शिव

त्रिदेव में से एक
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शिव हिंदु धर्म के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय देवता हैं, उन्हे जगत का संहारक देवता भी माना जाता है। हिंदू धर्म और विशेष रूप से शैव, शाक्त संप्रदायो में उन्हे परब्रह्म (सर्वोच्च ईश्वर) माना गया है।[1] वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव( महादेव ),भोलेनाथ, शंकर, आदिदेव , आशुतोष, महेश, कपाली, पार्वतीवल्लभ, कपाली , महाकाल, रामेश्वर, भिलपती, भिलेश्वर,रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में उन्हे भैरव तथा वैदिक साहित्य में उन्हे रुद्र कहा गया है।[2] भगवान शिव की शक्ति और अर्धांगिनी माता पार्वती है, शिव नित्य कैलाश लोक में अपनी प्रियतमा सहचारी मां पार्वती के साथ विहार करते हैं। इनके पुत्र कार्तिकेय , अय्यपा और गणेश हैं, तथा पुत्रियां अशोक सुंदरी , ज्योति और मनसा देवी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।[3] [4][5][6]

शिव

शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, नृत्य, प्रलय और वैराग्य के देवता, सृष्टि के संहारकर्ता और जगतपिता

परब्रह्म

भगवान शिव
अन्य नाम नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, महेश्वर, पशुपतिनाथ, नटराज, भोलेनाथ, बैद्यनाथ, रुद्र , भैरव
संबंध हिन्दू देवता, परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर
निवासस्थान

कैलाश पर्वत

श्मशान
मंत्र ॐ नमः शिवाय
ॐ नमो भगवते रूद्राय
महामृत्युंजय मंत्र
अस्त्र त्रिशूल
पिनाक धनुष
परशु
पशुपतास्त्र
जीवनसाथी पार्वती (सती का पुनर्जन्म) और सती
भाई-बहन सरस्वती (छोटी बहन)
संतान कार्तिकेय ,गणेश , अशोकसुन्दरी , अय्यपा, मनसा देवी और ज्योति
सवारी नन्दी

शिवजी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। इन्हें अन्य देवों से बढ़कर माना जाने के कारण महादेव कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, त्रिलोचन [तीन नयन वाले], शशिभूषण आदि।

भगवान शिव को रूद्र नाम से जाना जाता है रुद्र का अर्थ है रुत् दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवे अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित हैं रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप, सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सर्व अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव का ज्ञाता होकर साधक अद्वैतनिष्ठ बनता है। संदर्भ रुद्राष्टाध्यायी पृष्ठ संख्या 10 गीता प्रेस गोरखपुर।

शिवजी

रामायण में भगवान राम के कथन अनुसार शिव और राम में अंतर जानने वाला कभी भी भगवान शिव का या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रुद्र अष्टाध्यायी के अनुसार सूर्य, इंद्र, विराट पुरुष, हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप हैं। भगवान सूर्य के रूप में वे शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं। आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है। मनुष्य अपने-अपने कर्मानुसार फल पाते हैं अर्थात स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि रूपी जल, अन्न, धन, आरोग्य, सुख आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों के लिए व्याधि, दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी करते हैं।

शिव स्वरूप

 
शिव प्रतिमा
 
उत्तर प्रदेश के गोला गोकर्णनाथ में शिव प्रतिमा

शिव स्वरूप सूर्य

जिस प्रकार इस ब्रह्माण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत, उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।पवित्र श्री देवी भागवत महापुराण में भगवान शंकर को तमोगुण बताया गया है इसका प्रमाण श्री देवी भागवत महापुराण अध्याय 5, स्कंद 3, पृष्ठ 121 में दिया गया है।

शिव पुराण

पवित्र शिव पुराण एक लेख के अनुसार, कैलाशपति शिव जी ने देवी आदिशक्ति और सदाशिव से कहे है कि हे मात! ब्रह्मा तुम्हारी सन्तान है तथा विष्णु की उत्पति भी आप से हुई है तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला में भी आपकी सन्तान हुआ।

ब्रह्मा और विष्णु सदाशिव के आधे अवतार है, परंतु कैलाशपति शिव "सदाशिव" के पूर्ण अवतार है। जैसे कृष्ण विष्णु के पूर्ण अवतार है उसी प्रकार कैलाशपति शिव "ओमकार सदाशिव" के पूर्ण अवतार है। सदाशिव और शिव दिखने में, वेषभूषा और गुण में बिल्कुल समान है। इसी प्रकार देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती (दुर्गा) आदिशक्ति की अवतार है।

शिव पुराण के लेख के अनुसार सदाशिव जी कहे है कि जो मुझमे और कैलाशपति शिव में भेद करेगा या हम दोनों को अलग मानेगा वो नर्क में गिरेगा । या फिर शिव और विष्णु में जो भेद करेगा वो नर्क में गिरेगा। वास्तव में मुझमे, ब्रह्मा, विष्णु और कैलाशपति शिव कोई भेद नहीं हम एक ही है। परंतु सृष्टि के कार्य के लिए हम अलग अलग रूप लेते है ।

शिव स्वरूप शंकर जी

पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक, एक ही मानव शरीर एैसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। वेदो शिवम शिवो वेदम।। परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।

शिवलिंग

शिव के नंदी गण

  1. नंदी
  2. भृंगी
  3. रिटी
  4. टुंडी
  5. श्रृंगी
  6. नन्दिकेश्वर
  7. बेताल
  8. पिशाच
  9. तोतला
  10. भूतनाथ

शिव की अष्टमूर्ति

1. पृथ्वीमूर्ति - शर्व
2. जलमूर्ति - भव
3. तेजमूर्ति - रूद्र
4. वायुमूर्ति - उग्र
5. आकाशमूर्ति - भीम
6. अग्निमूर्ति - पशुपति
7. सूर्यमूर्ति - ईशान
8. चन्द्रमूर्ति - महादेव

व्यक्तित्व

शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि।[7]

पूजन

शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए।[8] शिव को बिल्वपत्र, पुष्प, चन्दन का स्नान प्रिय हैं। इनकी पूजा के लिये दूध, दही, घी, चीनी, शहद इन पांच अमृत जिसे पञ्चामृत कहा जाता है, से की जाती है। शिव का त्रिशूल और डमरू की ध्वनि मंगल, गुरु से संबंधित हैं। चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान होकर अपनी कांति से अनंताकाश में जटाधारी महामृत्युंजय को प्रसन्न रखता है तो बुधादि ग्रह समभाव में सहायक बनते हैं। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है। सावन सोमवार व्रत को काफी फलदायी बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।[9] महाशिवरात्रि का व्रत अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए करते हैं।

ज्योतिर्लिंग स्थान
पशुपतिनाथ नेपाल की राजधानी काठमांडू
सोमनाथ सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात
महाकालेश्वर श्री महाकाल, महाकालेश्वर, उज्जयिनी (उज्जैन)
ॐकारेश्वर ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, ॐकारेश्वर
केदारनाथ केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड
भीमाशंकर भीमाशंकर मंदिर, निकट पुणे, महाराष्ट्र
विश्वनाथ काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर, नासिक, महाराष्ट्र
रामेश्वरम रामेश्वरम मंदिर, रामनाथपुरम, तमिल नाडु
घृष्णेश्वर घृष्णेश्वर मन्दिर, वेरुळ, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
बैद्यनाथ देवघर झारखण्ड
नागेश्वर औंढा नागनाथ महाराष्ट्र नागेश्वर मन्दिर, द्वारका, गुजरात
श्रीशैल श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम), आंध्र प्रदेश

अनेक नाम

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है

  • रूद्र - रूद्र से अभिप्राय जो दुखों का निर्माण व नाश करता है।
  • पशुपतिनाथ - भगवान शिव को पशुपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवआत्माओं के स्वामी हैं
  • अर्धनारीश्वर - शिव और शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम प्रचलित हुआ।
  • महादेव - महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति।
  • भोलेनाथ - भोलेनाथ का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वालों में अग्रणी। यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शंकर आसानी से किसी पर भी प्रसन्न हो जाते हैं।
  • लिंगम - पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है।
  • नटराज - नटराज को नृत्य का देवता मानते है क्योंकि भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी है। "शिव" शब्द का अर्थ "शुभ, स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण" होता है। लोक व्युत्पत्ति में "शिव" की जड़ "शि" है जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक है और "वा" इसका अर्थ है "अनुग्रह के अवतार"। ऋग वेद में शिव शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है, रुद्रा सहित कई ऋग्वेदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में। शिव शब्द ने "मुक्ति, अंतिम मुक्ति" और "शुभ व्यक्ति" का भी अर्थ दिया है।  इस विशेषण का प्रयोग विशेष रूप से साहित्य के वैदिक परतों में कई देवताओं को संबोधित करने हेतु किया गया है। यह शब्द वैदिक रुद्रा-शिव से महाकाव्यों और पुराणों में नाम शिव के रूप में विकसित हुआ, एक शुभ देवता के रूप में, जो "निर्माता, प्रजनक और संहारक" होता है।
  • महाकाल अर्थात समय के देवता, यह भगवान शिव का एक रूप है जो ब्राह्मण के समय आयामो को नियंत्रित करते है।

शिवरात्रि

प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कही गई है। इस दिन शिवोपासना भुक्ति एवं मुक्ति दोनों देने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा विष्णु ने शिवलिंग की पूजा सृष्टि में पहली बार की थी और महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादि हुई थी। इसलिए भगवान शिव ने इस दिन को वरदान दिया था और यह दिन भगवान शिव का बहुत ही प्रिय दिन है। महाशिवरात्रि का।

माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। ॥ शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ॥

भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए। कुछ विद्वान प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में ग्रहण करते हैं। नारद संहिता में आया है कि जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी कही गई है।

ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं, जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं। यद्यपि चतुर्दशी का चंद्रमा क्षीण रहता है, लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं। मारक या अनिष्ट की आशंका में महामृत्युंजय शिव की आराधना ग्रहयोगों के आधार पर बताई जाती है। बारह राशियां, बारह ज्योतिर्लिगों की आराधना या दर्शन मात्र से सकारात्मक फलदायिनी हो जाती है।

यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।

महाशिवरात्रि

 
शिव की मूर्ति

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। भगवान शिव का यह प्रमुख पर्व फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माता पार्वती की पति रूप के महादेव शिव को पाने के लिये की गई तपस्या का फल महाशिवरात्रि है। यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है।[10] इसी दिन माता पार्वती और शिव विवाह के पवित्र सूत्र में बंधे। शादी में जिन 7 वचनों का वादा वर-वधु आपस में करते है उसका कारण शिव पार्वती विवाह है। महादेव शिव का जन्म उलेखन कुछ ही ग्रंथों में मिलता है। परंतु शिव अजन्मा है उनका जन्म या अवतार नहीं हुआ। महाशिवरात्रि पर्व भारत वर्ष में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।

शिव महापुराण

शिव महापुराण में देवो के देव महादेव अर्थात् महाकाल के बारे में विस्तार से बताया गया है शिव पुराण में शिव लीलाओ और उनके जीवन की सभी घटनाओ के बारे में उल्लेख किया गया है।[11]शिव पुराण में प्रमुख रूप से 12 सहिंताये है। महादेव को एक बार इस दुनिया को बचाने के लिए विष का पान करना पड़ा था, और उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण करना पड़ा था।[12] इसी वजह से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।[13]

कैलाश मानसरोवर

कुछ कथाओं के अनुसार कैलाश सरोवर को शिव का निवास स्थान माना जाता है।

भगवान शिव के अनेक अवतार है प्रलयकाल के समय इनका अवतार निराकार ब्रह्मम जिसे किउत्तराखण्ड में निरंकार देवता के नाम से भी पूजा जाता है एक ऐसा हि अन्य अवतार है भैरवनाथ अवतार जिसे भैरव या कालभैरव के नाम से पूजा जाता है।[5]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Shiva In Mythology: Let's Reimagine The Lord".
  2. संजय पोखरियाल (13-11-2017). "तस्वीरों के जरिए जानें, भगवान शिव के ये आभूषण देते हैं किन बातों का संदेश". मूल से 7 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2018. नामालूम प्राचल |Publisher= की उपेक्षा की गयी (|publisher= सुझावित है) (मदद); |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. हिमान्शु जी शर्मा (13-02-2018). "भगवान शिव के इन गुणों को अपनाएंगे तो आपका जीवन सफल हो जाएगा।". मूल से 24 फ़रवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जनवरी 2022. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. K. Sivaraman (1973). Śaivism in Philosophical Perspective: A Study of the Formative Concepts, Problems, and Methods of Śaiva Siddhānta. Motilal Banarsidass. पृ॰ 131. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1771-5. मूल से 7 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 मार्च 2020.
  5. Flood 1996, पृष्ठ 17, 153
  6. Zimmer (1972) pp. 124-126
  7. "Maha Shivratri 2020: जानिए क्‍यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि?". NDTVIndia. मूल से 20 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-20.
  8. "शिवोपासना और सोमवार का क्या है रहस्य, जानें विस्तार से". प्रभात खबर. अभिगमन तिथि 22 July 2024.
  9. "सावन का दूसरा सोमवार आज, जानिए पूजा सामग्री, विधि, कथा और मुहूर्त". Jansatta. 2020-07-13. मूल से 14 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-14.
  10. नवभारतटाइम्स.कॉम (2019-03-03). "Mahashivratri: इसलिए मनाई जाती है महाशिवरात्रि, हुई थी यह घटना". नवभारत टाइम्स. मूल से 24 अप्रैल 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-14.
  11. संक्षिप्त शिवपुराण (विशिष्ठ संस्करण), गीता प्रेस, गोरखपुर;कोड संख्या १४६८, मूल से 20 फ़रवरी 2022 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 27 फ़रवरी 2022
  12. नवभारतटाइम्स.कॉम (2018-04-20). "आखिर भगवान शिव क्यों कहलाए गए नीलकंठ महादेव". नवभारत टाइम्स. मूल से 12 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-20.
  13. Webdunia. "शिव महापुराण : परिचय और 8 पवित्र संहिताएं". hindi.webdunia.com. मूल से 31 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-07.

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