खाटूश्यामजी
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खाटू श्याम मंदिर भारतीय राज्य राजस्थान के सीकर जिले में सीकर शहर से सिर्फ 43 किमी दूर खाटू गांव में एक हिंदू मंदिर है। यह देवता कृष्ण और बर्बरीक की पूजा करने के लिए एक तीर्थ स्थल है, जिन्हें अक्सर कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तों का मानना है कि मंदिर में बर्बरीक का असली सिर है, जो एक महान योद्धा थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर उन्हें गुरु दक्षिणा के रूप में अर्पित कर दिया था और बाद में श्री कृष्ण ने उन्हें श्याम नाम से पूजित होने का आशीर्वाद दिया। दिव्या श्री श्याम कथा जो 40 बर्ष के संसोधन वह पुराणो के अनुसार लिखा गया है। हमे श्याम बाबा के जीवन रचनात्मक रूप धारण किए हुए हैं। लेखक स्वामी योगीराज प्यारेनन्द महराज 5 दिवसीय कथा का बिधान भी है श्याम कथा बाचक अनिल कृष्ण गोस्वामी
खाटू श्याम बाबा का मंदिर | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | बर्बरीक |
अवस्थिति जानकारी | |
ज़िला | सीकर |
राज्य | राजस्थान |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
निर्माता | राजा रूप सिंह चौहान |
वेबसाइट | |
https://khatu-shyam.in |
परिचय
संपादित करेंहिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। बर्बरीक जी का शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कथा के अनुसार एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।[1]
- "अनेन यः सुह्रदयं श्रावणेsभ्यर्च्च दर्शके। वैशाखेच त्रयोदश्यां कृष्णपक्षे द्विजोत्तमाः। शतदीपैः पूरिकाभिः संस्तवेत्तस्य तुष्यति"।। (माहेश्वरखंड के कुमारिकाखंड के ६६वें अध्याय का ११६वाँ श्लोक)
इस श्लोक का अर्थ है - "हे श्रेष्ठ ब्राह्मणों! श्रावणी अमावस्या के दिन अथवा वैशाख महिने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथियों को एक सौ (१००) दीपकों के साथ जो पूड़ी (तली हुई रोटी) निवेदन करके जो बर्बरीक जी की वंदना करता है, सुह्रदय जी (बर्बरीकजी) उस भक्त से प्रसन्न (संतुष्ट) हो जाते हैं"।
सभी श्याम प्रेमी वीर बर्बरीक (श्याम बाबा) का दीपोत्सव से स्वागत करते हैं और पूड़ी कचौड़ी का निवेदन करके इस स्तव का पाठ करते हैं।
- "जय जय चतुरशीतिकोटिपरिवार सूर्यवर्चाभिधान यक्षराज*
- जय भूभारहरणप्रवृत्ति लघुशापप्राप्तनैर्ऋतियोनिसम्भव*
- जयकामकण्टकटाकुक्षिराजहंस जय घटोत्कचानन्दवर्धन बर्बरीकाभिधान*
- जय कृष्णोपदिष्ट श्री गुप्तक्षेत्र देवीसमाराधनप्राप्तातुलवीर्य
- जय विजय सिद्धि दायक जय पिङ्गलारेपलेन्द्रद्रुहद्रुहानव कोटिश्वरपलाशनदावानल
- जय भूपातालान्तराले नागकन्यापरिहारक*
- जय भीममानमर्दन जय सकलकौरवसेनावधमुहूर्तप्रवृत*
- जय श्री कृष्णवरलब्धसर्ववरप्रदानसामर्थ्य*
- जयजयकलिकालवन्दित नमोनमस्ते पाहिपाहीति" ॥११५॥*
हे 84 कोटी परिवार युक्त सूर्यवर्चा नामक प्रसिद्ध यक्षराज, हे भूभाहरण प्रवृत्त! आपने सामान्य दोष के कारण शापवशात राक्षस योनि प्राप्त किया। आपकी जय हो। आप माता कामकटंकटा के कोखरूपी सरोवर के राजहंस हैं। आपकी जय हो । आप घटोत्कच का आनंदवर्द्धन करते हैं , आपकी जय हो , आपकी जय हो । आपने कृष्ण के उपदेश से गुप्तक्षेत्रवासिनी देवियों की आराधना द्वारा अतुलित वीर्यलाभ किया , आपकी जय हो , आपकी जय हो । आप पिंगला द्रुहद्रुहा, रेपलेन्द्र तथा 9 कोटि राक्षसपति पलाशी राक्षसरूप वन के दावानल रूप हैं । आपकी जय हो । आपने भूमि तथा पाताल के अन्तराल भाग की उपयाचिका नागकन्याओं का प्रत्याखान किया था , आपकी जय हो । आपने भीमसेन के भी गर्व को खर्व किया । आप मुहूर्तमात्र में समस्त कौरवसैन्य संहारार्थ प्रवृत्त हो गये थे । आपकी जय हो । आपने कृष्ण से सबको वर देने की शक्ति का वरलाभ किया । आपकी जय हो । आप कलिकाल में सर्वसाधारण के वन्दनीय होंगे , आपकी जय हो । आपको प्रणाम ! आपको प्रणाम ! आप रक्षा करें , रक्षा करें ॥११५॥
॥स्कन्दपुराण से॥
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Temple Profile: Mandir Shri Khatu Shyam Ji" (अंग्रेज़ी में). मूल से 18 फ़रवरी 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-10-20.