काशी का इतिहास

गहरवार क्षत्रिय नगरी

गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। वाराणसी का मूल नगर काशी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद में नगर का उल्लेख आता है।

वाराणसी (बनारस), १९२२

सामान्यतः वाराणसी शहर को कम से कम ३००० वर्ष प्राचीन तो माना ही जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दाँत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि॰मी॰ तक लिखा है। ।[1]

द्वापरयुग

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महाभारत पूर्व मगध में राजा जरासन्ध ने राज्य किया और काशी भी उसी साम्राज्य में समा गई। आर्यों के यहां कन्या के विवाह स्वयंवर के द्वारा होते थे। एक स्वयंवर में पाण्डव और कौरव के पितामह भीष्म ने काशी नरेश कोलिय नागवंशीयो की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका कोली नागवंशीय राजकुमारी का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। महाभारत युद्ध में जरासन्ध और उसका पुत्र सहदेव दोनों काम आये। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डव वर्तमान प्रयागराज जिला में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर मगध की जगह अब वत्स का अधिकार हुआ।

उपनिषद काल

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बनारस का तैल चित्र, १८९०

इसके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े पंडित शासक हुए और बाद में ज्ञान और पंडिताई ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय राजकुल में राजा अश्वपति था। तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचालों में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ।[1] ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।

महाजनपद युग

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महाजनपद काल में काशी महाजनपद आधुनिक काशी राज्य/ बनारस रियासत [2] एवं नारायण राजवंश के पूर्वजों के द्वारा शासित किया गया था। कालांतर में काशी राज्य पर बाहरी हमलावरों का नियंत्रण कायम हो गया था। काशी महाजनपद के राजवंश के वंशज राजा मंशाराम सिंह ने पुनः सन् 1737 ईस्वी में अपने पूर्वजों के राज्य पर अपना अधिकार करके काशी एवं आसपास के इलाकों को मिलाकर ' काशी राज्य Banaras State' के नाम से ए[3]क स्वतंत्र सनातन राज्य की स्थापना किया था। समय बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवियों में साधु वर्धमान महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्यों में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राज्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई।[1] राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया।

आधुनिक काशी राज्य ( नारायण राजवंश) गौतम गोत्री भूमिहार

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आधुनिक काशी राज्य/ बनारस रियासत सन् 1737 ईस्वी में अस्तित्व में आया था। इस रियासत की स्थापना राजा मंशाराम सिंह ने अपने भाईयों/ अनुजों बाबू दशाराम सिंह, बाबू मायाराम सिंह एवं बाबू दयाराम सिंह के सहयोग से किया था। काशी राजवंश को 'नारायण राजवंश' के रूप में जाना जाता है। वंशावली के अनुसार नारायण राजवंश का मुख्य राजपरिवार अर्थात महाराजा चेत सिंह का वंशज राजपरिवार सन् 1781 ईस्वी से ग्वालियर में निवासरत है। परिवार के मुखिया को राजा का नामधारी उपाधि प्रदान किया जाता है। वंशावली के अनुसार ग्वालियर के राजा प्रहलाद सिंह वर्तमान समय में नारायण राजवंश परिवार के मुखिया हैं। दूसरी ओर महाराजा चेत सिंह के भांजे महिप नारायण सिंह के वंशजों एवं उतराधिकारीयो ने काशी नरेश की परंपरा का निर्वाहन किया। [4]भारतीय स्वतंत्रता उपरांत अन्य सभी रजवाड़ों के समान काशी नरेश ने भी अपनी सभी प्रशासनिक शक्तियां छोड़ कर मात्र एक प्रसिद्ध हस्ती की भांति रहना आरंभ किया। वर्तमान स्थिति में ये मात्र एक सम्मानीय उपाधि रह गयी है। काशी नरेश का रामनगर किला वाराणसी शहर के पूर्व में गंगा नदी के तट पर बना हुआ है।[5] काशी नरेश का एक अन्य किला चेत सिंह महल, शिवाला घाट, वाराणसी में स्थित है। यहीं महाराज चेत सिंह ने ब्रिटिश सरकार के २०० से अधिक सैनिकों को घेर कर मार गिराया था।[6] रामनगर किला और इसका संग्रहालय अब बनारस के राजाओं के सम्मान में एक स्मारक बना हुआ है। इसके अलावा १८वीं शताब्दी से ये काशी नरेश का आधिकारिक आवास बना हुआ है।[7] आज भी काशी नरेश को शहर में सम्मान की दृष्टि के साथ देखा जाता है।[8] ये शहर के धार्मिक अग्रणी रहे हैं और यहाँ की प्रजा के द्वारा भगवान शिवजी के अवतार माने जाते हैं।[9] ये शहर के धार्मिक संरक्षक भी माने जाते हैं और सभी धामिक कार्यकलापों में अभिन्न भाग लेतें हैं।[10]

काशी नरेशों की सूची

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काशी नरेशों की सूची राज्य आरंभ राज्य समाप्त
राजा मनसाराम सिंह १७३७ १७४०
महाराजा बलवंत सिंह १७४० १७७०
महाराजा चेत सिंह १७७० १७८०
महाराजा महीप नारायण सिंह १७८१ १७९४
महाराजा उदित नारायण सिंह १७९४ १८३५
महाराजा श्री ईश्वरी नारायण सिंह बहादुर १८३५ १८८९
लेफ़्टि. कर्नल महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह बहादुर १८८९ १९३१
कैप्टन महाराजा श्री सर आदित्य नारायण सिंह १९३१ १९३९
महाराजा डॉ॰विभूति नारायण सिंह १९३९ १९४७

डॉ॰ विभूति नारायण सिंह भारतीय स्वतंत्रता पूर्व के अंतिम काशीनरेश थे। इसके बाद १५ अक्टूबर १९४८ को काशी राज्य भारतीय संघ में मिल गया। २००० में इनकी मृत्यु के उपरांत इनके पुत्र अनंत नारायण सिंह ही काशी नरेश हैं और इस परंपरा के वाहक हैं।

  1. उपाध्याय, भगवतशरण (२६). भारत के नगरों की कहानी. राजपाल एंड सन्स. pp. ७२. doi:६५७. ISBN:81-7028-593-3. Archived from the original (अजिल्द) on 2 अक्तूबर 2011. पतितपावनी गंगा के तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। आज से हजारों बरस पहले नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। वे नाटे कद के साँवले लोग शान्ति और प्रेम के पुजारी थे। .... {{cite book}}: Check |doi= value (help); Check date values in: |year=, |date=, |archive-date=, and |year= / |date= mismatch (help); Cite has empty unknown parameters: |origmonth=, |chapterurl=, and |origdate= (help); Unknown parameter |month= ignored (help); line feed character in |quote= at position 214 (help)
  2. -, Dr. Mamta Rani; -, Ms. Ritu Rani (2024-04-01). "भारत में महिला सशक्तिकरण: प्राचीन काल से आधुनिक काल". International Journal For Multidisciplinary Research. 6 (2). doi:10.36948/ijfmr.2024.v06i02.16072. ISSN 2582-2160. {{cite journal}}: |last= has numeric name (help)
  3. अधिकारी Adhikari, बालाकृष्ण Balakrishna (2019-12-20). "नेपाली साहित्यको संक्षिप्त इतिहास मा इतिहास चेतनायुक्त विचारधारा Nepali Sahityako Samkshipta Itihasma Itihas Chetanayukta Bichardhara". Tribhuvan University Journal. 33 (2): 203–222. doi:10.3126/tuj.v33i2.33648. ISSN 2091-0916.
  4. अधिकारी Adhikari, बालाकृष्ण Balakrishna (2019-12-20). "नेपाली साहित्यको संक्षिप्त इतिहास मा इतिहास चेतनायुक्त विचारधारा Nepali Sahityako Samkshipta Itihasma Itihas Chetanayukta Bichardhara". Tribhuvan University Journal. 33 (2): 203–222. doi:10.3126/tuj.v33i2.33648. ISSN 2091-0916.
  5. "A review of Varanasi". Archived from the original on 24 सितंबर 2009. Retrieved 2 मई 2010.
  6. हिन्दुस्तान टाइम्स, १० मई, २००७
  7. Mitra, Swati (2002). Good Earth Varanasi city guide. Eicher Goodearth Limited. pp. 216. ISBN 9788187780045.
  8. Mitra, Swati (2002). Good Earth Varanasi city guide. Eicher Goodearth Limited. pp. 216. ISBN 9788187780045.
  9. Mitra, Swati (2002). Good Earth Varanasi city guide. Eicher Goodearth Limited. pp. 216. ISBN 9788187780045.
  10. Mitra, Swati (2002). Good Earth Varanasi city guide. Eicher Goodearth Limited. pp. 216. ISBN 9788187780045.
  • Diana L. Eck, Banāras, City of Light, Knopf, 1982.
  • Swati Mitra, Good Earth Varanasi city guide, Eicher Goodearth Limited, 2002, isbn = 9788187780045.
  • Christopher Alan Bayly, Rulers, Townsmen and Bazaars. North Indian Society in the Age of British Expansion, 1780-1870, Cambridge University Press, 1983.

इन्हें भी देखें

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