गेंदालाल दीक्षित

यह बात सही है कि मैनपुरी पहुँचते ही दीक्षित जी ने एकदम पैंतरा बदला और पुलिस से डाँटकर कहा कि इन लड़

पं॰ गेंदालाल दीक्षित (जन्म:१८८८, मृत्यु:१९२०) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा, महान क्रान्तिकारी व उत्कट राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने आम आदमी की बात तो दूर, डाकुओं तक को संगठित करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खड़ा करने का सफल प्रयास किया। दीक्षित जी उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों के द्रोणाचार्य कहे जाते थे। उन्हें मैनपुरी षड्यन्त्र का सूत्रधार समझ कर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया किन्तु वे अपनी सूझबूझ और प्रत्युत्पन्न मति से जेल से निकल भागे। साथ में एक सरकारी गवाह को भी ले उड़े। सबसे मजे की बात यह कि पुलिस ने सारे हथकण्डे अपना लिये परन्तु उन्हें अन्त तक खोज नहीं पायी। आखिर में कोर्ट को उन्हें फरार घोषित करके मुकदमे का फैसला सुनाना पड़ा।

पण्डित गेंदालाल दीक्षित

जन्म और बचपन

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पं॰ गेंदालाल दीक्षित का जन्म माघ बदी ५, विक्रम संवत १९४७, तदनुसार ३० नवम्बर सन् १८८८[1] को आगरा जिले की तहसील बाह के ग्राम मई में हुआ था। यह गाँव बटेश्वर के निकट बसा हुआ है। उनके पिता का नाम पं॰ भोलानाथ दीक्षित था। गेंदालाल जी की आयु मुश्किल से ३ वर्ष की रही होगी कि माता का निधन हो गया। बिना माँ के बच्चे का जो हाल होता है वही इनका भी हुआ। हमउम्र बच्चों के साथ निरंकुश खेलते-कूदते कब बचपन बीत गया पता ही न चला परन्तु एक बात अवश्य हुई कि बालक के अन्दर प्राकृतिक रूप से अप्रतिम वीरता का भाव प्रगाढ़ होता चला गया।

अध्ययन और अध्यापन

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गाँव के विद्यालय से हिन्दी में प्राइमरी परीक्षा पास कर इटावा से मिडिल और आगरा से मैट्रीकुलेशन किया। आगे पढ़ने की इच्छा तो थी परन्तु परिस्थितिवश उत्तर प्रदेश में औरैया जिले की डीएवी पाठशाला में अध्यापक हो गये। किन्तु सन १९०५ में बंगाल के विभाजन के बाद जो देशव्यापी स्वदेशी आन्दोलन चला उससे आप भी अत्यधिक प्रभावित हुए।

क्रान्तिकारी जीवन

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आपने शिवाजी समिति के नाम से डाकुओं का एक संगठन बनाया और शिवाजी की भांति छापामार युद्ध करके अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध उत्तर प्रदेश में एक अभियान प्रारम्भ किया किन्तु दल के ही एक सदस्य दलपतसिंह की मुखबिरी के कारण आपको गिरफ्तार करके पहले ग्वालियर लाया गया फिर वहाँ से आगरा के किले में कैद करके सेना की निगरानी में रख दिया गया।

बिस्मिल से विमर्श

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आगरे के किले में राम प्रसाद बिस्मिल ने आकर गुप्त रूप से आपसे मुलाकात की और संस्कृत में सारा वार्तालाप किया जिसे अंग्रेज पहरेदार बिलकुल न समझ पाये। अगले दिन आपने योजनानुसार पुलिस गुप्तचरों से कुछ रहस्य की बातें बतलाने की इच्छा जाहिर की। अधिकारियों की अनुमति लेकर आपको आगरा से मैनपुरी भेज दिया गया जहाँ 'बिस्मिल' के कुछ साथी नवयुवक पहले से ही हवालात में बन्द थे।

मैनपुरी षड्यन्त्र

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मैनपुरी पहुँचते ही दीक्षित जी ने एकदम पैंतरा बदला और पुलिस से डाँटकर कहा कि इन लड़कों को क्या पता, मैं इस काण्ड का सारा भेद जानता हूँ। पुलिस यकायक झाँसे में आ गयी और आपको उन लड़कों के साथ शामिल कर लिया गया। बाकायदा चार्जशीट तैयार की गयी और मैनपुरी के स्पेशल मैजिस्ट्रेट बी॰ एस॰ क्रिस की अदालत में गेंदालाल दीक्षित सहित सभी नवयुवकों पर सम्राट के विरुद्ध साजिश रचने का मुकदमा दायर करके मैनपुरी की जेल में डाल दिया गया। इस मुकदमे को भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में मैनपुरी षड्यन्त्र के नाम से जाना जाता है।

शातिर फरार

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मुकदमे के दौरान आपने एक और चाल चली। जेलर से कहा कि सरकारी गवाह से उनके दोस्ताना ताल्लुकात हैं अत: यदि दोनों को एक ही बैरक में रख दिया जाये तो कुछ और षड्यन्त्रकारी गिरफ्त में आ सकते हैं। जेलर ने दीक्षित जी की बात का विश्वास करके सी॰ आई॰ डी॰ की देखरेख में सरकारी गवाहों के साथ हवालात में भेज दिया। थानेदार ने एहतियात के तौर पर दीक्षित जी का एक हाथ और सरकारी गवाह का एक हाथ आपस में एक ही हथकड़ी में कस दिया ताकि रात में हवालात से भाग न सकें।

गवाह भी लापता

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किन्तु गेंदालाल जी ने वहाँ भी सबको धता बता दी और रातों-रात हवालात से भाग निकले। केवल इतना ही नहीं, अपने साथ लॉक-अप में बन्द उस सरकारी गवाह रामनारायण को भी उड़ा ले गये जिसका हाथ उनके हाथ के साथ हथकड़ी में कसकर जकड़ दिया गया था। किंकर्तव्यविमूढ़ सारे अधिकारी, सी॰ आई॰ डी॰ और पुलिस वाले उनकी इस हरकत को देख हाथ मलते रह गये।

दुखद अन्त

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अहर्निश कार्य करने व एक क्षण को भी विश्राम न करने के कारण आपको क्षय रोग हो गया था। पैसे के अभाव में घर वालों ने आपको दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया जहाँ इस अदम्य साहसी व्यक्ति ने २१ दिसम्बर १९२० को दोपहर बाद २ बजे[2] शरीर छोड़ दिया। क्रान्तिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने 'अज्ञात' नाम से आपकी जीवनी लिखी जो कानपुर से निकलने वाली हिन्दी पत्रिका 'प्रभा' के ३ सितम्बर १९२४ के अंक में छपी।

  1. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' सरफरोशी की तमन्ना (भाग-४) पृष्ठ ६० १९९७ प्रवीण प्रकाशन दिल्ली
  2. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' सरफरोशी की तमन्ना (भाग-४) पृष्ठ ६९ १९९७ प्रवीण प्रकाशन दिल्ली

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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