हरसिल

भारत का गाँव
(हर्षिल से अनुप्रेषित)

हरसिल (Harsil) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित एक ग्राम और सैनिक छावनी है। यह हिमालय में भागीरथी नदी के किनारे बसा एक रमणीय हिल स्टेशन है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 34 पर गंगोत्री के हिन्दू तीर्थस्थल के मार्ग में आता है। हरसिल उत्तरकाशी से 78 किमी और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान से 30 किमी दूर है। यह अपने प्राकृतिक वातावरण और सेब उत्पादन के लिए जाना जाता है।[1][2]

हरसिल
Harsil
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हरसिल घाटी में गंगोत्री हिमानी के नीचे बहती गंगा नदी
हरसिल घाटी में गंगोत्री हिमानी के नीचे बहती गंगा नदी
हरसिल is located in उत्तराखंड
हरसिल
हरसिल
उत्तराखण्ड में स्थिति
निर्देशांक: 31°02′17″N 78°44′17″E / 31.038°N 78.738°E / 31.038; 78.738निर्देशांक: 31°02′17″N 78°44′17″E / 31.038°N 78.738°E / 31.038; 78.738
देश भारत
प्रान्तउत्तराखण्ड
ज़िलाउत्तरकाशी ज़िला
ऊँचाई2745 मी (9,006 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल1,205
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, गढ़वाली
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड249135

विवरण संपादित करें

हरसिल समुद्र तल से ७,८६० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान जो १,५५३ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। सम्पादित कौशल किशोर मौनी बाबा आश्रम गंगोत्री फोन08755605781=हर्सिल मे भगवान श्री हरि की लेटि हुयी शिला है जोकि हर्शिल मे लक्ष्मीनारायण मन्दिर के निचे भागीरथी गंगा नदी के किनारे पर स्थित है इस लिए हर्शिल नाम पड़ा है

प्राकृतिक सैंदर्य संपादित करें

 
हरसिल घाटी का दृश्य।
 
हरसिल में एक पारम्परिक घर

हरसिल उत्तरकाशी से ७३ किलोमीटर आगे और गंगोत्री से २५ किलोमीटर पीछे तक सघन हरियाली से आच्छादित है। गढ़वाल के अधिकांश सौन्दर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना बहुत कठिन होता है। यही कारण है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन स्थानों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरुहता समाप्त हो जाती है। वहां तक पहुंचना सहज और सुगम होता है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर अधिक पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति की एक ऐसी ही एक सुंदर उपत्यका है, हरसिल।

यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शान्त और अविरल प्रवाह हर किसी को आनन्दित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वृक्ष हि वृक्ष दिखाई देते हैं। यहां पहुंचकर पर्यटक इन वृक्षों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। वनों से थोडा ऊपर दृष्टि पडते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो देखते ही बनता है। ढलानों पर फैले हिमनद भी देखने योग्य है।

भूगोल संपादित करें

दिल्ली-हरिद्वार-हरसिल रिज, अरावली पर्वत श्रृंखला के उत्तरी फैलाव का भूमिगत रिज है, जिसका फैलाव उत्तर उत्तरपूर्व-दक्षिण दक्षिण पश्चिम तक है और जिसका विस्तार अजमेर और जयपुर से होता हुआ आगे अंबा माता-देरि से दिल्ली तक है।

जनसांख्यिकी संपादित करें

पिछले कुछ वर्षों में भोट जातीय समूह से सम्बन्धित जध लोग छोटी संख्या में यहां आकर बस गये हैं और ये लोग तिब्बती भाषा से मिलती जुलती एक भाषा बोलते हैं।

पर्यटन संपादित करें

ऋषिकेश से हरसिल की लंबी यात्रा के बाद यात्री हरसिल में रुक सकते हैं। भोजपत्र के वृक्ष और देवदार के मनमोहक वनों की तलहटी में बसे हरसिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले अधिकतर तीर्थ यात्री हरसिल की इस सुंदरता का आंनंद लेने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना सुगम है, लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां बहुत कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं। हरसिल की घाटियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है, जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से अच्छादित रहते हैं। गौमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने योग्य है। यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को विल्सन नामक एक अंग्रेज़ लाये थे। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई भीतरी पंक्ति में रखा गया है जहां विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें साताल कहा जाता है। हिमालय की गोद मे एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील ९,००० फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते मे प्रकृति का एक नया ही रूप दिखाई देता है। यहां पहुंचकर प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूमा जा सकता है।

तीर्थाटन संपादित करें

हर वर्ष दिवाली के बाद गंगाजी की मूर्ति को उपरी हिमालय में स्थित गंगोत्री धाम से नीचे बसे मुखबा ग्राम में लाया जाता है और पूरी सर्दी भर मुर्ति यहीं रहती है, क्योंकि इन महीनो के दौरन गंगोत्री में बहुत बर्फ गिरती है और उपरी भाग तक पहुंचना दुर्गम हो जाता है।

हरसिल की लोकप्रियता संपादित करें

हरसिल की सुन्दरता को अपने जमाने के लोकप्रिय चलचित्र राम तेरी गंगा मैली में भी दिखाया जा चुका है। बॉलीवुड के सबसे बडे़ शोमैन रहे राज कपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आए थे तो हरसिल की सुन्दरता से मन्त्रमुग्ध होकर यहां की घाटियों पर एक चलचित्र ही बना डाला - राम तेरी गंगा मैली। इस चलचित्र में हरसिल की घाटियों को जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यहीं के एक झरने में चलचित्र की नायिका मन्दाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मन्दाकिनी झरना पड़ गया।

इस घाटी से इतिहास के रोचक पहलू भी जुडे हैं। एक अंग्रेज़ थे, फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैंड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आए तो हरसिल की घाटियों में पहुंच गए। उन्हें यह स्थान इतना भाया कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और यहीं बसने का मन बना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वह शीघ्र ही घुल-मिल गए और गढ़वाली बोली भी सीख ली। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक बंगला भी बनाया। निकट के मुखबा ग्राम कि एक लड़की से उन्होंने विवाह भी किया। विल्सन ने यहां पर इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगावाकर लगाए जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है।

कैसे पहुंचे संपादित करें

हरसिल की सुंदर घाटियों तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुडा़ है। ऋषिकेश पहुंचने के बस या टैक्सी द्वारा २१८ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं। यहां का सबसे समीपी हवाईअड्डा है जौलीग्रांट जो देहरादून में है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा २३५ किलोमीटर का यात्रा करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।

समय और मौसम संपादित करें

नवंबर-दिसंबर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौंदर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंच सकते हैं। पर्यटकों को यात्रा के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्ष के किसी भी महीने आएं लेकिन हर समय गरम कपडे़ साथ होने चाहिए। यहां पर खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं जो बजट के अनुरूप होते हैं। हरसिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हरसिल के सौंदर्य का लुत्फ लेते हैं।

रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला संपादित करें

रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला कि एक टुकड़ी जो रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा चलाई जाती है, यहाँ मई १९७३ में स्थापित कि गई थी।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
  2. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994