राजा डेलन शाह (जन्म 13 अगस्त 1802) को गोत्र काकोडिया में हुआ। डेलन शाह को 1842-43 के बुंदेला विद्रोह के अलावा 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान तथा ज़बरदस्त भूमिका के लिए जाना जाता है।

आज के मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में चांवरपाठा परगने की रामगढ़ रियासत थी। रियासत की राजधानी ढिलवार मदनपुर थी।  इन्हीं राजा डेलन शाह के नेतृत्व में जिला नरसिंहपुर का स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। इस रियासत में 200 गांव आते थे और एक समय में इसका मुख्यालय तेंदूखेड़ा तहसील से 5 किमी दूरी पर वर्तमान रामपुरा गांव के पास जंगल में था। यहां पर आज भी किले, बावलियां, समाधियां और मूर्तियों  के भग्नावशेष हैं।

मराठों के लगातार आक्रमणों के कारण रामगढ ध्वस्त हो गया था। बताया जाता है कि इसलिए डेलन शाह के पिता राजा विश्राम शाह को हटना पड़ा। बाद में उन्होंनें अपने पुत्र डेलन शाह के नाम पर डेलनबाड़ा नामक बस्ती बसायी और पहाड़ी पर किला बनाया जो डेलवार, दिलवार और अपभ्रंश से ढिलवार हो गया।

यह भी जानकारी मिलती है कि राजा डेलन शाह के बेटे कुंवर रघुराज शाह भी अंग्रेजों से लड़ते हुये 17 जनवरी 1858 को बलिदान हो गये।

अँग्रेजी हुकूमत से संघर्ष की शुरूआत संपादित करें

सन् 1818 से डेलन शाह और अंग्रेजों के बीच संघर्ष की शुरूआतें के प्रमाण मिलते हैं. इतिहास में यह पता चलता है कि उन्होंने चौरागढ पर हमला कर दिया जो अंग्रेजों का ठिकाना था। हालाँकि वो अंग्रेजों के किले को जीत नहीं सके परंतु वे अंग्रेजों की कुछ संपत्ति ज़रूर लूटने में कामयाबी पाई। उन्होंने चौरागढ के आसपास के क्षेत्रों में घूम घूम कर लोगों को जागरुक किया और स्वतंत्रता की अलख जगायी।

इसी दौरान राजा डेलन शाह की मुलाकात चीचली क्षेत्र के वीर नरवर शाह से हुई। नरवर शाह कुशल योद्धा थे। अत: राजा डेलन शाह उन्हें अपने साथ मदनपुर ले आये। वे राजकाज में नरवर शाह को महत्व देते थे। उनके बीच में गहरी मित्रता हो गई थी। नरवर शाह ने कंधे से कंधा मिलाकर राजा डेलन शाह के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष में विशेष सहयोग किया।

बुंदेला विद्रोह:- सन् 1842-43 संपादित करें

इस विद्रोह को सागर जिले में नरहट के मधुकर शाह , गणेश जू देव तथा चंद्रपुर के जवाहर सिंह द्वारा प्रारंभ किया गया था। इन पर सागर के दीवानी न्यायालय ने डिक्री तामील की और एक असंभव राशि के भुगतान का आदेश दिया। इन लोगों ने इस आदेश की अवज्ञा करने का फ़ैसला किया। इन सभी ने मिल कर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंक दिया।

उन्होंने अँग्रेजों की चौकियों में तोड़ फोड़ कर दी और ब्रिटिश सिपाहियों को पीटा भी शीघ्र ही इस विद्रोह ने उग्र रूप ले लिया। ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सुलग रही आग के कारण इसमें कई राजा, सामंत, किसान, मालगुजार और प्रजा शामिल हो गये।

जिससे विद्रोह का रूप भयानक हो गया। चूंकि यह विद्रोह बुंदेला शासकों द्वारा शुरू किया गया था इसलिये यह बुंदेला विद्रोह के नाम से इतिहास में दर्ज है। नरसिंहपुर जिले में विशेषकर चांवरपाठा परगने में यह विद्रोह पूरी तरह से सफल रहा यहां इस विद्रोह का नेतृत्व  मदनपुर ढिलवार के गोंड राजा डेलन शाह ने किया।

1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम संपादित करें

अगस्त 1857 को राजा डेलन शाह के नेतृत्व में भोपाल तथा सागर के विद्रोहियों ने तेंदूखेड़ा नगर तथा पुलिस थाने को लूट लिया। शांति स्थापित करने के उद्देश्य से 28वीं मद्रास देशी पैदल सेना दो कंपनियों को जबलपुर से नरसिंहपुर बुला लिया गया।

लेकिन अक्टूबर के मध्य में नर्मदा के उत्तरी परगने पर राजा डेलन शाह, नरवर शाह, गढी अम्बापानी के नवाब आदिल मोहम्मद खान, सहजपुर के मालगुजार बलभद्र सिंह, 500 तोड़दार बंदूकधारियों,  घुड़सवारों तथा चुंगी नाके के कुछ विद्रोही चपरासियों ने तेंदूखेड़ा और बेलखेडी में हमला किया।

उसके बाद अंग्रेजों के डिप्टी कमिश्नर ने नरवर सिंह को पकड़ने के लिये 500 रुपये के पुरूस्कार की घोषणा की। 12 दिसम्बर, 1857 को कैप्टन टर्नन ने मेजर आर्सकाइन को पत्र लिखकर सूचित किया कि जनता विद्रोहियों की मदद कर रही है। इसलिये इनके विरूद्ध कोई भी सूचना पाना संभव नहीं है।

ब्रिटिश सरकार ने राजा डेलन शाह को पकड़ने के लिये इनाम की राशी बढ़ा कर 1000 रुपये कर दी। कुछ ही दिन बाद इनाम की राशि दो गुनी कर 2000 रुपये कर दी गई फिर भी अँग्रेजों को कोई फायदा नहीं हुआ।

अंग्रेजो से युद्ध संपादित करें

18 नवम्बर 1857 को कैप्टन टर्नन ने राजा डेलन शाह के ढिलवार स्थित किले में आग लगा दी। परंतु डेलन शाह और नरवर शाह को पकड़ा नहीं जा सका वे जंगलों में छिप जाते थे। हालाँकि इस दौरान नरवर शाह का एक भतीजा पकड़ लिया गया और उसे फांसी पर लटका दिया गया।

9 जनवरी, 1858 को राहतगढ और भोपाल से लगभग 4000 विद्रोहियों ने जिनमें भोपाल के नवाब आदिल मोहम्मद खान, सागर के बहादुर सिंह, 250 घुड़सवार पठानों ने राजा डेलन शाह और नरवर शाह के नेतृत्व में तेंदखेड़ा पर पुन: जोरदार आक्रमण किया। इस हमले में बेहद कम समय में ही तेंदूखेड़ा पर कब्जा कर लिया।

17 जनवरी 1858 को अंग्रेजों ने लौटकर मदनपुर पर आक्रमण किया और चीकली ग्राम में राजा डेलन शाह के पुत्र कुंवर रघुराज शाह तथा 5 वर्ष के प्रपौत्र चित्र भानु शाह को यातनाय देकर निर्ममता पूर्वक फांसी पर लटका दिया गया। राजा डेलन शाह की पत्नि रानी मदन कुंवर और पुत्रवधु रतन कुंवर तथा रनिवास की अन्य स्त्रियों पर भी भारी ज़ुल्म हुआ।

इन परिस्थितियों ने राजा डेलन शाह को अंदर तक झकझोर दिया। परिवार का साथ बिछड़ने और अपने कुछ गद्दार साथियों की वजह से राजा डेलन शाह को चुनौती देना आसान हो गया।

अँतत: राजा डेलन शाह को उनके साथियों सहित पकड़ लिया गया और 16 मई, 1858 के दिन उनके ढिलवार किले के पीछे बरगद के पेड़ पर फाँसी दे दी गई। इसी जगह पर 1961 में डेलन शाह शहीद स्मारक बनाया गया है जहां लोग श्रद्धा से सर झुकाते हैं।

संदर्भ संपादित करें