अलवर के पर्यटन स्थल

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पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पड़ा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है शहर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्राहलय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है इसी झगडे के कारण यह बंद पड़ा है, बाल किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है क्योंकि वहां सब कुछ गार्डो के हाथों में है वह चाहें तो आपको घूमने की अनुमति दे सकते और मना भी कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि जब आप वहां पहुंचे तो वह बंद हो। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत खराब है लेकिन जो चीज पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है वह अलवर का सौन्दर्य है जो पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करता है।

फतहगंज का मकबरा पांच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमांयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित हैं। यहां तक पहुंचने के लिए रेलवे लाइन के ऊपर एक पुल भी बनाया गया है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। जो सुरक्षाकर्मी इस मकबरे की देखभाल करता है वह इसे कई बार 9 बजे से पहले भी खोल देता है। फतहगंज का मकबरा देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी पहुंचा जा सकता है। मोती डुंगरी का निर्माण 1882 में हुआ था। यह अलवर के शाही परिवारों का आवास था। यह 1928 तक शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुडवाकर इसके स्थान पर इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इस इमारत के लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था वह डूब गया। जहाज डुबने के साथ ही महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत नहीं बनने का एक फायदा यह हुआ कि अब पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ सकते हैं और शहर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं।

मोती डुंगरी से रेलवे लाइन की तरफ चलने पर आर.आर. कॉलेज आता है। पहले इसका नाम विनय विलास पैलेस था। यह इमारत देखने लायक है। कॉलेज देखने के बाद आप यहां से पूर्जन विहार जा सकते हैं। इसे कम्पनी बाग भी कहा जाता है। यह एक खूबसूरत बाग है। इसके बीच में एक बड़ा समर हाऊस है जिसे शिमला कहा जाता है। महाराज शियोधन सिंह ने 1868 में इस बगीचे को बनवाया और महाराज मंगल सिंह ने 1885 में शिमला का निर्माण कराया। स्थानीय लोगों को शिमला पर बड़ा गर्व है, इस बगीचे में अनेक छायादार मार्ग हैं और कई फव्वारे लगे हुए हैं।

कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। समर हाऊस में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। शाम के समय चर्च रोड पर बाजार लगता हैं। यहां काफी भीड-भाड रहती है। चर्च रोड घूमने के लिए सुबह का समय उपयुक्त है क्योंकि उस समय आप यहां की हवेलियों को अच्छी तरह देख सकते हैं। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह शहर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और एक मंदिर भी है। होप सर्कल से सात गलियां विभिन्न स्थलों तक जाती है। चर्च रोड से पांचवी गली घंटाघर तक जाती है, वहीं पर कलाकंद बाजार भी है। यहीं से चौथी गली त्रिपोलिया गेटवे और सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। शहर से त्रिपोलिया की छटा देखने लायक होती है। इसके कोनों में अनेक छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। गेटवे से सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाज बाजार पड़ते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। इन बाजारों में घूमते हुए आप यहां की अनेक खूबसूरत हवेलियों को भी देख सकते हैं।

सिटी पैलेस परिसर बहुत ही खूबसूरत है और इसके साथ-साथ बालकॉनी बनाने की योजना है। गेट के पीछे एक बड़ा मैदान है। इसी मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। सुबह के समय जब सूर्य की पहली किरण सिटी पैलेस परिसर के मुख्य द्वार पडती है तो इसकी छटा देखने लायक होती है। हाल के दिनों में इसकी स्थिति दयनीय है। इस पूरी इमारत में सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, मुख्य रूप से जिलाधीश और अलवर पुलिस के सुपरिटेण्डेन्ट का। इसका निर्माण 1793 में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर संग्राहलय भी है। संग्राहलय दर्शन के लिए शुल्क देना पड़ता है। यह तीन हॉल्स में विभक्त है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखें हुए है, इस हॉल का मुख्य आकर्षण महाराज जयसिंह की साईकिल है। यहां हर वस्तु बड़े सुन्दर तरीके से सजाई गई है। दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगज़ेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री को प्रदर्शित किया गया है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। संग्राहलय घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, शुक्रवार को अवकाश

सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक बड़ा जलाशय है। इसे सागर के नाम से जाना जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत है और इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के मुहाने तक सीढियां बनी हुई है। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। जलाशय में कबूतरों को दाना खिलाना यहां की परंपरा रही है। जलाशय के साथ मंदिरो की एक शृंखला भी है। इसके दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बनाया गया संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।

यह खूबसूरत महल 1918 में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवासीय महल था। इस इमारत का ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। आजकल यह महल पारिवारिक झगडे के कारण बंद पड़ा हुआ है। महल सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो वाले इन दोनों स्थलों तक पहुंचाने के लिए 200 रु लेते हैं। पारिवारिक ङागडे के कारण यह महल आजकल बंद पड़ा हुआ है। यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है।

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके पर अरावली की पहाडियां है और इन पहाडियों पर बाल किला बना हुआ है। किले की दीवार पूरी पहाड़ी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर शहर में यह सबसे पुरानी इमारत है। यह लगभग 928 ई में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देखने लायक कुछ नहीं बचा है। इसके दरार हॉल में अब अलवर पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक आना एक सुखद अनुभव है। पूरा सडक मार्ग अच्छे से बना हुआ है। इसके दोनों तरफ छायादार पेड लगे हुए हैं। रास्ते में पत्थरों की बनी दीवारें दिखाई देती हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता के मंदिर का रास्ता यहीं से होकर जाता है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को 9 बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए आ पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।

हरी-भरी पहाडियां केवल अलवर में ही नहीं है, इसके पास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। शहर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर नजारा है। जय समन्द रोड बहुत ही परेशान करने वाला है। अत: जय समन्द, सिलीसेड और अलवर घूमने के लिए ऑटो के स्थान पर टैक्सी लीजिए। यह चार-पांच घंटे में आपको अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से अलवर पहुंचा देगी। इसके लिए टैक्सी वाले पर्यटकों से 400-500 रु लेते हैं। झील के पास रूकने की कोई व्यवस्था नहीं है।

सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने 1845 में करवाया था। इस झील से रूपारेल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढ़कर 10.5 वर्ग किलोमीटर हो जाता है। झील के चारों तरफ हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह अलवर से सरिस्का रोड़ पर स्थित है |