अहमद दीदात

दक्षिण अफ्रीकी लेखक और वक्ता

अहमद हुसैन दीदात (गुजराती: અહમદ હુસેન દીદત; उर्दू: احمد حسین دیدات Arabic: احمد حسين ديدات), अहमद दीदात में भी सुपरिचित है(1 July 1918 – 8 August 2005), दक्षिण अफ्रीका के तुलनात्मक धर्म के एक स्वशिक्षित मुस्लिम चिंतक, लेखक, वक्ता और विद्वान थे।[3] उन्हें मुस्लिम मिशनरी के रूप में जाना जाता था, जिन्होंने इवेंजेलिक ईसाइयों के साथ कई अंतर-धार्मिक सार्वजनिक बहस आयोजित किए है। साथ ही साथ इस्लाम ईसाई धर्म, और बाइबल पर वीडियो व्याख्यान भी दिए है।

अहमद हुसैन दीदात
धर्म इस्लाम
व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ
जन्म अहमद हुसैन दीदात[1][2]
01 जुलाई 1918
सुरत, बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश राज
निधन 8 अगस्त 2005(2005-08-08) (उम्र 87)
वेरुलम, दक्षिण अफ्रीका
शांतचित्त स्थान वेरुलम कब्रिस्तान
जीवनसाथी हौया दीदात
बच्चे युसुफ दीदात
पिता हुसैन क़जेम दीदात
माता फत्मा दीदात
धार्मिक जीवनकाल
पेशा
वेबसाइट Ahmed-Deedat.net

दीदात ने एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक मिशनरी संगठन आईपीसीआई IPCI की स्थापना की, जिसके द्वारा इस्लाम और ईसाई धर्म पर व्यापक रूप से वितरित कई पुस्तिकाएं भी लिखीं। उनके पचास वर्षों के मिशनरी कार्य के लिए उन्हें 1986 में किंग फैसल इंटरनेशनल प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में लेकचर दिये और पुस्तिकाएं लिखे है।[4]

जीवनी संपादित करें

प्रारंभिक जीवन (१९१८-१९४२) संपादित करें

साल १९१८ में दीदात का जन्म ब्रिटिश भारत के बाॅम्बे प्रेसिडेंसी का सुरत शहर में हुआ था।[5] उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनके पिता दक्षिण अफ्रीका चले गए। ९ साल की उम्र में दीदात ने अपने पिता से मिलने के लिए भारत छोड़ दिया। अहमद दीदात के दक्षिण अफ्रीका जाने के कुछ महीने बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया। वह दक्षिण अफ्रीका गए और एक स्कूल में दाखिला लिया जहाँ उन्होंने छठी कक्षा तक पढ़ाई की।

प्रारंभिक प्रचार कार्य (१९४२-१९५६) संपादित करें

साल १९४२ में दीदात ने "मुहम्मद: द मैसेंजर ऑफ पीस" शीर्षक लीफ्लैट द्वारा डरबन शहर से प्रचार कार्य शुरु किया।[6] एक वक्ता के रूप में दीदत की लोकप्रियता समय के साथ बढ़ती गई। फिर उन्हें दक्षिण अफ्रीका के अन्य शहरों में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। एक युग बाद, उन्होंने जोहान्सबर्ग और केप टाउन के सिटी हॉल में हजारों लोगों के सामने बात रखा। दीदात की प्रारंभिक प्रचारणा गतिविधियों में डरबन हिल मस्जिद तक ही सीमित था।

डरबन में अलंकृत विशालाकाय पहाड़ी मस्जिद हजारों पर्यटक-अनुकूल शहरों में से एक ऐतिहासिक स्थल है। दीदात स्वयं पर्यटकों की मेजबानी करने एवं इस्लाम और ईसाइयों के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देने की प्रक्रियाओं में बहुत सक्षम था।[7]

अंतर्राष्ट्रीय प्रयास (१९८५-१९९५) संपादित करें

१९८० के दशक में अहमद दीदात का परिचितियाॅ दक्षिण अफ्रीका के बाहर जाने लगा। दावा (इस्लाम प्रचार कार्य) के क्षेत्र में इस्लाम में उनके योगदान के लिए उन्हें "किंग फैसल अवार्ड" मिला साल १९८६ में। तब से उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति लगातार बढ़ती जा रही थी। इस बजह से बह ६६ साल की उम्र में एक दशक तक दुनिया की कई देशों यात्रा की। उनके दौरे में शामिल थे:

मृत्यु संपादित करें

१९९६ में अचानक उसको स्ट्रोक आए और बह पैरालैज़्ड हो गए। २० अगस्त, २००५ में उसका देहांत हो गया।[8]

यह भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें