झाबुआ ज़िला

मध्य प्रदेश का जिला
(झाबुआ ज़िले से अनुप्रेषित)

"रीडायरेक्ट की सूचना". www.google.com. अभिगमन तिथि 2022-09-12.[मृत कड़ियाँ]

झाबुआ जिला, मध्य प्रदेश का एक जिला है। इसका मुख्यालय झाबुआ है।

पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित झाबुआ जिला गुजरात के दाहोद, राजस्थान के बांसवाड़ा और मध्य प्रदेश के धाररतलाम व आलिराजपुर जिलों से घिरा है। 16वीं शताब्दी में स्थापित यह जिला बहादुर सागर झील के किनारे बसा हुआ है। 6782 वर्ग किलोमीटर में फैला झाबुआ मूलत: आदिवासी जिला है। यहां मुख्यत: भील और भील जनजाति की उपजातियां भीलाला पटेलिया आदिवासी जातियां रहती हैं। यह जिला आदिवासी हस्तशिल्प खासकर बांस से बनी वस्तुओं, गुडियों, आभूषणों और अन्य बहुत-सी वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। हलमा,मातानुवन,पड़जी,जातर,सलावणी, नवाई व भीडहा यहाँ की श्रेष्ठ परंपराएं है।माही व अनास यहां से बहने वाली प्रमुख नदी है। भगोर, देवाझिरी, देवलफलिया, बाबा देव समोई, पीपलखुंटा और हाथीपावा पहाड़ी यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। झाबुआ इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर है।

झाबुआ पर सदियों से आदिवासी राजाओ का शासन रहा। प्रथम भील राजा कसुमर थे । कसुमर जी की पूजा की जाती है। यहाँ शुक भील का शासन रहा।<[1]>

मुख्य आकर्षण

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भगोरिया /भोंगरिया/भोंगर्या हाट

प्राय: झाबुआ व इसके आसपास अलीराजपुर बड़वानी धार महाराष्ट्र गुजरात के कुल 150 से ज्यादा स्थानों पर मनाया जाता है झाबुआ के आस-पास का समाज हमेशा से प्रकृति से जुड़ा रहा होगा ।यहां की उत्तम परंपराएं व रिती रिवाज जिन को जानने समझने की जरूरत है ऐसा ही यह भगोरिया हाट है पूरे 7 दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर मनाया जाता है ।

        भगोरिया में जाकर होली ,घर व अपनी जरूरत की वस्तुओं ,सामान खरीदते हैं यहां का समाज अपनी संस्कृति व अपने रीति रिवाज के साथ एक प्रकार से साल भर में फिर से जीवंत हो उठता है अपनी पहचान पारंपरिक वेशभूषा, बांसुरी, तीर कमान, पागड़ी,ढोल मांदल की थाप पर थिरकना एवं खुशी व हर्षोल्लास के साथ भगोरिया में शामिल होते है एवं फागुन का महीना होता है नए साल का आगमन होता है प्रकृति भी उस समय अपना रूप रंग बदलती है महुए के नए फूल आते हैं पलाश अपने रंग बिरंगे फूल बिखेरते है बाग में मोर नाचता है हम झाबुआ भी इस नए साल का खुशी कुछ इस तरह 8 दिनों तक मनाते हैं एवं इस अंचल में होली का त्योहार 8 दिनों तक मनाया जाता है सातवें दिन होली होती है एवं आठवें दिन गल बाबजी का त्योहार होता है ।

    बहुत समय पहले देश व दुनिया मे संचार का अर्थात किसी से बातचीत का कोई ऐसा माध्यम नहीं हुआ करता था जैसे आज टेलीफोन व मोबाइल है उस समय यहां पर समाज ने एक व्यवस्था सप्ताह में हाट लगाना शुरू किया बाजार में अपना जरूरी सामान खरीदना एवं आसपास के सभी गांव के लोग उसमें शामिल होते थे यह एक दूसरे की गांव की जानकारी सगा संबंधी की जानकारी एवं सूचना मिल जाती थी अर्थात सूचना का एक बहुत बड़ा केंद्र हॉट उस समय हुआ करता था यह प्रत्येक 7 दिन में लगता है यह भी सुना है कि झाबुआ के पास में भगोर एक रियासत थी ।वहां के राजा ने सभी लोगों से होली से पहले अपनी प्रजा से मिलने के लिए यह हाट शुरू करवाए थे इसलिए धीरे धीरे इसका नाम भगोरिया हाट हो गया है।

 
झाबुआ जिले की भील युवतियाँ

झाबुआ जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर है समोई गांव ओर इसी गांव की पहाडी पर विराजित है बाबा देव ; .. बाबादेव स्थानीय आदिवासियों के प्रमुख क्षेत्रीय देवता है ओर हर आदिवासी की इसमे आस्था है पश्चिम मध्यप्रदेश के धार - झाबुआ - अलीराजपुर के अलावा गुजरात ओर राजस्थान के सीमावर्ती इलाको के जिलो से भी बड़ी संख्या मे बाबादेव के भक्त समोई बाबादेव आते है ओर अपनी मन्नत लेकर मन्नतें उतारते है।

झाबुआ से 8 किलोमीटर दूर अहमदाबाद-इंदौर रोड पर सुनार नदी के किनारे यह गांव स्थित है। गांव भगवान शिव के प्राचीन मंदिर और एक बरसाती झरना के लिए प्रसिद्ध है। श्रावण मे कावड़यात्री यहाँ से जल भरते है।महाशिवरात्रि पर मेले का आयोजन होता है।

देवल शिव मंदिर

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झाबुआ से 32 कि.मी.व रानापुर से 12 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित यह एक पुरातन शिव मंदिर है मंदिर पर विष्णु भगवान ,गणेश जी व कई देवी देवताओं की मुर्तियां उंकेरी हुई है व गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग विराजित हैं। यहां की जल धारा तीनो मौसम मे अपना निर्मल जल देती रहती है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर 1100-1200 सो साल पुराना है। आसपास के लोग इसे देवलफलिया शिव मंदिर के नाम से जानते है।

अलीराजपुर से 5 किलोमीटर दक्षिण में अलीराजपुर-वालपुर रोड पर मालवई स्थित है। यह स्थान विन्ध्याचल के निचली पहाड़ियों के सबसे रमणीय स्थलों में से एक माना जाता है। 11वीं शताब्दी में बना महादेव मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है। यह मंदिर मालवा शैली में बना है। मंदिर में पत्थरों की शानदार मूर्तियां स्थापित हैं। यह मूर्तियां 12-13वीं शताब्दी की हैं। यहाँ पर प्रसिद्ध चामुन्डा माता का मन्दिर है जो अठावा से 15 उमराली से 10 अलिराजपुर से 5 कि॰मी॰ दूर है।

यह छोटा-सा गांव झाबुआ जिले के पेटलावद से दक्षिण दिशा में ११ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मोहनकोट के नजदीकी दर्शनीय स्थल हैं। जो कि नन्देरी माता के मन्दिर के नाम से जाना जाता हे जो कि एक छोटी सी घाटी पर खुले मैदान में स्थित है यहाँ पर चोरी नहीं होती है। यहा पर माताजी हमेशा सोने तथा चांदी के आभूषणो से सुसज्जित रहती हैं तथा खुले स्थान में होते हुए भी चोरी नहीं होती है।

पेटलावद

पेटलावद मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में स्थित एक कस्बा और नगर पंचायत है। यह कस्बा सितम्बर २०१५ को हुए एक भयंकर विस्फोट के कारण चर्चा में आया था जिसमें १०० से भी अधिक लोग मारे गये थे।

कट्ठीवाड़ा

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झाबुआ के अन्य स्थानों से काफी ऊंचाई पर बसे इस गांव में जिले की सबसे अधिक बारिश होती है। यह सुंदर और रमणीय गांव विन्ध्य श्रृंखला के तल पर स्थित है। झरना बहुत ही सुंदर पर्यटक एवं डूंगरी माता मंदिर ,हनुमान मन्दिर, रत्नमाला प्रमुख दर्शनीय स्थल है भगोरिया यहाँ का मुख्य मेला है यहाँ का नूरजहाँ प्रजाति का आम 5 किलो ग्राम का है जो पूरे देश मे प्रचलित है कट्ठीवाड़ा अलीराजपुर से 45 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में है।अब कट्ठीवाडा आलीराजपुर जिले में है।

लखमनी ग्राम

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अलीराजपुर से 8 किलोमीटर दूर कुक्षी रोड पर स्थित यह गांव सूकर नदी के किनारे बसा है। गांव अपने जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जिनमें सफेद संगमरमर और काले संगमरमर की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं। यहां कुछ हिन्दू मंदिरों का भी पता चला है जो 10-11वीं शताब्दी के माने जाते हैं।

झाबुआ से 30 किलोमीटर दूर स्थित जोबट जिले के दक्षिणी हिस्से में है। स्वतंत्रता से पूर्व यह एक रियासत थी। जोबट बांध यहां का प्रमुख आकर्षण है। इंदौर यहां का नजदीकी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन है।

बाहरी कड़ियाँ

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  1. "रीडायरेक्ट की सूचना". www.google.com. अभिगमन तिथि 2022-09-12.[मृत कड़ियाँ]