काशीनाथ नारायण दीक्षित

काशीनाथ नारायण दीक्षित (२१ अक्टूबर १८८९ - १३ अगस्त १९४६) भारतीय पुरातत्व के विद्वान थे। आपने मोहन जोदड़ो तथा पहाड़पुर के पुराताविक उत्खनन कार्य का निर्देशन किया। वे पुरातत्व के तीनों अंगों - लिपि, अभिलेख तथा मुद्राशास्त्र के विशेषज्ञ थे। आपने भारतीय संग्रहालयों का अखिल भारतीय संघ स्थापित कराया।

जीवन परिचय संपादित करें

काशीनाथ नारायण दीक्षित का जन्म २१ अक्टूबर को महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ। यहीं पर प्रारंभिक अध्ययन करने के बाद आपने सांगली में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। एम. ए. (संस्कृत) में विशेष योग्यता प्राप्त करने के कारण मुम्बई विश्वविद्यालय के सभी पुरस्कार और वृत्तियाँ आपने प्राप्त कीं। १९१२ में पुरातत्व विभाग में शिक्षार्थी के रूप में आपका ही नाम स्वीकृत हुआ। बंबई और लखनऊ संग्रहालय के क्यूरेटर के रूप में आपने जो कीर्ति प्राप्त ही वह सच्चे अर्थ में आपकी अग्र सफलताओं की पहली सीढ़ी थी। १९२० में 'आर्केयालॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया' के आप सुपरिटेंडेंट नियुक्त हुए। इसी रूप में आपने मोहेंजोदड़ो और पहाड़पुर के उत्खनन कार्य का निर्देशन किया था। सिंधुघाटी की सभ्यता की ओर दुनियाँ के पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान आकर्षित हो रहा था और इस दृष्टि से आपका कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था। १९३० में डिप्टी डायेरक्टर जनरल ऑव आर्केयालॉजी के रूप में आपकी नियुक्ति हुई। कुछ ही वर्षों में आप अपनी योग्यता से डायरेक्टर जनरल ऑव आर्केयालॉजी बने (१९३७)।

आर्केयालॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया की रिपोर्ट, पहाड़पुर के उत्खनन से संबंधित आपका शोधकार्य तथा 'महोबा की छ: शिल्पकृतियों' के अतिरिक्त आपने 'एपिग्राफिया इंडिका' में कितने ही शिलालेखों का संपादन किया था। १९३२ में आप गवर्नमेंट एपिग्राफिस्ट भी रहे। पुरात्व की सभी शाखाओं, लिपि, अभिलेख तथा मुद्राशास्त्र के आप प्रकांड पंडित थे। पश्चिम के देशों में ऐतिहासिक संग्रहालयों तथा उत्खनन कार्यों की जानकारी प्राप्त करने के लिए आपने इंग्लैंड, यूरोप, मेसोपोटामिया आदि देशों की यात्रा की। बहुत वर्षोंतक आप न्युमिस्मैटिक सोसायटी ऑव इंडिया के अध्यक्ष रहे। मुद्राशास्त्र से संबंधित अनेक समस्याओं पर आपके निबंध हैं। आपने संग्रहालयों का एक अखिल भारतीय संघ कायम किया जिसके आप अध्यक्ष रहे। गुजरात में प्राग-ऐतिहासिक युग संबंधी उत्खनन कार्य आपने ही प्रारंभ किया और उसे सतत मार्गदर्शन दिया।

इतिहास संबंधी सेवाओं के कारण आप १९४३ में अलीगढ़ की हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। मद्रास विश्वविद्यालय में १९३५ के मेयर लेक्चर्स आपकी विद्वत्ता के चिरस्मारक रहेंगे। आपको मराठी, हिंदी, उर्दू, बंगला, अनेक भाषाएँ आती थीं। इसीलिए हर प्रांत के संग्रहालयों तथा पुरातत्व के संबंध में आपकी जानकारी विशेष थी। स्पष्टवक्ता होने पर भी आप दूसरों के मत का आदर करते थे। नई पीढ़ी के विद्वानों की आपने सर्वदा मदद की। आपका अत्यंत प्रिय सुभाषित था 'अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिंतयेत्' (विद्या व धन प्राप्त करते समय बुद्धिमान मनुष्य को ऐसे आचरण करना चाहिये मानो मुझे कभी भी बुढ़ापा व मृत्यु नहीं आयेगी)।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें