प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यव्स्था अत्यन्त व्यापक थी। शिक्षा के अन्तर्गत केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं अपितु जीवनोपयोगी लौकिक ज्ञान का भी सम्यक् समावेश था। लोकोपयोगी ज्ञान के अन्तर्गत कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थी। दण्डी ने काव्यादर्श में कहा है कि नृत्य और गीत आदि कलाएं काम और अर्थ के ऊपर आश्रित हैं ( नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः)। श्रीकृष्ण विद्याध्ययन के लिये जब अवन्तिकापुरी (उज्जैन) के संदीपनी आश्रम गये थे तब उन्होंने ६४ दिन में ६४ कलाएँ सीख ली थी। कल्कि पुराण के अनुसार कलियुग के अंत में धरा धाम पर आने वाले भगवान श्री कल्कि भी 64 कलाओं परिपूर्ण होंगे।

भारतीय साहित्य में कलाओं की विशद चर्चा है और उनकी अलग-अलग संख्या दी गयी है। रामायण, महाभारत आदि आर्षग्रन्थों के अतिरिक्त पुराणों और काव्यग्रन्थों में अनेक कलाओं का वर्णन प्राप्त होता है। वैसे तो कलाएँ अनन्त हैं किन्तु प्रमुख महत्वपूर्ण कलाओं को गिनाना भी बहुत उपयोगी है।

कामसूत्र में ६४ कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त जैन ग्रन्थ 'प्रबन्ध कोश' तथा 'शुक्रनीति सार' में भी कलाओं की संख्या ६४ ही है। 'ललितविस्तर' में तो ८६ कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। ललितासहस्रनाम में देवी को ६४ कलाओं का मूर्तस्वरूप कहा गया है।[1]

कामसूत्र में उल्लिखित कलाएँ

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कामसूत्र में वर्णित ६४ कलाएँ निम्नलिखित हैं-[2]

(१) गीतम् (२) वाद्यम् (३) नृत्यं (४) आलेख्यम् (५) विशेषकच्छेद्यम् (६) तण्डुलकुसुमवलि विकाराः (७) पुष्पास्तरणम् (८) दशनवसनागरागः (९) मणिभूमिकाकर्म (१०) शयनरचनम् (११) उदकवाद्यम् (१२) उदकाघातः (१३) चित्राश्च योगाः (१४) माल्यग्रथन विकल्पाः (१५) शेखरकापीडयोजनम् (१६) नेपथ्यप्रयोगाः (१७) कर्णपत्त्र भङ्गाः (१८) गन्धयुक्तिः (१९) भूषणयोजनं (२०) ऐन्द्रजालाः (२१) कौचुमाराश्च (२२) हस्तलाघवम् (२३) विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (२४) पानकरसरागासवयोजनम् (२५) सूचीवानकर्माणि (२६) सूत्रक्रीडा (२७) वीणाडमरुकवाद्यानि (२८) प्रहेलिका (२९) प्रतिमाला (३०) दुर्वाचकयोगाः (३१) पुस्तकवाचनम् (३२) नाटकाख्यायिकादर्शनम् (३३) काव्यसमस्यापूरणम् (३४) पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः (३५) तक्षकर्माणि (३६) तक्षणम् (३७) वास्तुविद्या (३८) रूप्यपरीक्षा (३९) धातुवादः (४०) मणिरागाकरज्ञानम् (४१) वृक्षायुर्वेदयोगाः (४२) मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः (४३) शुकसारिकाप्रलापनम् (४४) उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलम् (४५) अक्षरमुष्तिकाकथनम् (४६) म्लेच्छितविकल्पाः (४७) देशभाषाविज्ञानम् (४८) पुष्पशकटिका (४९) निमित्तज्ञानम् (५०) यन्त्रमातृका (५१) धारणमातृका (५२) सम्पाठ्यम् (५३) मानसी काव्यक्रिया (५४) अभिधानकोशः (५५) छन्दोज्ञानम् (५६) क्रियाकल्पः (५७) छलितकयोगाः (५८) वस्त्रगोपनानि (५९) द्यूतविशेषः (६०) आकर्षक्रीडा (६१) बालक्रीडनकानि (६२) वैनयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् (६३) वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् (६४) व्यायामिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ।

उपरोक्त विद्याओं का हिन्दी में संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

1- गानविद्या

2- वाद्य - भांति-भांति के बाजे बजाना

3- नृत्य

4- नाट्य

5- चित्रकारी

6- बेल-बूटे बनाना

7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना

8- फूलों की सेज बनान

9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना

10- मणियों की फर्श बनाना

11- शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा)

12- जल को बांध देना

13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना

14- हार-माला आदि बनाना

15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना

16- कपड़े और गहने बनाना

17- फूलों के आभूषणों से शृंगार करना

18- कानों के पत्तों की रचना करना

19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना

20- इंद्रजाल-जादूगरी

21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना

22- हाथ की फुती के काम

23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना

24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना

25- सूई का काम

26- कठपुतली बनाना, नाचना

27- पहेली

28- प्रतिमा आदि बनाना

29- कूटनीति

30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी

31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना

32- समस्यापूर्ति करना

33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना

34- गलीचे, दरी आदि बनाना

35- बढ़ई की कारीगरी

36- गृह आदि बनाने की कारीगरी

37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा

38- सोना-चांदी आदि बना लेना

39- मणियों के रंग को पहचानना

40- खानों की पहचान

41- वृक्षों की चिकित्सा

42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति

43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना

44- उच्चाटनकी विधि

45- केशों की सफाई का कौशल

46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना

47- म्लेच्छित-कुतर्क-विकल्प

48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान

49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना

50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना

51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना

52- सांकेतिक भाषा बनाना

53- मनमें कटकरचना करना

54- नयी-नयी बातें निकालना

55- छल से काम निकालना

56- समस्त कोशों का ज्ञान

57- समस्त छन्दों का ज्ञान

58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या

59- द्यू्त क्रीड़ा

60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण

61- बालकों के खेल

62- मन्त्रविद्या

63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या

64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या

वात्स्यायन ने जिन ६४ कलाओं की नामावली कामसूत्र में प्रस्तुत की है उन सभी कलाओं के नाम यजुर्वेद के तीसवें अध्याय में मिलते हैं। इस अध्याय में कुल २२ मन्त्र हैं जिनमें से चौथे मंत्र से लेकर बाईसवें मंत्र तक उन्हीं कलाओं और कलाकारों का उल्लेख है।

वात्स्यायन के कामसूत्र की व्याख्या करते हुए जयमंगल ने दो प्रकार की कलाओं का उल्लेख किया है – (1) कामशास्त्र से संबंधित कलाएँ, (2) तंत्र संबंधी कलाएँ। दोनों की अलग-अलग संख्या 64 है। काम की कलाएँ 24 हैं जिनका संबंध संभोग के आसनों से है, 20 द्यूत संबंधी, 16 कामसुख संबंधी और 4 उच्चतर कलाएँ। कुल 64 प्रधान कलाएँ हैं। इसके अतिरिक्त कतिपय साधारण कलाएँ भी बताई गई हैं।

ललितविस्तर की कलासूची

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(१) लङ्घितम् - कूदना (२) प्राक्चलितम् -- उछलना (३) लिपिमुद्रागरणनासंख्यासालम्भधनुवेदाः -- लिपि, मुद्रा (एक हाथ या कभी-कभी दोनों हाथों के द्वारा अथवा हाथ की उँगलियों से भिन्न भिन्न आकृतियाँ बनाना), गणना (गिनना, हिसाब), संख्या (संख्याओं की गिनती), सालम्भ (कुश्ती लड़ना), धनुर्वेद (धनुष -विद्या) (४) जवितम् -- दौड़ना (५) लवितम् -- पानी में डुबकी लगाना (६) तरणम् -- तैरना (७) इष्वस्त्रम् -- तीर चलाना (८) हस्तिग्रीवा -- हाथी की सवारी करना (९) रथः -- रथसम्बन्धी बातें (१०) धनुष्कलापः –- धनुषसम्बन्धी सारी बातें (११) अश्वपृष्ठम् -- घोड़े की सवारी (१२) स्थैर्यम् -- स्थिरता (१३) स्थाम -- वल (१४) सुशौर्यम् -- साहस (१५) बाहुव्यायाम -- बाहु का व्यायाम (१६) अङ्कुशग्रहपाशग्रहाः -- अंकुश और पाश इन दोनों हथियारों का ग्रहण करना (१७) उद्याननिर्माणम् -- ऊँची वस्तु को फांदकर और दो ऊँची वस्तु के बीच से कूदकर पार जाना (१८) अपयानम् — पीछे की ओर से निकलना (१६) मुष्टिबन्धः -- मुट्ठी और घूँसे की कला (२०) शिखावन्धः -- शिखा बांधना (२१) छेद्यम् -- काट कर भिन्न-भिन्न सुन्दर आकृतियोंको बनाना (२२) भेद्यम् -- छेदना (२३) तरणम् -- नाव खेना या जहाज चलाना या तैरना (२४) स्फालनम् -- ( कंदुक आदि को ) उछालने का कौशल (२५) अक्षुण्णवेधित्वम् -- भाले से लक्ष्य वेध करना (२६) मर्मवेधत्वम् — मर्मस्थलका वेधना (२७) शब्दवेधित्वम् -- शब्दवेधी बाण चलाना (२८) दृढप्रहारित्वम् -- मुष्टि प्रहार करना (२६) अक्षक्रीडा -- पाशा फेंकना (३०) काव्यव्याकरणम् –- काव्य की व्याख्या करना (३१) ग्रन्थरचितम् — ग्रन्थ-रचना (३२) रूपम् -- रूप निर्माण कला ( लकड़ी, सोना इत्यादि में आकृति बनाना ) (३३) रूपकर्म - -चित्रकारी (३४) अधीतम् -- अध्ययन करना (३५) अग्निकर्म -- आग पैदा करना (३६) वीणा -- वीणा बजाना (३७) वाद्यनृत्यम् — नाचना और वाजा बजाना (३८) गीतपठितम् -- गाना और कविता-पाठ करना (३६) आख्यातम् — कहानी सुनाना (४०) हास्यम् -- मजाक करना (४१) लास्यम् -- सुकुमार नृत्य (४२) नाट्यम् -- नाटक, अनुकरण- नृत्य (४३) विडिम्बितम् - दूसरों का व्यंगात्मक अनुकरण, कैरिकेचर (४४) माल्यग्रन्थनम् -- माला गूंथना (४५) संवाहितम् -- शरीर की मालिश (४६) मणिरागः -- बहुमूल्य पत्थरों का रंगना (४७) वस्त्ररागः -- कपड़ा रंगना (४८) मायाकृतम् -- इन्द्रजाल (४९) स्वप्नाध्यायः -- सपनोंका अर्थ लगाना (५०) शकुनिरुतम् - पक्षी की बोली समझता (५१) स्त्रीलक्षणम् -- स्त्री का लक्षण जानना (५२) पुरुषलक्षणम् -- पुरुष का लक्षण जानना (५३) अश्वलक्षणम् -- घोड़े का लक्षण जानना (५४) हस्तिलक्षणम् --- हाथीका लक्षण जानना (५५) गोलक्षणम् -- गाय, बैलका लक्षण जानना (५६) अजलक्षणम् -- बकरा, बकरी का लक्षण जानना (५७) मिश्रितलक्षणम् -- मिलावट पहचानने की या भिन्न-भिन्न जन्तुओं के पहचानने की कला (५८) कैटभेश्वरलक्षणम् -- लिपि विशेष (५८) कैटभेश्वर लक्षरणम् -- लिपि विशेष (५९) निर्घण्टुः -- कोष ( ६०) निगमः -- श्रुति (६१) पुराणम् -- पुराण (६२) इतिहास: --इतिहास (६३) वेदाः -- वेद (६४) व्याकरणम् -- व्याकरण (६५) निरुक्तम् — निरुक्त (६६) शिक्षा -- उच्चारण विज्ञान (६७) छन्द – छन्द (६८) यज्ञकल्पः -- यज्ञ-विधि (६९) ज्योतिः -- ज्योतिष (७०) सांख्यम् -- सांख्यदर्शन (७१) योगः -- योगदर्शन (७२) क्रियाकल्पः -- काव्य और अलंकार (७३) वैशेषिकम् — वैशेषिक दर्शन (७४) वेशिकम् — कामसूत्र के अनुसार वैशिक विज्ञान का प्रणयन दत्तक नामक विद्वान ने पाटलिपुत्र की वेश्याओं के अनुरोध पर किया था। (७५) अर्थविद्या -- राजनीति और अर्थशास्त्र (७६) बार्हस्पत्यम् -- लोकायत मत (७७) आश्चर्यम् - ? (७८) आसुरम् — असुरों से सम्बन्धित विद्या (७९) मृगपक्षिरुतम् — पशु पक्षी की बोली समझना (८०) हेतुविद्या -- न्याय-दर्शन (८१) जतुयन्त्रम् — लाख के यन्त्र बनाना (८२) मधूच्छिष्टकृतम् — मोम का काम (८३) सूचीकर्म –- सुई के काम (८४) विदलकर्म –- दलों या हिस्सों को अलग कर देने का कौशल (८५) पत्रच्छेद्यम् -- पत्तियों को काट-छाँटकर विभिन्न आकृतियाँ बनाना (८६) गन्धयुक्ति -- कई द्रव्यों के मिश्रण से सुगन्धि तैयार करना।[3]

प्रबन्धकोश में उल्लिखित कलाएँ

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(१) लिखितम् (२) गणितम् (३) गीतम् (४) नृत्यम् (५) पठितम् (६) वाद्यम् (७) व्याकरणम् (८) छन्दः (९) ज्योतिषम् (१०) शिक्षा (११) निरुक्तम् (१२) कात्यायनम् (१३) निघण्टुः (१४) पत्रच्छेद्यम् (१५) नखच्छेद्यम् (१६) रत्नपरीक्षा (१७) आयुधाभ्यासः (१८) गजारोहणम् (१९) तुरगारोहरणम् (२०) तपः शिक्षा (२१) मन्त्रवादः (२२) यन्त्रवादः (२३) रसवादः (२४) खन्यवादः (२५) रसायनम् (२६) विज्ञानम् (२७) तर्कवादः (२८) सिद्धान्तः (२६) विषवादः (३०) गारुडम् (३१) शाकुनम् (३२) वैद्यकम् (३३) प्राचार्य विद्या (३४) श्रागमः (३५) प्रासादलक्षणम् (३६) सामुद्रिकम् (३७) स्मृतिः (३८) पुराणम् (३९) इतिहास: (४०) वेदः (४१) विधिः (४२) विद्यानुवादः (४३) दर्शनसंस्कारः (४४) खेचरीकला (४५) भ्रामरीकला (४६) इन्द्रजालम् (४७) पातालसिद्धिः (४८) धूर्तशम्बलम् (४९) गन्धवादः (५०) वृक्षचिकित्सा (५१) कृत्रिम मणिकर्म (५२) सर्वकरणी (५३) वश्यकर्म (५४) पणकर्म (५५) सूचित्रकर्म (५६) काष्ठघटनकर्म (५७) पाषाणकर्म (५८) लेपकर्म (५६) चर्मकर्म (६०) यन्त्रकरसवती (६१) काव्यम् (६२) अलङ्कारः (६३) हसितम् (६४) संस्कृतम् (६५) प्राकृतम् (६६) पैशाचिकम् (६७) अपभ्रंशम् (६८) कपटम् (६९) देशभाषा (७०) धातुकर्म (७१) प्रयोगोपाय (७२) केवलिविधिः ।[4]

श्रुतसागर सूरि के अनुसार पुरुषों की ७२ कलाएँ

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कलानिधि नाम की व्याख्या करते हुए श्रुतसागर सूरि ने पुरुष की बहत्तर कलाओं के नाम इस प्रकार बतलाये हैं :—

१. गीतकला, २. वाद्यकला, ३. बुद्धिकला ४. शौचकला, ५. नृत्यकला, ६. वाच्यकला, ७. विचारकला, ८. मंत्रकला, ९. वास्तुकला, १०. विनोदकला, ११. नेपथ्यकला, १२. विलासकला, १३. नीतिकला, १४. शकुनकला १५. क्रीडनकला, १६. चित्रकला, १७. संयोगकला, १८. हस्तलाघवकला, १९. कुसमकला, २०. इन्द्रजालकला, २१. सूचीकर्मकला, २२. स्नेहकला, २३. पानकला, २४. आहारकला, २५. विहारकला, २६. सौभाग्यकला, २७. गन्धकला, २८. वस्त्रकला, २९. रत्नपरीक्षा, ३०. पत्रकला, ३१. विद्याकला ३२. देशभाषितकला, ३३. विजयकला ३४. वाणिज्यकला, ३५. आयुधकला, ३६. युद्धकला, ३७. नियुद्धकला, ३८. समयकला ३९. वत्र्तनकला, ४०. गजपरीक्षा, ४१. तुरङ्गपरीक्षा, ४२. पुरुषपरीक्षा, ४३. स्त्रीपरीक्षा, ४४. पक्षिपरीक्षा ४५. भूमिपरीक्षा, ४६. लेपकला, ४७. काष्ठकला, ४८. शिल्पकला, ४९. वृक्षकला, ५०. छद्मकला, ५१. प्रश्नकला, ५२. उत्तरकला, ५३. शस्त्रकला, ५४. शास्त्रकला, ५५. गणितकला, ५६. पठनकला ५७. लिखितकला, ५८. वक्तृत्वकला, ५८. कवित्वकला, ६०. कथाकला, ६१. वचनकला, ६२. व्याकरणकला, ६३. नाटककला, ६४. छन्दकला, ६५. अलंकारकला, ६६. दर्शनकला, ६७. अवधानकला, ६८. धातुकला, ६९. धर्मकला, ७०. अर्थकला, ७१. कामकला, और ७२. शरीरकला।

नीतिसार में उल्लिखित कलाएँ

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कामन्दक द्वारा रचित नीतिसार के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण के अनुसार ६४ कलाएँ ये हैं -

गायन, वादन, नर्तन, नाट्य, आलेख्य (चित्रकला), विशेषक, अल्पना, पुष्पशय्यानिर्माण, अंगरागादिलेपन, पच्चीकारी, शयनरचना, उदकवाद्य, जलाघात, रूप बनाना, माला गूँथना, मुकुट बनाना, वेश बदलना, कर्णाभूषण बनाना, जादुगरी, असुन्दर को सुन्दर बनाना, हस्तलाघव, पाककला, आनानक, सुचीकर्म, पहेली बुझाना, पुस्तकवाचन, नाट्याख्यायिका-दर्शन, काव्यसमस्यापूत्र्ति, बेंत की बुनाई, तुर्ककर्म, बढ़ईगिरी, वास्तुकला, रत्नपरीक्षा, धातुकर्म, रत्नों की रंग-परीक्षा, आकरज्ञान, उपवनविनोद, पक्षी लड़ाना, पक्षियों की बोली सिखाना, मालिश करना, केश मार्जन कौशल, गुप्तभाषा ज्ञान, विदेशी कलाओं का ज्ञान, देशी भाषाओं का ज्ञान, भविष्य कथन, कठपुतली नर्तन, कठपुतली के खेल, सुनकर दोहरा देना, आशुकाव्य क्रिया, भाव को उल्टा कहना, छलिकयोग, वस्त्रगोपन, द्यूतविद्या, आकर्षण क्रीडा, बालक्रीडाकर्म, शिष्टाचार, वशीकरण और व्यायाम।

शुक्रनीति के अनुसार

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शुक्रनीतिसार के अनुसार कलाओं की संख्या असंख्य है, फिर भी समाज में अति प्रचलित 64 कलाओं का उसमें उल्लेख हुआ है। शुक्रनीति के अनुसार कलाओं की गणना इस प्रकार है-

नर्तन (नृत्य), (2) वादन, (3) वस्त्रसज्जा, (4) रूपपरिवर्तन, (5) शैय्या सजाना, (6) द्यूत क्रीड़ा, (7) सासन रतिज्ञान, (8) मद्य बनाना और उसे सुवासित करना, (9) शल्य क्रिया, (10) पाक कार्य, (11) बागवानी, (12) पाषाणु, धातु आदि से भस्म बनाना, (13) मिठाई बनाना, (14) धात्वोषधि बनाना, (15) मिश्रित धातुओं का पृथक्करण, (16) धातुमिश्रण, (17) नमक बनाना, (18) शस्त्रसंचालन, (19) कुश्ती (मल्लयुद्ध), (20) लक्ष्यवेध, (21) वाद्यसंकेत द्वारा व्यूहरचना, (22) गजादि द्वारा युद्धकर्म, (23) विविध मुद्राओं द्वारा देवपूजन, (24) सारथ्य, (25) गजादि की गतिशिक्षा, (26) बर्तन बनाना, (27) चित्रकला, (28) तालाब, प्रासाद आदि के लिए भूमि तैयार करना, (29) घटादि द्वारा वादन, (30) रंगसाजी, (31) भाप के प्रयोग-जलवाटवग्नि संयोगनिरोधै: क्रिया, (32) नौका, रथादि यानों का ज्ञान, (33) यज्ञ की रस्सी बटने का ज्ञान, (34) कपड़ा बुनना, (35) रत्नपरीक्षण, (36) स्वर्णपरीक्षण, (37) कृत्रिम धातु बनाना, (38) आभूषण गढ़ना, (39) कलई करना, (40) चर्मकार्य, (41) चमड़ा उतारना, (42) दूध के विभिन्न प्रयोग, (43) चोली आदि सीना, (44) तैरना, (45) बर्तन माँजना, (46) वस्त्रप्रक्षालन (संभवत: पालिश करना), (47) क्षौरकर्म, (48) तेल बनाना, (49) कृषिकार्य, (50) वृक्षारोहण, (51) सेवाकार्य, (52) टोकरी बनाना, (53) काँच के बर्तन बनाना, (54) खेत सींचना, (55) धातु के शस्त्र बनाना, (56) जीन, काठी या हौदा बनाना, (57) शिशुपालन, (58) दंडकार्य, (59) सुलेखन, (60) तांबूलरक्षण, (61) कलामर्मज्ञता, (62) नटकर्म, (63) कलाशिक्षण, और (64) साधने की क्रिया।[5]

शिवतत्त्वरत्नाकर में उल्लिखित कलाएँ

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श्रीबसवराजेन्द्र द्वारा विरचित शिवतत्त्वरत्नाकर के अनुसार ६४ कलाएँ ये हैं-

इतिहास, आगम, काव्य, नाटक, अलंकार, गायकत्व, कवित्व, कामशास्त्र, दुरोदर (द्युत), देशभाषालिपिज्ञान, लिपिकर्म, वाचन, गणक, व्यवहार, स्वरशास्त्र, शाकुन, सामुद्रिक, रत्नशास्त्र, गज-अश्व-रथ कौशल, मल्लशास्त्र, सूपकर्म, भूरूहदोहद, गन्धवाद, धातुवाद, रत्नसम्बन्धी खनिवाद, बिलवाद, अग्निसंस्तम्भक, जलसंस्तम्भक, वाचःस्तम्भन, वयःस्तम्भन, आकर्षण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण, कालवंचन, स्वर्णकर्म, परकायप्रवेश, पादुकासिद्वि, वाक्सिद्धि, गुटिकासिद्धि, ऐन्द्रजालिक, अंजन, परदृष्टिवंचन, स्वरवंचन, मणि-मन्त्र औषधादिकीसिद्धि, चैरकर्म, चित्रक्रिया, लौहक्रिया, अश्मक्रिया, मृत्क्रिया, दारूक्रिया, वेणुक्रिया, चर्मक्रिया, अम्बरक्रिया, अदृश्यकरण, दन्तिकरण, मृगयाविधि, वाणिज्य, पाशुपाल्य, कृषि, आसवकर्म और लावकुक्कुट मेषादियुद्धकारक कौशल।

वाभ्रव्य के मतानुसार

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वाभ्रव्य के मत से चैंसठ कलाएँ ये हैं

स्पृश्टक, विद्धक, उद्धृष्टक, पीडितक, लतावेष्टितक, वृक्षाधिरूढक, तिलतण्डुलक, क्षीर-नीरक, निमित्तक, स्फुरितक, घट्टितक, सम, तिर्यक्, उद्भ्रान्त, आपीडित, अवपीडितक, आच्छुरितक, अर्धचन्द्र, मण्डल, रेखा, व्याघ्रनख, मयूरपदक, शशप्लुतक, उत्पलपत्रक, गूढक, उच्छूनक, बिन्दु, प्रवालमणि, मणिमाला, बिन्दुमाला, खण्डाभ्रक, वराहचर्वित, उत्फुल्लक, विजृम्भितक, इन्द्राणी, सम्पुटक, पीडितक, वेष्टितक, बाडवक, अपहस्तक, प्रसृतक, मुष्टि, समतल, कीला, कत्र्तरी, विद्धा, सन्दंशिका, उपसृप्त, मन्थन, हुल, अवमर्दन, निर्घात, वराहघात, वृषाघात, चटकविलसित, सम्पुट, निमित्त, पाश्र्वतोदष्ट, बहिःसन्दंश, अन्तःसन्दंश, चुम्बितक, परिमृष्टक, आम्रचूषितक, संगर।

कलाविलास में उल्लिखित कलाएँ

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संस्कृत के प्रसिद्ध कवि क्षेमेन्द्र ने कलाविलास नामक ग्रन्थ में कलाओं की सर्वाधिक संख्या दी है। उसमें ६४ कलाएँ लोकोपयोगी हैं जिनमें ३२ कलाएँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरूषार्थचतुष्टय की हैं जबकि अन्य ३२ कलाएँ शील, स्वभाव, मात्सर्य और मान की हैं। इनके अतिरिक्त सुनारों की चैंसठ कलाएँ, वेश्याओं के लिये आवश्यक ६४ कलाएँ, भेषज से सम्बन्धित दस कलाएँ और कायस्थों के लेखन-कौशल और उनसे सम्बन्धित १६ कलाएँ वर्णित हैं। क्षेमेन्द्र ने गणकों (ज्योतिषियों) से सम्बन्धित कलाओं का भी उल्लेख किया है। क्षेमेन्द्र के अनुसार कलाओं का मुख्य उद्देश्य धर्म आदि पुरूषार्थचतुष्ट्य का साधनमात्र था।

श्रीकृष्ण द्वारा सीखीं गयीं कलाएँ

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Shri Lalita Sahasranamavali with meanings". sanskritdocuments.org. अभिगमन तिथि 2023-02-10.
  2. कामसूत्र १.३.१५
  3. प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी)
  4. प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी)
  5. प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद