काशी विश्वनाथ मन्दिर

उत्तर प्रदेश के बनारस में स्थित भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक
(काशी विश्वनाथ मंदिर से अनुप्रेषित)

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भारत के उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर बनारस के विश्वनाथ गली में स्थित है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों सालों से पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।[1] वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था, और इसलिए इस मंदिर को लोकप्रिय रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर को हिंदू शास्त्रों द्वारा शैव संस्कृति में पूजा का एक केंद्रीय हिस्सा माना जाता है।

श्री काशी विश्वनाथ, विश्वेश्वर
Benares- The Golden Temple, India, ca. 1915 (IMP-CSCNWW33-OS14-66).jpg
काशी विश्वनाथ मन्दिर, 1915 नक्शा
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासनातन हिन्दू धर्म
देवताविश्वनाथ
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिवाराणसी, उत्तर प्रदेश
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू वास्तुकला
निर्मातामहारानी अहिल्या बाई होल्कर
स्थापित1780

इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

विश्वनाथ मंदिर को इतिहास में कई मुस्लिम शासकों द्वारा बार बार तोड़ा गया। मुगल शासक औरंगज़ेब इस मंदिर को गिराने वाला अंतिम मुस्लिम शासक था जिसने मंदिर के स्थान पर वर्तमान ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया। मंदिर की वर्तमान संरचना १७८० में इंदौर के मराठा शासक अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निकटवर्ती स्थान पर बनाई गई थी।[2]

निर्माणसंपादित करें

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था।[3]. बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1835 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।[4].

काशी विश्वनाथ का इतिहाससंपादित करें

उत्तर प्रदेश के वाराणसी धरती की सबसे पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. भगवान के 12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार इस मंदिर को विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है।

जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.

जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया।

धारणासंपादित करें

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हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

परम्परासंपादित करें

धर्म नगरी काशी और सबसे बड़ी बात की आदि देव शंकर की बसायी नगर काशी में सावन महीने का अलग ही महत्व है। यहां सावन महीने में कांवरियों का सैलाब उमड़ता है। सर्वप्रथम काशी के यदुवंशी (Yadav) "चंद्रवंशी गोप सेवा समिति" अपने प्रिय देव बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। ये परंपरा करीब 90 साल पुरानी है। पहली बार इस परंपरा की शुरूआत 1932 में हुई जो अब तक निर्विवाद् रूप से जारी है। पिछले दो वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते चंद्रवंशी गोप सेवा समिति ने सांकेतिक रूप से ही सही पर परंपरा को जीवित रखा और सीमित संख्या में ही बाबा का जलाभिषेक किया। चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी यादव बताते हैं कि सन 1932 में पड़े अकाल के समय बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक की परम्परा शुरू हुई थी। तब से अब तक इस परम्परा का निर्वहन निरंतरत जारी है। मान्यता है कि यादव(Ahir) बंधुओं के जलाभिषेक से बाबा प्रसन्न होते हैं फिर वर्षा होती है। पूरा साल धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। भारत में वर्ष 1932 में घोर अकाल के दौरान यहां के यदुवंशियों ने बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया था। जलाभिषेक होते ही वर्षा शुरू हुई और लगातार तीन दिनों तक होती रही। तभी से हर वर्ष यदुवंशी (यादव) समाज को ही सावन के पहले सोमवार को सर्वप्रथम बाबा का जलाभिषेक करने का अधिकार प्राप्त है।

महिमासंपादित करें

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

  • दशाश्वेमघ,
  • लोलार्ककुण्ड,
  • बिन्दुमाधव,
  • केशव और
  • मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1. "Kashi Vishwanath Mandir: काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग के स्थापना की कहानी जानिए, कितने शिवलिंग हैं और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?". ABP News (hindi में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  2. "Kashi Vishwanath: हज़ारों साल पुराना है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास, पढ़ें मंदिर बनने और टूटने की दिलचस्प कहानी". News18 (hindi में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. "श्री काशि विश्वनाथ मंदिर - एक संक्षेप इतिहास". मूल से 10 फ़रवरी 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2008.
  4. "श्री काशि विश्वनाथ मंदिर". मूल से 7 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2008.

[1]

बाहरी कड़ियाँसंपादित करें

निर्देशांक: 25°18′38.79″N 83°0′38.21″E / 25.3107750°N 83.0106139°E / 25.3107750; 83.0106139

  1. "भारत के पांच प्रसिद्ध मंदिर घूमने वह मनोकामना पूरी करने के लिए प्रसिद्ध मंदिर hindinews" (अंग्रेज़ी में). 2023-01-15. अभिगमन तिथि 2023-01-16.