शतरंज

दो खिलाड़ियों का रणनीतिक खेल
(चैस से अनुप्रेषित)

शतरंज दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक खेल है। खेल की शुरुआत 7वी शताब्दी के आसपास चतुरंग नाम से भारत में हुई थी, जो बाद में अरबी लोगो ने यूरोप में फैला दी। शतरंज का आधुनिक रूप यूरोप में 15वी शताब्दी के आखिर में बना।

शतरंज
स्टॉन्टन शतरंज सेट के मोहरें (बाएं से दाएं): सफेद राजा, काला हाथी, काला वज़ीर या रानी, सफेद प्यादा या सैनिक, काला घोड़ा, और सफेद ऊंट।
शासक संगठनअंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ
पहले बार खेला15वीं सदी
खासियत
टीम सदस्य1
प्रकारबोर्ड गेम

शतरंज एक रणनीति खेल है जिसमें कोई छिपी हुई जानकारी शामिल नहीं है और पासा या कार्ड का कोई इस्तेमाल नहीं है। ये एक शतरंज के बोर्ड पर खेला जाता है जिसमें 8×8 ग्रिड में 64 बराबर चौकोर होते हैं। शुरुआत में, हर खिलाड़ी सोलह गोटी को संभालते है: एक राजा, एक रानी, ​​दो हाथी, दो ऊंट, दो घोड़े, और आठ सिपाही। सफेद पहले चलते है, उसके बाद काला। सामनेवाले के राजा को शह देने में राजा को फौरन हमला करना ("चेक" करना) शामिल है, जिससे उसके बचने का कोई रास्ता नहीं है। ऐसे भी कई तरीके हैं जिनसे कोई खेल ड्रॉ में खत्म हो सकता है।

19वी शताब्दी में संगठित शतरंज की तरक्की हुई। शतरंज प्रतियोगिता आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फीडे (अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ) द्वारा संभाला जाता है। पहले मान्यता लिए विश्व शतरंज चैंपियन, विल्हेम स्टीनिट्ज़ ने 1886 में अपने खिताब लिया; डिंग लिरेन चालू विश्व चैंपियन हैं। खेल के बनने के बाद से शतरंज सिद्धांत का एक बढ़ा इलाका विकसित हुआ है। शतरंज की रचना में कला के पहलू पाए जाते हैं, और शतरंज ने खुद पश्चिमी संस्कृति और कला पे असर किया है, और गणित, कंप्यूटर विज्ञान और मनोविज्ञान जैसे दूसरे फील्ड के साथ इसका रिश्ता है।

 
दुनिया का पहला शतरंज सेट सिंधु घाटी में मिला था
 
मोहनजोदड़ो ने दुनिया का पहला शतरंज और पासा खोजा

शतरंज छठी शताब्दी के आसपास भारत से मध्य-पूर्व व यूरोप में फैला, जहां यह शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया है। ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है कि शतरंज छट्ठी शताब्दी के पूर्व आधुनुक खेल के समान किसी रूप में विद्यमान था। रूस, चीन, भारत, मध्य एशिया, पाकिस्तान और स्थानों पर पाये गए मोहरे, जो इससे पुराने समय के बताए गए हैं, अब पहले के कुछ मिलते-जुलते पट्ट खेलों के माने जाते हैं, जो बहुधा पासों और कभी-कभी 100 या अधिक चौखानों वाले पट्ट का प्रयोग कराते थे।

शतरंज उन प्रारम्भिक खेलों में से एक है, जो चार खिलाड़ियों वाले चतुरंग नामक युद्ध खेल के रूप में विकसित हुआ और यह भारतीय महाकाव्य महाभारत में उल्लिखित एक युद्ध व्यूह रचना का संस्कृत नाम है। चतुरंग सातवीं शताब्दी के लगभग पश्चिमोत्तर भारत में फल-फूल रहा था। इसे आधुनिक शतरंज का प्राचीनतम पूर्वगामी माना जाता है, क्योंकि इसमें बाद के शतरंज के सभी रूपों में पायी जाने वाली दो प्रमुख विशेषताएँ थी, विभिन्न मोहरों की शक्ति का अलग-अलग होना और जीत का एक मोहरे, यानि आधुनिक शतरंज के राजा पर निर्भर होना।

रुद्रट विरचित काव्यालंकार में एक श्लोक आया है जिसे शतरंज के इतिहासकार भारत में शतरंज के खेल का सबसे पुराना उल्लेख तथा 'घोड़ की चाल' (knight's tour) का सबसे पुराना उदाहरण मानते हैं-

सेना लीलीलीना नाली लीनाना नानालीलीली।
नालीनालीले नालीना लीलीली नानानानाली ॥ १५ ॥

चतुरंग का विकास कैसे हुआ, यह स्पष्ट नहीं है। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि चतुरंग, जो शायद 64 चौखानों के पट्ट पर खोला जाता था, क्रमश: शतरंज (अथवा चतरंग) में परिवर्तित हो गया, जो उत्तरी भारत,पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दक्षिण भागों में ६००ई॰ के पश्चात लोकप्रिय दो खिलाड़ियों वाला खेल था।

एक समय में उच्च वर्गों द्वारा स्वीकार्य एक बौद्धिक मनोरंजन शतरंज के प्रति रुचि में 20वीं शताब्दी में बहुत बृद्धि हुयी। विश्व भर में इस खेल का नियंत्रण फेडरेशन इन्टरनेशनल दि एचेस (फिडे) द्वारा किया जाता है। सभी प्रतियोगिताएं फीडे के क्षेत्राधिकार में है और खिलाड़ियों को संगठन द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार क्रम दिया जाता है, यह एक खास स्तर की उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को "ग्रैंडमास्टर" की उपाधि देता है। भारत में इस खेल का नियंत्रण अखिल भारतीय शतरंज महासंघ द्वारा किया जाता है, जो 1951 में स्थापित किया गया था।[1]

खेल के नियम

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शतरंज सबसे पुराने व लोकप्रिय पट (बोर्ड) में से एक है, जो दो प्रतिद्वंदीयों द्वारा एक चौकोर पट (बोर्ड) या बिसात पर खेला जाता है, जिसपर विशेष रूप से बने दो अलग-अलग रंगों के सामन्यात: सफ़ेद व काले मोहरे होते हैं। सफ़ेद पहले चलता है, जिसके बाद खिलाड़ी निर्धारित नियमों के अनुसार एक के बाद एक चालें चलते हैं। इसके बाद खिलाड़ी विपक्षी के प्रमुख मोहरें, राजा को शहमात (एक ऐसी अवस्था, जिसमें पराजय से बचना असंभव हो) देने का प्रयास कराते हैं। शतरंज 64 ख़ानों के पट या शतरंजी (एक प्रकार की बिसात) पर खेला जाता है, जो रैंक (दर्जा) कहलाने वाली आठ अनुलंब पंक्तियों व फाइल (क़तार) कहलाने वाली आठ आड़ी पंक्तियों में व्यवस्थित होता है। ये ख़ाने दो रंगों, एक हल्का, जैसे सफ़ेद, मटमैला, पीला और दूसरा गहरा, जैसे काला, या हरा से एक के बाद दूसरे की स्थिति में बने होते हैं। पट्ट दो प्रतिस्पर्धियों के बीच इस प्रकार रखा जाता है कि प्रत्येक खिलाड़ी की ओर दाहिने हाथ के कोने पर हल्के रंग वाला खाना हो। सफ़ेद हमेशा पहले चलता है। इस प्रारंभिक क़दम के बाद, खिलाड़ी बारी बारी से एक बार में केवल एक चाल चलते हैं (सिवाय जब "केस्लिंग" में दो टुकड़े चले जाते हैं)। चाल चल कर या तो एक ख़ाली वर्ग में जाते हैं या एक विरोधी के मोहरे वाले स्थान पर क़ब्ज़ा करते हैं और उसे खेल से हटा देते हैं। खिलाड़ी कोई भी ऐसी चाल नहीं चल सकते जिससे उनका राजा शह में आ जाये (यानी एक विपक्षी मुहरे की मार में)। यदि खिलाड़ी के पास कोई वैध चाल नहीं बची है, तो खेल ख़त्म हो गया है; यह या तो एक शहमात है - यदि राजा शह में है - या एक गतिरोध या ज़िच यदि राजा हमले में नहीं है। हर शतरंज का मोहरा बढ़ने की अपनी शैली है।[2]  

मोहरा बादशाह/राजा वज़ीर/रानी हाथी/किश्ती ऊँट/फील घोड़ा प्यादा
संख्या
चिह्न  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 


वर्गों की पहचान

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बीजगणितीय अंकनपद्धति में वर्गों/वर्गों का नामकरण

बिसात का प्रत्येक वर्ग एक अक्षर और एक संख्या के एक विशिष्ट युग्म द्वारा पहचाना जाता है। खड़ी पंक्तियों|पंक्तियों (फाइल्स) को सफेद के बाएं (अर्थात वज़ीर/रानी वाला हिस्सा) से सफेद के दाएं ए (a) से लेकर एच (h) तक के अक्षर से सूचित किया जाता है। इसी प्रकार क्षैतिज पंक्तियों (रैंक्स) को बिसात के निकटतम सफेद हिस्से से शुरू कर 1 से लेकर 8 की संख्या से निरूपित करते हैं। इसके बाद बिसात का प्रत्येक वर्ग अपने फाइल अक्षर तथा रैंक संख्या द्वारा विशिष्ट रूप से पहचाना जाता है। सफेद बादशाह, उदाहरण के लिए, खेल की शुरुआत में ई1 (e1) वर्ग में रहेगा. बी8 (b8) वर्ग में स्थित काला घोड़ा पहली चाल में ए6 (a6) अथवा सी6 (c6) पर पहुंचेगा.

प्यादा या सैनिक

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खेल के शुरू में मोहरे

खेल की शुरुआत सफेद खिलाड़ी से की जाती है। सामान्यतः वह वजीर या राजा के आगे रखे गया पैदल या सैनिक को दो चौरस आगे चलता है। प्यादा (सैनिक) तुरंत अपने सामने के खाली वर्ग पर आगे चल सकता है या अपना पहला कदम यह दो वर्ग चल सकता है यदि दोनों वर्ग खाली हैं। यदि प्रतिद्वंद्वी का टुकड़ा विकर्ण की तरह इसके सामने एक आसन्न पंक्ति पर है तो प्यादा उस टुकड़े पर कब्जा कर सकता है। प्यादा दो विशेष चाल, "एन पासांत" और "पदोन्नति-चाल " भी चल सकता है। हिन्दी में एक पुरानी कहावत पैदल की इसी विशेष चाल पर बनी है: " प्यादा से फर्जी भयो, टेढो-टेढो जाय !"[3] (फ़रज़ी यानी वज़ीर/रानी)

राजा किसी भी दिशा में एक खाने में जा सकता है, राजा एक विशेष चाल भी चल सकता है जो "केस्लिंग" या किलेबंदी कही  जाती है और इसमें हाथी भी शामिल है। अगर राजा को चलने बाध्य किया और किसी भी तरफ चल नहीं सकता तो मान लीजिये कि खेल समाप्त हो गया। नहीं चल सकने वाले राजा को खिलाड़ी हाथ में लेकर बोलता है- 'मात' या 'मैं हार स्वीकार करता हूँ'।

वजीर या रानी

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वज़ीर (रानी) हाथी और ऊंट की शक्ति को जोड़ता है और ऊपर-नीचे, दायें-बाएँ तथा टेढ़ा कितने भी वर्ग जा सकता है, लेकिन यह अन्य टुकड़े पर छलांग नहीं लगा सकता है। मान लीजिए पैदल सैनिक का एक अंक है तो वजीर का ९ अंक है।

 
कैसलिंग के उदाहरण

केवल अपने रंग वाले चौरस में चल सकता है। याने काला ऊँट काले चौरस में ओर सफेद ऊंट सफेद चौरस में। सैनिक के हिसाब से इसका तीन अंक है।  ऊंट किसी भी दिशा में टेढ़ा कितने भी वर्ग चल सकता है, लेकिन अन्य टुकड़े पर छलांग नहीं लगा सकता है।

घोड़ा "L" प्रकार की चाल या डाई घर चलता है जिसका आकार दो वर्ग लंबा है और एक वर्ग चौड़ा होता है। घोड़ा ही एक टुकड़ा है जो दूसरे टुकड़ो पर छलांग लगा सकता है। सैनिक के हिसाब से इसका तीन अंक है।

हाथी किसी भी पंक्ति में दायें बाएँ या ऊपर नीचे कितने भी वर्ग सीधा चल सकता है, लेकिन अन्य टुकड़े पर छलांग नहीं लगा सकता। राजा के साथ, हाथी भी राजा के "केस्लिंग" ; के दौरान शामिल है। इसका सैनिक के हिसाब से पांच अंक है।

अंत कैसे होता है?

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अपनी बारी आने पर अगर खिलाड़ी के पास चाल के लिये कोई चारा नहीं है तो वह अपनी 'मात' या हार स्वीकार कर लेता है।

कैसलिंग के अंतर्गत बादशाह को किश्ती की ओर दो वर्ग बढ़ाकर और किश्ती को बादशाह के दूसरी ओर उसके ठीक बगल में रखकर किया जाता है।[4] कैसलिंग केवल तभी किया जा सकता है जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों:

  1. बादशाह तथा कैसलिंग में शामिल किश्ती की यह पहली चाल होनी चाहिए;
  2. बादशाह तथा किश्ती के बीच कोई मोहरा नहीं होना चाहिए;
  3. बादशाह को इस दौरान कोई शह नहीं पड़ा होना चाहिए न ही वे वर्ग दुश्मन मोहरे के हमले की जद में होने चाहिए, जिनसे होकर कैसलिंग के दौरान बादशाह को गुजरना है अथवा जिस वर्ग में अंतत: उसे पहुंचना है (यद्यपि किश्ती के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है);
  4. बादशाह और किश्ती को एक ही क्षैतिज पंक्ति (रैंक) में होना चाहिए(Schiller 2003:19).[5]
 
अंपैसां

यदि खिलाड़ी ए (A) का प्यादा दो वर्ग आगे बढ़ता है और खिलाड़ी बी (B) का प्यादा संबंधित खड़ी पंक्ति में 5वीं क्षैतिज पंक्ति में है तो बी (B) का प्यादा ए (A) के प्यादे को, उसके केवल एक वर्ग चलने पर काट सकता है। काटने की यह क्रिया केवल इसके ठीक बाद वाली चाल में की जा सकती है। इस उदाहरण में यदि सफेद प्यादा ए2 (a2) से ए4 (a4) तक आता है, तो बी4 (b4) पर स्थित काला प्यादा इसे अंपैसां विधि से काट कर ए3 (a3) पर पहुंचेगा.

 
मोहरे की चाल का उदाहरण: प्रमोशन (बाएं) और रास्ते में (दाएं)

आकस्मिक खेल आम तौर पर 1मिनट से 60मिनट, टूर्नामेंट खेल 1 मिनट से 6 घंटे या अधिक समय के लिए।

मौजूदा प्रमुख खिलाड़ी

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भूतपूर्व विश्व शतरंज चैंपियन विश्वनाथन आनंद (बाएं) अपने पूर्ववर्ती व्लादिमीर क्रैमनिकके खिलाफ शतरंज खेलते हुये

भारत के पहले प्रमुख खिलाड़ी मीर सुल्तान खान ने इस खेल के अंतराष्ट्रीय स्वरूप को वयस्क होने के बाद ही सीखा, 1928 में 9 में से 8.5 अंक बनाकर उन्होने अखिल भारतीय प्रतियोगिता जीती। अगले पाँच वर्षों में सुल्तान खान ने तीन बार ब्रिटिश प्रतियोगिता जीती और अंतराष्ट्रीय शतरंज के शिखर के नजदीक पहुंचे। उन्होने हेस्टिंग्स प्रतियोगिता में क्यूबा के पूर्व विश्व विजेता जोस राऊल कापाब्लइंका को हराया और भविष्य के विजेता मैक्स यूब और उस समय के कई अन्य शक्तिशाली ग्रैंडमास्टरों पर भी विजय पायी। अपने बोलबाले की अवधि में उन्हें विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक माना जाता था। सुल्तान ब्रिटिश दल के लिए 1930 (हैंबर्ग), 1931 (प्राग) और 1933 (फोकस्टोन) ओलंपियाड में भी खेले।

मैनुएल एरोन ने 1961 में एशियाई स्पारद्धा जीती, जिससे उन्हें अंतर्र्श्तृय मास्टर का दर्जा मिला और वे भारत के प्रथम आधिकारिक शतरंज खिताबधारी व इस खेल के पहले अर्जुन पुरस्कार विजेता बने। 1979 में बी. रविकुमार तेहरान में एशियाई जूनियर स्पारद्धा जीतकर भारत के दूसरे अंतर्र्श्तृय मास्टर बने। इंग्लैंड में 1982 की लायड्स बैंक शतरंज स्पर्धा में प्रवेश करने वाले 17 वर्षीय दिव्येंदु बरुआ ने विश्व के द्वितीय क्रम के खिलाड़ी विक्टर कोर्च्नोई पर सनसनीखेज जीत हासिल की।

विश्वनाथन आनंद के विश्व के सर्वोच्च खिलाड़ियों में से एक के रूप में उदय होने के बाद भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी उपलब्धियां हासिल की। 1987 में विश्व जूनियर स्पर्धा जीतकर वह शतरंज के पहले भारतीय विश्व विजेता बने। इसके बाद उन्होने विश्व के अधिकांश प्रमुख खिताब जीते, किन्तु विश्व विजेता का खिताब हाथ नहीं आ पाया। 1987 में आनंद भारत के पहले ग्रैंड मास्टर बने। आनंद को 1999 में फीडे अनुक्रम में विश्व विजेता गैरी कास्पारोव के बाद दूसरा क्रम दिया गया था। विश्वनाथन आनंद पांच बार (2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में) विश्व चैंपियन रहे हैं।[6][7]

इसके पश्चात भारत में और भी ग्रैंडमास्टर हुये हैं, 1991 में दिव्येंदु बरुआ और 1997 में प्रवीण थिप्से, अन्य भारतीय विश्व विजेताओं में पी. हरिकृष्ण व महिला खिलाड़ी कोनेरु हम्पी और आरती रमास्वामी हैं।

ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद को 1998 और 1999 में प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था। आनंद को 1985 में प्राप्त अर्जुन पुरस्कार के अलावा, 1988 में पद्म श्री व 1996 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला। सुब्बारमान विजयलक्ष्मीकृष्णन शशिकिरण को भी फीडे अनुक्रम में स्थान मिला है।[8]

विश्व के कुछ प्रमुख खिलाड़ी

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अंतरराष्ट्रीय शतरंज

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ऑनलाइन शतरंज

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ऑनलाइन शतरंज वो शतरंज है जो इंटरनेट पर खेला जाता है, जिसमें खिलाड़ी असली समय में एक दूसरे के खिलाफ खेल सकते हैं। ये इंटरनेट शतरंज सर्वर के इस्तेमाल से किया जाता है, जो ईलो या उस तरह के रेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके खिलाड़ियों को उनके रेटिंग के हिसाब से जोड़ता हैं। कोरोना लॉकडाउन के अंदर ऑनलाइन शतरंज ने बढ़ा इज़ाफा देखा।[9][10] ये अकेलेपन और द क्वीन्स गैम्बिट नाम के वेब सीरीज़ के वजह से हुआ था।[9][10] शो के शुरू होने के बाद ऐप स्टोर और गूगल प्ले स्टोर पर शतरंज ऐप डाउनलोड में 63% का इज़ाफा हुआ।[11] चेस डॉट कॉम ने नवंबर में पिछले महीनों की तुलना में दोगुने से ज़्यादा खाता पंजीकरण देखे, और लीचेस पर मासिक रूप से खेले जाने वाले खेलों की संख्या भी दोगुनी हो गई। खिलाड़ियों में एक जनसांख्यिकीय बदलाव भी था, चेस डॉट कॉम पर महिला पंजीकरण 22% से 27% नए खिलाड़ियों पर चला गया। [12] जीएम मौरिस एशले ने कहा "शतरंज में ऐसा उछाल आ रहा है जैसा हमने बॉबी फिशर के दिनों से शायद कभी नहीं देखा", महामारी के दौरान कुछ रचनात्मक करने की बढ़ती इच्छा को इस इज़ाफे के लिए ज़िम्मेदार ठहराया। [13] यूएससीएफ महिला कार्यक्रम निदेशक जेनिफर शहाडे ने कहा कि शतरंज इंटरनेट पर अच्छा काम करता है, क्योंकि टुकड़ों को रीसेट करने की ज़रूरत नहीं होती है और मैचमेकिंग जैसे तुरंत हो जाती है। [14]

  1. [भारत ज्ञानकोश, खंड: 5, प्रकाशक: पापयुलर प्रकाशन, मुंबई, पृष्ठ संख्या : 259]
  2. "Laws of Chess". FIDE. मूल से 27 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मई 2013.
  3. Bodlaender, Hans. "The rules of chess". Chess Variants. मूल से 23 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मई 2013.
  4. बादशाह और किश्ती को एक साथ चलने की अनुमति नहीं होती क्योंकि “प्रत्येक चाल केवल एक ही हाथ से चला जाना चाहिए” (एफआईडीई (FIDE) के शतरंज नियम की धारा 4.1).
  5. बिना इस अतिरिक्त प्रतिबंध के, खड़ी पंक्ति (file) e के प्यादे को किश्ती में तरक्की देना संभव था और तब बिसात पर कहीं भी उदग्र रूप से कैसलिंग किया जा सकता था (यदि अन्य शर्ते पूरी होतीं तो). 1972 में इसे निरस्त करने के लिए एफआईडीई (FIDE) के नियमों में संशोधन से पूर्व एक शतरंज पहेली (chess puzzle) के दौरान कैसलिंग का यह तरीका मैक्स पैम (Max Pam) द्वारा खोजा गया था और टिम क्रैब (Tim Krabbé) द्वारा प्रयोग में लाया गया था। देखिए क्रैब की चेस क्यूरोसिटिज़ (Chess Curiosities), साथ ही ऑनलाइन चित्र भी देखिए.
  6. "India's Anand seizes chess title". USA Today. 30 सितंबर 2007. मूल से 18 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-5-9. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  7. "मैग्नस कार्लसन बने शतरंज के वर्ल्ड चैंपियन". नवभारत टाईम्स. 22 नवम्बर 2013. http://hindi.economictimes.indiatimes.com/sports/other-sports/Magnus-Carlsen-become-chess-world-champion/articleshow/26219360.cms. अभिगमन तिथि: 23 नवम्बर 2013. 
  8. [भारत ज्ञानकोश, खंड: 5, प्रकाशक: पापयुलर प्रकाशन, मुंबई, पृष्ठ संख्या : 260]
  9. Ruiter, Chananya De (16 November 2020). "The Queen's Gambit And A Rise In Online Chess Playing". Tatler Thailand (अंग्रेज़ी में). मूल से 12 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.
  10. Jibilian, Isabella. "Netflix's hit show 'The Queen's Gambit' inspired a chess surge — but now Chess.com is seeing a surge in cheating, too". Business Insider. मूल से 12 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.
  11. Howell, Toby. "Netflix's 'The Queen's Gambit' is Causing a Surge in Online Chess Play". Morning Brew. मूल से 12 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.
  12. Settembre, Jeanette (9 November 2020). "Online chess classes see record interest amid pandemic, and after release of Netflix's 'The Queen's Gambit'". Fox News. मूल से 12 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.
  13. Rothman, David. "Online chess makes its biggest move". www.cbsnews.com (अंग्रेज़ी में). मूल से 12 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.
  14. Robertson, Noah (20 August 2020). "Online chess is thriving, a calming constant in a chaotic year". Christian Science Monitor. मूल से 11 January 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 January 2021.

ये भी देखें

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बाहरी लिंक

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