेष रूप से गाई जाती है। फर्रुखाबाद में १८६५ ई० में वहाँ के तत्कालीन कलेक्टर सर चार्ल्स इलियट ने अनेक भाटों की सहायता से इसे लिखवाया था। विस्तार से पढ़ें...