राहुल देव बर्मन
राहुल देव बर्मन (27 जून 1939 – 4 जनवरी 1994) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्हें पंचम या 'पंचमदा' नाम से भी पुकारा जाता था। मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन व उनकी पत्नी मीरा की ये इकलौती संतान थे। अपनी अद्वितीय सांगीतिक प्रतिभा के कारण इन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में एक माना जाता है। माना जाता है कि इनकी शैली का आज भी कई संगीतकार अनुकरण करते हैं।
राहुल देव बर्मन | |
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बर्मन (बायें) आशा भोसले के साथ | |
जन्म |
27 जून 1939 कोलकाता , भारत |
मौत |
4 जनवरी 1994 मुम्बई , भारत | (उम्र 54 वर्ष)
पेशा | गायक , संगीत निर्देशक, निर्माता |
कार्यकाल | 1961–1994 |
जीवनसाथी |
रीता पटेल (1966–1971) (तलाक हुआ) आशा भोसले (1980–1994) (अपनी मृत्यु तक) |
माता-पिता |
एस. डी. बर्मन मीरा देव बर्मन (दासगुप्ता) |
पंचमदा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज़ भी दी। भूत बंगला (1965 ) और प्यार का मौसम (1969) में इन्होने अभिनय भी किया।
जीवन वृत्त
संपादित करेंराहुल कोलकाता में जन्मे थे। कहा जाता है बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा गया। कुछ लोगों के मुताबिक अभिनेता अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि 'ये पंचम में रोता है' तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा। इन्होने अपनी शुरूआती शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकत्ता से ली। बाद में उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा।
इनके पिता सचिन देव बर्मन, जो खुद हिन्दी सिनेमा के बड़े संगीतकार थे, ने बचपन से ही आर डी वर्मन को संगीत की दांव-पेंच सिखाना शुरु कर दिया था। राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की। केवल नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के” को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये …” की धुन तैयार कर लिया जिसे गुरुदत्त की फ़िल्म “प्यासा” में ले लिया गया।
उनके द्वारा बनाए गए संगीत उनके पिता एस डी बर्मन के संगीत की शैली से काफ़ी अलग थे। आर डी वर्मन हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय संगीत को एक अलग पहचान मिलती थी। लेकिन उनके पिता सचिन देव बर्मन को पाश्चात्य संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था।
आर डी बर्मन ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रूप में की। शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे। उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा।उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था।
संगीतकार के रूप में आर डी बर्मन की पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1961) थी जबकि पहली सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) थी।
सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। उन्होंने लता मंगेशकर , आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े कलाकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें कटी पतंग काफी सफल रही। यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रूप में काफी सफल हुए। बाद में यादों की बारात, हीरा पन्ना , अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' रही। वर्ष 1994 में इस महान संगीतकार का देहांत हो गया।
आर डी वर्मन ने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया। आज के युग के लोग भी उनके संगीत को पसंद करते हैं। आज भी फिल्म उद्योग में उनके संगीत को बखूबी इस्तमाल किया जाता है।
- राहुल देव बर्मन की संगीत यात्रा
- 1966: तीसरी मंजिल्
- 1968: पड़ोसन
- 1971: हरे रामा जहरे कृष्ना
- 1971: अमर प्रेम
- 1972: सीता और गीता
- 1972: मेरे जीवन साथी
- 1975: शोले
- 1975: दीवार
- 1979: नौकर
- 1977: हम किसी से कम नहीं
- 1980: खूबसूरत
- 1981: कालिया
- 1981: नरम गरम
- 1982: नमकीन
- 1982: तेरी कसम
- 1983: पुकार
- 1989: परिन्दा
- 1994: 1942: अ लव स्टोरी
सन्दर्भ
संपादित करेंपंचम दा सिर्फ़ संगीतकार नहीं संगीत जगत के भगवान हे आज के अत्याधुनिक स्टूडीओ अगर उनके टाइम पर होते तो क्या मालूम क्या कर देते आजके समय में अत्याधुनिक संगीत के साज ओर रिकॉर्डिंग स्टूडीओ हे मगर पंचम दा जेसा संगीत नहीं
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संपादित करें- अनिरुद्ध भट्टाचार्जी; बालाजी विट्टल (2011). R.D. Burman: the man, the music (हिन्दी: आर.डी. बर्मन:व्यक्ति, संगीत) (अंग्रेज़ी में). हार्पर कॉलिन्स इंडिया. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5029-049-1.