काती (अंग्रेज़ी: Kati) भारत के झारखण्ड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ राज्यों में एक प्राचीन आदिवासी खेल है। यह खेल मुख्य रूप से भूमिज और संथाल आदिवासियों द्वारा खेला जाता है।[1] यह लकड़ी से बने अर्धवृत्ताकार वस्तु से खेला जाता है, जिसमें 9 से 12 खिलाड़ी भाग लेते हैं। सरकारी संरक्षण के अभाव से यह खेल झारखण्ड के कोल्हान क्षेत्रों में सिमट गया है, अब ग्रामीण इलाकों में भी यह खेल लुप्त होने के कगार पर है। हाल ही में टाटा स्टील फाउंडेशन (टीएसएफ) द्वारा झारखण्ड में प्रतियोगिता आयोजित कर इस खेल को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।[2][3]

काती

झारखण्ड के गांव में 'काती खेल'
विशेषताएँ
दल के सदस्य प्रत्येक दल में 9–11 खिलाड़ी
मिश्रित लिंग केवल पुरूष खिलाड़ी
उपकरण काती (इमली की लकड़ी का एक अर्धवृताकार डिस्क),
बांस की लाठी
स्थल खुला मैदान

इस खेल में केवल पुरूष खिलाड़ी ही खेलते है। युवाओं में खेल के प्रति अलोकप्रियता के कारण, यह विलुप्त हो रहा है। पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में यह पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुकी है, वहीं झारखण्ड और ओडिशा सीमा क्षेत्रों में अब भी खेला जाता है। संथाली भाषा में इसे 'काती एनेज'; अर्थात 'काती खेल' कहा जाता है।

भूमिज और संथाल आदिवासी समुदायों द्वारा अग्रणी रूप से खेला जाने वाला खेल, काती पारंपरिक रूप से फसल के मौसम के बाद खेला जाता है। खेल में खिलाड़ियों की संख्या और मैदान का आकार निश्चित नहीं है। प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक बांस की लाठी और इमली की लकड़ी से बनी एक अर्धवृत्ताकार डिस्क होती है, जिसे काती कहा जाता है।[4]

काती खेल त्वरित सजगता और पैरों के कुशल उपयोग का खेल है। खेल में एक टीम अपनी कातियों को एक स्थान पर एक पंक्ति में सीधा खड़ा कर देती है, वहीं दूसरी टीम अपनी कातियों से उस पर प्रहार करके उसे गिराने का प्रयास करती है, जिसे वे एक निश्चित दूरी से एक लंबे बांस की सहायता से अपने पैर से मारते हैं। प्रत्येक सफल प्रहार अंक अर्जित करता है। अंत में, सफल प्रहार करने वाली टीम 'बर्गा' (राजा) पर प्रहार करती है, जो दोनों तरफ कातियों के बीच में रखा गया एक छोटा लकड़ी है। हालांकि प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या और मैदान के आकार के आधार पर राउंड की संख्या भिन्न हो सकती है।[5]

पुनर्जीवित करने का प्रयास

संपादित करें

टाटा स्टील की शाखा 'ट्राइबल कल्चरल सोसायटी' और 'टाटा स्टील फाउंडेशन' ने झारखण्ड में आदिवासी खेलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया, जिसमें भूमिज और संथाल की काती, हो जनजाति की शेकोर, आदि शामिल हैं।[6][7]

2008 में, टाटा स्टील द्वारा जमशेदपुर के गोपाल मैदान में काती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था।[8] आदिवासी युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए, टाटा स्टील पूर्वी सिंहभूम जिले में प्रतिवर्ष 'काती प्रीमियर लीग' का आयोजन करती है, जिसमें झारखण्ड और ओडिशा के खिलाड़ी शामिल होते हैं।[9] 2010 में पहला काती प्रीमियर लीग का आयोजन जमशेदपुर के जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम, करनडीह में किया गया था।

इन्हें भी देखें

संपादित करें
  1. "जनजातीय खेल काटी को लोकप्रिय बनाने में जुटी टीएसएफ". Hindustan. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  2. "टीएसएफ के द्वारा काती खेल प्रतियोगिता का आयोजन". Hindustan. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  3. "Tata Steel comes forward to revive Kati". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 2008-01-05. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  4. "Kati finds its way back into arena in style". www.telegraphindia.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  5. "Tata Steel comes forward to revive Kati". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 2008-01-05. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  6. Services, Hungama Digital. "Tata Steel nurturing tribal communities in Jharkhand". www.tatasteel.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  7. "Ethnic sports, West Bengal, Assam, northeast, sekkor, santhals, kati, hambi". BusinessLine (अंग्रेज़ी में). 2018-01-26. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  8. "Tata Steel comes forward to revive Kati". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 2008-01-05. अभिगमन तिथि 2024-02-04.
  9. "Premier League to revive indigenous Santhal sport". India Today (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-02-04.