सुमेर सिंह (जोधपुर)
महाराजा सर सुमेर सिंह केबीई (14 जनवरी 1898 - 3 अक्टूबर 1918) 20 मार्च 1911 से 3 अक्टूबर 1918 तक जोधपुर के महाराजा थे, वे अपने पिता महाराजा सरदार सिंह के उत्तराधिकारी थे।[1]
HH महाराजा सर श्री सुमेर सिंहजी | |
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जोधपुर के महाराजा | |
अवधि | 1911–1918 |
पूर्ववर्ती | सरदार सिंह |
उत्तराधिकारी | HH महाराजा सर श्री उम्मेद सिंहजी |
जन्म | 14 जनवरी 1898 जोधपुर, राजस्थान, भारत |
निधन | 3 अक्टूबर 1918 रतनाडा पैलेस जोधपुर | (उम्र 20 वर्ष)
जीवनसंगी | HH महारानीजी जाडेजी श्री प्रताप कुंवरबा/कंवरजी माजी साहिबा जामनगर काठियावाड़ के HH महाराजा जाम सर श्री रंजीत(रणजी) सिहजी की बहन
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संतान | बाईजीलाल साहिबा श्री किशोर कंवरजी HH महाराजा सवाई सर श्री मान सिंहजी द्वितीय जयपुर के साथ 1932 जोधपुर में विवाह |
घराना | राठौड़ |
पिता | सरदार सिंह |
माता | महारानीजी हाड़ीजी सा श्री लक्ष्मण कंवरजी माजी साहिबा बूंदी के HH महाराजा महाराव सर श्री राम सिंहजी की पुत्री |
धर्म | हिन्दू |
जीवन
संपादित करेंसुमेर सिंह का जन्म 14 जनवरी 1898 को जोधपुर के मेहरानगढ़ में महाराजा सर सरदार सिंह के और उनकी पहली पत्नी महारानी लक्ष्मण कंवरजी माजी साहिबा के घर हुआ था। मार्च 1911 में 13 वर्ष की आयु में, वे अपने पिता की मृत्यु पर जोधपुर की गादी पर बैठे थे और उस वर्ष दिल्ली दरबार में जॉर्ज पंचम के सम्मान के एक पेज ऑफ ऑनर के रूप में कार्य किया।[2] 1915 में सुमेर पुष्टिकर स्कूल के लिए सुमेर सिंह की तरफ से सात हजार रुपये दिये गये। इसी वर्ष जोधपुर में एक अजायबघर और एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना की गई। श्री सुमेर सिंह ने स्टेट काऊंसिल की स्थापना की। श्री सुमेर सिंह काशी गये और हिन्दू विश्वविधालय की नींव रखी। 23 सितम्बर 1918 को हाईफा के युद्ध में सरदार रिसाला का मेजर देवली ठाकुर दलपतसिह रण में मारा गया। रिसाले के वीरो ने भाले से बहुत से तुर्को को मार डाला। सुमेर सिंह को मिस्र के सुल्तान ने ग्रांड कारडन आफ दि आर्डर आफ दि नाईल की उपाधि से सम्मानित किया। श्री सुमेर सिंह ने जोधपुर में चीफ कोर्ट की स्थापना की। उन्होंने चौपासनी का नया राजपूत हाई स्कूल बनवाया। [3]
मेयो कॉलेज, अजमेर, और बर्कशायर के वेलिंगटन कॉलेज में शिक्षित, उन्होंने इडर के अपने बड़े चाचा जनरल महाराजा सर प्रताप सिंह के शासन के तहत पांच साल तक शासन किया, जिन्होंने जोधपुर रीजेंसी की देखरेख के लिए इडर से अपना सिंहासन छोड़ दिया था।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ London Gazette, 1 August 1917
- ↑ London Gazette, 28 December 1917
- ↑ रेऊ, विशवेशवरनाथ (1950). मारवाड़ का इतिहास. जोधपुर: जोधपुर आर्कियोलॉजी डिपाटमेंट. पृ॰ 526.