कुम्भलगढ़ दुर्ग
कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के जोधपुर के निकट राजसमन्द ज़िले में स्थित एक दुर्ग है निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।[1]
कुम्भलगढ़ | |
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प्रकार | लघु दुर्ग |
स्थान | राजसमन्द ज़िला, राजस्थान |
निर्देशांक | 25°8′56″N 73°34′49″E / 25.14889°N 73.58028°Eनिर्देशांक: 25°8′56″N 73°34′49″E / 25.14889°N 73.58028°E |
क्षेत्रफल | 268 हे॰ (1.03 वर्ग मील) (662 एकड़) |
निर्माण | १५वीं शताब्दी |
वास्तुशैली | MANDAN |
प्रकार | सांस्कृतिक |
मानदंड | ii, iii |
मनोनीत | 2013 (36वाँ अधिवेषण) |
का हिस्सा | राजस्थान के पहाड़ी दुर्ग |
संदर्भ सं. | 247 |
देश | भारत |
क्षेत्र | दक्षिण एशिया |
परिचय
संपादित करें- दुर्ग का निर्माण - राणा कुंभा , 13 मई 1459 को
- देश - भारत
- राज्य - राजस्थान
- जिला - राजसमंद
- संस्थापक - महाराणा कुम्भकर्ण (कुम्भा)
- ऊंचाई - 3568 फिट ऊंची चोटी
- किले की दीवार - 36 किलोमीटर लंबी 21 फीट चौड़ी
- महाराणा प्रताप जन्म — 1540
- Anil choudhary
विवरण
संपादित करेंइस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 वार शनिवार को कराया था। इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था। इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है। इस किले की दीवारे लगभग ३६ किमी लम्बी है और यह किला किला यूनेस्को की सूची में सम्मिलित है। कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते हैं। यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजय रहा। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया। वहीं ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे "कटारगढ़" के नाम से जाना जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है।
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का बचपन बीता था। उड़ना राजकुमार कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी इस दुर्ग में देखी जाती है | महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे। इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजय ही रहा है लेकिन इस दुर्ग की कई दुखांत घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही शुरवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र ऊदा सिंह द्वारा राज्य पिपासा में मारे गए। कुल मिलाकर दुर्ग ऐतिहासिक विरासत की शान और शूरवीरों की तीर्थ स्थली रहा है। माड गायक इस दुर्ग की प्रशंसा में अक्सर गीत गाते हैं :
- कुम्भलगढ़ कटारगढ़ पाजिज अवलन फेर।
- संवली मत दे साजना, बसुंज, कुम्भल्मेर॥
इस किले की ऊँचाई के संबंध में अबुल फजल ने लिखा है कि "यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।" कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्भेद्य स्वरूप की दृष्टि से चित्तौड़ के बाद इस दुर्ग को रखा है तथा इस दुर्ग की तुलना (सुदृढ़ प्राचीर, बुर्जों तथा कंगूरों के कारण) 'एट्रस्कन' से की है।
किले का स्थापत्य व अन्य स्थल
संपादित करें- दुर्ग की प्राचीर 36 मील लम्बी व 7 meter ही चौड़ी है जिस पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं, इसलिए इसे भारत की महान दीवार के नाम से जाना जाता है।
- किले के उत्तर की तरफ का पैदल रास्ता 'टूट्या का होड़ा' तथा पूर्व की तरफ हाथी गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवहा' कहलाता है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता 'हीराबारी' कहलाता है जिसमें थोड़ी ही दूर पर किले की तलहटी में महाराणा रायमल के 'कुँवर पृथ्वीराज की छतरी' बनी है, इसे 'उड़ना राजकुमार' के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज स्मारक पर लगे लेख में पृथ्वीराज के घोड़े का नाम 'साहण' दिया गया है।
- किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल तथा विजयपाल आदि दरवाजे हैं। कुम्भलगढ़ के किले के भीतर एक लघु दुर्ग कटारगढ़' स्थित है जिसमें 'झाली रानी का मालिया' महल प्रमुख है।
- इस दुर्ग में मंदिर वास्तुकला और स्थापत्य कला दर्शनीय है।
- नीलकंठ महादेव मंदिर,चांमुडाली देवी का मंदिर प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक सुरक्षित और भव्य है।
- कटारगढ़ लघुदुर्ग में उदयसिंह का पालन पोषण ओर राज्याभिषेक हुआ।
- कर्नल जेम्स टोड़ ने कुम्भलगढ़ दुर्ग को ऐट्रुक्शन की उपमा दी।
- इस दुर्ग मे क़रीब ६० से अधिक हिंदू ऐवम जैन मंदिर बने हुऐ हैं।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- मंडन सूत्रधार - कुम्भलगढ़ दुर्ग का वास्तुशिल्पी
- राजसमन्द ज़िला
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Asawa, Dr. Krishnadas Nair (2004). Kumbhalgarh the invincible fort (5th ed.). Jodhpur: Rajasthani Granthagar.