गाइड (1965 फ़िल्म)

हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र
(गाइड से अनुप्रेषित)

गाइड 1965 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह भारत के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखक आर के नारायण के द गाइड नाम के उपन्यास पर आधारित है।

गाइड

गाइड का पोस्टर
निर्देशक विजय आनन्द
लेखक आर के नारायण
निर्माता देव आनन्द
अभिनेता देव आनन्द,
वहीदा रहमान,
लीला चिटनिस,
अनवर हुसैन,
उल्हास,
गजानन जागीरदार,
रशीद ख़ान,
किशोर साहू,
प्रवीन कौल,
मृदुला रानी,
पूर्णिमा,
कृष्ण धवन,
प्रेम सागर,
नर्बदा शंकर,
छायाकार फ़ाली मिस्त्री
संगीतकार सचिन देव बर्मन
प्रदर्शन तिथि
1965
देश भारत
भाषा हिन्दी

फिल्म शुरू होती है वर्तमान से जब राजू (देव आनन्द) जेल से रिहा हो रहा है और फिर कहानी अतीत में चलती है। राजू एक गाइड है, जो पर्यटकों को ऐतिहासिक स्थलों में घुमाकर अपनी कमाई करता है। एक दिन, एक अमीर और बूढ़ा पुरातत्वविद् मार्को (किशोर साहू) उनकी युवा पत्नी रोज़ी (वहीदा रहमान), जो कि एक वेश्या की बेटी है, के साथ शहर में आता है। मार्को शहर के बाहर गुफाओं में कुछ शोध करना चाहता है और अपने गाइड के रूप में राजू को काम देता है। वह एक नई गुफा का पता लगाता है और अपने काम में इतना खो जाता है कि रोज़ी पर ध्यान नहीं देता। जब मार्को गुफा की खोज में लगा हुआ है, राजू रोज़ी को सैर सपाटे के लिए ले जाता है और उसके नृत्य क्षमता और मासूमियत की भूरि-भूरि प्रशंसा करता है। रोज़ी राजू को बताती है कि वह एक वेश्या की बेटी है और वह समाज में सम्मान हासिल करने के लिए कैसे मार्को की पत्नी बनी, लेकिन उसके लिए उसने एक बड़ी कीमत चुकाई है क्योंकि उसे नृत्य का जुनून है जबकि यह मार्को को सख़्त नापसंद है। इस बीच, रोज़ी जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है। इस घटना की खबर मिलने पर मार्को गुफाओं से वापस आता है और रोजी को ठीक देख कर काफ़ी नाराज़ होता है और रोज़ी से कहता है कि उसकी आत्महत्या करने की कोशिश एक नाटक थी, अन्यथा अगर वह वास्तव में मरना चाहती थी तो अधिक नींद की गोलियाँ खाकर यह आसानी से कर सकती थी। एक दिन जब रोज़ी गुफाओं में जाती है तो पाती है कि मार्को एक आदिवासी लड़की के साथ प्रेम रच रहा है। इसको लेकर रोज़ी और मार्को में काफ़ी कहा-सुनी होती है और रोज़ी एक बार फिर आत्महत्या करने की कोशिश करती है।
राजू उसे समझाता है कि आत्महत्या पाप है और वह अपना सपना पूरा करने के लिए ज़िंदा रहे। रोज़ी मार्को से सम्बन्ध तोड़ लेती है लेकिन अब उसे सर छुपाने के लिए जगह चाहिये और किसी का सहारा भी जो उसे राजू देता है। राजू के समुदाय में रोज़ी को भी वेश्या ही माना जाता है (क्योंकि पुराने ज़माने में राजघरानों में नाचने वाली वेश्या की दृश्टि से देखी जाती थीं)। राजू की माँ (लीला चिटनिस) और मामा (उल्हास) उससे आग्रह करते हैं कि रोज़ी को घर से बाहर निकाल दे लेकिन राजू मना कर देता है तो उसकी माँ उसे छोड़कर अपने भाई के साथ रहने चली जाती है। उसका मित्र और ड्राइवर ग़फ़्फ़ूर (अनवर हुसैन) भी रोज़ी को लेकर उससे किनारा कर लेता है। राजू की आमदनी ख़त्म हो जाती है और पूरा शहर उसके खिलाफ हो जाता है। इन सबके बावजूद राजू रोज़ी को एक गायक और नृत्यांगना बनने के लिए प्रोत्साहित करता है और उसकी मदद करता है। और जल्द ही रोज़ी एक स्टार बन जाती है। ज्यों-ज्यों रोज़ी नई ऊँचाईयाँ छूती है, राजू आवाराग़र्दी करने लगता है और उसे जुए और नशे की लत लग जाती है। अब फिर मार्को वापस आता है। रोजी को वापस जीतने की कोशिश करने के मन से, वह रोज़ी से मिलने आता है और फूलों का गुलदस्ता लाता है। बीच में उससे राजू टकरा जाता है और राजू उससे फूलों का गुलदस्ता ले लेता है। मार्को राजू से कहता है कि रोज़ी के कुछ गहने है जो एक लॉकर में जमा हैं और जिनको निकालने के लिए रोज़ी के हस्ताक्षर चाहियें। राजू, इस आशंका में कि यदि मार्को और रोज़ी दोबारा मिले तो उनके सम्बन्ध फिर न स्थापित हो जायें, लॉकर के पेपरों में रोज़ी के जाली हस्ताक्षर कर देता है, लेकिन मार्को को रोज़ी से मिलने नहीं देता है।
इस बीच राजू और रोज़ी के सम्बन्धों में खटास आ जाती है जब वह राजू को अपने पास आने से भी मना कर देती है और कहती है कि अगर राजू उसके क़रीब आया तो वह बाहर चली जायेगी। इस से पहले दोनों में बहस हुयी थी और रोज़ी ने मार्को को याद कर कहा था कि शायद मार्को ठीक कहता था कि मर्द को औरत की आमदनी में नहीं जीना चाहिये। जवाब में राजू कहता है कि यह रोज़ी की ग़लतफ़हमी है कि वह अपने बूते में स्टार बन गयी है और उसको स्टार बनाने में राजू का भी बड़ा हाथ है।
कुछ समय बाद रोज़ी को जालसाज़ी का पता चल जाता है। राजू को दो साल की सज़ा हो जाती है। रोज़ी को यह समझ नहीं आता है कि राजू ने जालसाज़ी क्यों की जबकि वह रोज़ी से सीधे पैसे मांग सकता है। राजू ने पैसे की ख़ातिर नहीं बल्कि रोज़ी के प्यार में ऐसा कदम उठाया था क्योंकि वह मार्को और रोज़ी को मिलने नहीं देना चाहता था।
अब फ़िल्म वर्तमान में लौट आती है। राजू की रिहाई के दिन रोज़ी और राजू की माँ जेल में उसे लेने आते हैं लेकिन उन्हें पता चलता है कि अच्छे आचरण के कारण राजू को छः महीने पहले ही रिहा कर दिया गया है। रोज़ी और राजू की माँ अपने मनमुटाव मिटा देते हैं।
रिहाई होने के बाद राजू अकेला भटकता रहता है। गरीबी, निराशा, भूख और अकेलेपन के कारण वह इधर-उधर भटकता है। एक दिन वह कुछ साधुओं की टोली के साथ एक छोटे से गाँव के पुराने मंदिर के अहाते में सो जाता है और अगले दिन उस मंदिर से निकलने से पहले एक साधु सोते हुये राजू के ऊपर पीताम्बर वस्त्र उढ़ा देता है। अगले दिन गांव का एक किसान, भोला, पीताम्बर वस्त्र में सोते हुये राजू को साधु समझ लेता है। भोला की बहन शादी न करने की ज़िद कर रही थी। भोला उसे राजू के पास लाता है और राजू उसे समझा-बुझाकर शादी के लिए राज़ी कर लेता है। भोला और भी आश्वस्त हो जाता है कि राजू एक साधु है। वह यह बात सारे गांव में फैला देता है। गांव वाले उसे साधु मान लेते हैं और उसके लिए खाना और अन्य उपहार लेकर आते हैं और अपनी समस्याएं भी उसको बताते हैं। अब राजू उस गांव में स्वामी जी के नाम से जाना जाने लगता है और गांव के पण्डितों से उसके मतभेद भी हो जाते हैं। गांव वालों को एक कहानी सुनाते हुये राजू उनको एक साधु के बारे में बताता है कि एक बार एक गांव में अकाल पड़ गया था और उस साधु ने १२ दिन तक उपवास रखा और उस गांव में बारिश हो गई।
संयोग से उस गांव के इलाके में भी अकाल पड़ जाता है। गांव का एक मूर्ख राजू से वार्तालाप के दौरान सुनता कुछ और है और गांव वालों को आकर बताता है कि स्वामी जी ने वर्षा के लिए १२ दिन का उपवास करने का निर्णय लिया है। राजू पशोपेश में पड़ जाता है। पहले तो राजू इसका विरोध करता है। वह भोला को यहाँ तक बताता है कि वह एक सज़ायाफ़्ता मुजरिम है जिसे एक लड़की के कारण सज़ा मिली है। लेकिन इस पर भी गांव वालों की उस पर से आस्था कम नहीं होती है और वह कुख्यात डाकू रत्नाकर का उदाहरण देते हैं जो आगे चलकर वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध होते हैं।
अंततः राजू उपवास के लिए राज़ी हो जाता है हालांकि उसे विश्वास नहीं होता कि मनुष्य के उपवास रखने में और वर्षा होने में कोई संबन्ध है। लेकिन उपवास के दौरान राजू का आध्यात्मिक विकास होता है और उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल जाती है। हज़ारों की संख्या में दर्शनार्थी उससे आशीर्वाद लेने आ ने लगते हैं। उसकी ख्याति सुनकर रोज़ी, उसकी माँ और उसका दोस्त ग़फ़्फ़ूर भी उससे मिलने आते हैं। ग़फ़्फ़ूर को भोला मंदिर के अन्दर आने नहीं देता है क्योंकि वह दूसरे धर्म का है। राजू मध्यस्थता करता है और कहता है कि इन्सानियत, प्रेम और परोपकार ही उसका धर्म है। धीरे-धीरे राजू की हालत नाज़ुक होती जाती है। आखिर में बारहवें दिन वर्षा होती है लेकिन राजू का निधन हो जाता है। जहाँ एक ओर मन्दिर के बाहर गांव वाले खुशी से झूम रहे हैं वहीं दूसरी ओर मन्दिर के अन्दर उसके स्वजन उसकी मृत्यु का मातम मनाते हैं।

मुख्य कलाकार

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गीतकार:- शैलेन्द्र

# गीत गायक जिन पर फ़िल्माया गया
"आज फिर जीने की तमन्ना है" लता मंगेशकर देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"दिन ढल जाये" मोहम्मद रफ़ी देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"गाता रहे मेरा दिल" किशोर कुमार तथा लता मंगेशकर देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"क्या से क्या हो गया" मोहम्मद रफ़ी देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"पिया तोसे नैना लागे रे" लता मंगेशकर वहीदा रहमान
"सइंया बेईमान" लता मंगेशकर देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"तेरे मेरे सपने" मोहम्मद रफ़ी देव आनन्द तथा वहीदा रहमान
"वहाँ कौन है तेरा" सचिन देव बर्मन देव आनन्द
"हे राम हमारे रामचन्द्र" मन्ना डे और साथी देव आनन्द
१० "अल्लाह मेघ दे पानी दे" सचिन देव बर्मन देव आनन्द

रोचक तथ्य

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उपन्यास से अंतर

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  • उपन्यास में राजू रोज़ी का प्यार पाने के लिये जतन करता है, लेकिन फ़िल्म में रोज़ी पहले ही अपनी शादी से दु:खी है और मार्को को किसी और के साथ देखकर ख़ुद ही राजू के पास आ जाती है।
  • फ़िल्म में राजू की मौत प्रसिद्धि में होती है और वर्षा होने से गांव का अकाल भी दूर हो जाता है, लेकिन उपन्यास में राजू की मौत ग़ुमनामी में होती है और गांव के अकाल ख़त्म होने का भी कोई ज़िक्र नहीं है।

बौक्स ऑफिस

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समीक्षाएँ

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नामांकन और पुरस्कार

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जीते

नामांकित

  • तीसरी सर्वश्रेष्ठ फ़िचर फ़िल्म (हिन्दी)

बाहरी कड़ियाँ

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