धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्त
धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्त (पालि में) या धर्मचक्रप्रवर्तनसूत्र (संस्कृत में) बौद्ध ग्रन्थ है जिसमें गौतम बुद्ध द्वारा ज्ञानप्राप्ति के बाद दिया गया प्रथम उपदेश संगृहित है।
बुद्ध ने यह उपदेश ज्ञान प्राप्ति के सात सप्ताह के बाद आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन ऋषिपत्तन मृगदाय (वर्तमान सारनाथ) में अपने पाँच पूर्व साथियों (कौण्डिन्य, अस्सजि, वप्प, महानाम, भद्दिय) को दिया था। इन पाँच भिक्षुओं को 'पञ्चवर्गिक' कहते हैं। यह उपदेश बौद्ध धर्म का मूलतत्त्व एवं सार है। इस सुत्त में चार आर्य सत्यों का प्रमुखता से वर्णन है। इसमें 'मध्यमार्ग' के दर्शन का भी वर्णन है।
विविध रूप
संपादित करेंधर्मचक्रप्रवतनसूत्र बीस से भी अधिक रूपों में उपलब्ध है, जिसमें पालि, संस्कृत, तिब्बती और चीनी रूप सम्मिलित हैं। यह सूत्र जिन ग्रन्थों में पाया जाता है, उसमें से प्रमुख ग्रन्थ ये हैं-
- संयुक्तनिकाय का थेरवाद संस्करण तथा खन्धक
- संयुक्त आगम के चीनी भाषा के अनुवाद में एक सर्वास्तिवाद
- तिब्बती पिटक का सर्वास्तिवाद संस्करण
- मूलसर्वास्तिवाद विनय के क्षुद्रकवस्तु में स्थित एक मूलसर्वास्तिवाद संस्करण
- पाँच भागों वाला विनय में स्थित महीशासक संस्करण
- चार भागों वाले विनय में स्थित एक धर्मगुप्तक संस्करण
- एकोत्तरिक आगम में स्थित दो संस्करण
- महावस्तु में स्थित एक महासांघिक संस्करण
- चतुष्पारिषत्-सूत्र में समाहित एक संस्करण
सूत्र और उनके हिन्दी अनुवाद
संपादित करेंसूत्र (पालि में) | हिन्दी अनुवाद |
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एवं मे सुतं । एकं समयं भगवा वाराणसियं विहरति इसिपतने मिगदाये । तत्र खो भगवा पंचविग्गये भिक्खू आमन्तेसि । | ऐसा मैंने सुना है। एक समय भगवान् वाराणसी के ऋषिपतन मृगदाव में विहार कर रहे थे। वहाँ भगवान् ने पञ्चवर्गीय भिक्षुओं को सम्बोधित किया- |
द्वे मे भिक्खवे अन्ता पब्बजितेन न सेवितब्बा । कतमे द्वे ? यो चायं कामेसु कामसुखल्लिकानुयोगो हीनोगम्मो पोथुज्जनिको अनरियो अनत्थसंहितो । यो चायं अत्तकिलमथानुयोगो दुक्खो अनरियो अनत्थसंहितो । ए ते खो भिक्खवे उभो अन्ते अनुपगम्म मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति । | भिक्षुओ ! इन दो अन्तों (= चरम बातों ) की प्रव्रजितों को नहीं सेवन करना चाहिये। कौन से दो? (प्रथम) जो यह हीन, ग्राम्य, पृथक् जनों के योग्य, अनार्य ( सेवित ), अनर्थों से युक्त कामवासनाओं में काम-सुख लिप्त होना है, और (द्वितीय) जो यह दुःखमय, अनार्य ( - सेवित), अनर्थों से युक्त श्रात्म-पीड़न (= कायक्लेश ) में लगना है। भिक्षुओ ! इन दोनों अन्तों (= चरम बातों) में न जाकर तथागत ने मध्यम मार्ग को जाना है, ( जो कि ) आँख देने- वाला, ज्ञान करने वाला, शान्ति के लिये, अभिज्ञा के लिये, सम्बोधि ( = परम ज्ञान ) के लिये, निर्वाण के लिये है।[1] |
कतमा च सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति । अयमेव अरियो अट्टंगिको मग्गो । सेय्यथीदं । सम्मादिट्ठि । सम्मासंकपो । सम्मावाचा । सम्माकम्मन्तो । सम्माआजीवो । सम्मावायामो । सम्मासति । सम्मासमाधि। अयं खो सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति। | भिक्षुओ ! तथागत ने कौन सा मध्यम मार्ग जाना है ( जो कि ) आँख देनेवाला, ज्ञान करनेवाला, शान्ति के लिये, अभिज्ञा के लिये सम्बोधि के लिये, निर्वाण के लिये है? यही आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग है, जैसे कि - ( १ ) सम्यक् दृष्टि ( २ ) सम्यक् संकल्प ( ३ ) सम्यक् वचन ( ४ ) सम्यक् कर्मान्त ( ५ ) सम्यक् आजीविका (६) सम्यक् व्यायाम ( = प्रयत्न ) (७) सम्यक स्मृति (८) सम्यक् समाधि । मित्रो ! इस मध्यम मार्ग को तथागत ने जाना है (जो कि ) आँख देनेवाला, ज्ञान करनेवाला, शान्ति के लिये, अभिज्ञा के लिये सम्बोधि के लिये, निर्वाण के लिये है । |
इदं खो पन भिक्खवे दुक्खं अरियसच्चं । जाति पि दुक्खा । जरा पि दुक्खा । व्याधि पि दुक्खा मरणं पि दुक्खं । अप्पियेहि संपयोगो दुक्खो । पियेहि विप्पयोगो दुक्खो । यं पिच्छं न लाभति तं पि दुक्खं । संखित्तेन पंचुपादानक्खन्धा पि दुक्खा । | भिक्षुओ ! यह दुःख आर्यसत्य है। जन्म भी दुःख है, जरा ( = बुढ़ापा ) भी दु:ख है, रोग भी दुःख है, मृत्यु भी दुःख हैं, अप्रियों से संयोग ( = मिलन ) दुःख है, प्रियों से वियोग दुःख है, इच्छा होने पर किसी (वस्तु) का नहीं मिलना भी दुःख है। संक्षेप में पाँच उपादान स्कन्ध भी दुःख हैं । |
इदं खो पन भिक्खवे दुक्खसमुद्यं अरियसच्चं यायं तण्हा पोनोब्भविका नंदीरागसहगता तत्रतत्राभिनंदिनी । सेय्यथींद । कामतण्हा । भवतण्हा । विभवतण्हा । | भिक्षुओ! यह दुःखसमुदय आर्यसत्य है। यह जो फिर-फिर जन्म करानेवाली, प्रीति और राग से युक्त, उत्पन्न हुए स्थानों में अभिनन्दन करानेवाली तृष्णा है, जैसे कि ( १ ) काम-कृष्णा ( २ ) भव तृष्णा ( = जन्म-सम्बन्धी तृष्णा ) ( ३ ) विभव तृष्णा ( = उच्छेद की तृष्णा )। |
इद खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधं अरियसच्चं । यो तस्सा येवतण्हाय असेसविरागनिरोधो चागो पटिनिस्सगो मुत्ति अनालयो । | भिक्षुवो ! यह दुःख-निरोध आर्यसत्य है। जो उसी तृष्णा का सर्वथा विराग है, निरोध ( = रुक जाना ), त्याग, प्रतिनिस्वर्ग (= निकास ), मुक्ति ( = छुटकारा ), लीन न होना है। |
इदं खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधगामिनिपटिपदा अरियसच्चं । अयमेव अरियो अट्ठगिको मग्गो । सेय्यथिदं सम्मादिट्ठ । सम्मासंकप्पो । सम्मावाचा । सम्माकम्मन्तो । सम्माआजीवो । सम्मावायामो । सम्मासति । सम्मासमाधि । | भिक्षुओ! यह दुःख-निरोध-गामिनी प्रतिपदा आर्यसत्य है। यही चार्य अष्टाङ्गिक मार्ग है, जो ये हैं- ( १ ) सम्यक् दृष्टि ( २ ) सम्यक् संकल्प ( ३ ) सम्यक् वचन ( ४ ) सम्यक् कर्मान्त (५) सम्यक् आजीविका (६) सम्यक् व्यायाम ( ७ ) सम्यक स्मृति ( ८ ) सम्यक् समाधि। |
इदं दुक्खं अरियसच्चं-ति मे भिक्खवे पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि । जाणं उदपादि । पञ्ञा उदपादि । विज्जा उदपादि । आलोको उदपादि ।। तं खो पनिदं दुक्खं अरियसच्चं परिञ्ञेय्यं ति मे भिक्खवे पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खु उदपादि । जाणं उदपादि । पञ्ञा उदपादि । विज्जा उदपादि । आलोको उदपादि ।। तं खो पनिदं दुक्खं अरियसच्चं परिञ्ञातं ति मे भिक्खवे पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि । जाणं उदपादि। पञ्ञा उदपादि । विज्जा उदपादि । आलोको उदपादि ।। | यह दुःख आर्यसत्य है- भिक्षुओ! यह मुझे पहले नहीं सुने गये धर्मों में आँख उत्पन्न हुई, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ। यह दुःख आर्य सत्य परिज्ञेय है। भिक्षुओ ! यह मुझे पहले न सुने गये धर्मों में उत्पन्न हुई, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, लोक उत्पन्न हुआ । 'यह दुःख आर्य सत्य परिज्ञात है' - भिक्षुओ ! यह मुझे पहले न सुने गये धर्मों में आँख उत्पन्न हुई, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ । |
इदं दुक्खसमुदयं अरियसच्च’न्ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि । ‘तं खो पनिदं दुक्खसमुदयं अरियसच्चं पहातब्ब’न्ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि ।’’ ‘‘तं खो पनिदं दुक्खसमुदयं अरियसच्चं पहीन’न्ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि । | यह दुःखसमुदय नामक आर्यसत्य है। भिक्षुगणओं! यह मुझे पहले न सुने गये धर्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ है, प्रज्ञा उत्पन्न हुई है, विद्या उत्पन्न हुई है, आलोक उत्पन्न हुआ है।
यह दुःख-समुदय आर्यसत्य है, यह प्रहातव्य है। भिक्खुओ, इसका निवारण सम्भव है। यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ है, प्रज्ञा उत्पन्न हुई है, विद्या उत्पन्न हुई है, आलोक उत्पन्न हुआ है। यह दुःख-समुदय आर्यसत्य है। यह प्रहीन्य है। भिक्खुओ! इसका प्रहाण मैंने कर लिया है, निवारण कर लिया है। यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ है, प्रज्ञा उत्पन्न हुई है, विद्या उत्पन्न हुई है, आलोक उत्पन्न हुआ है। |
"इदं दुक्खनिरोधं अरियसच्चं"-ति
मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि। तं खो पन "इदं दुक्खनिरोधं अरियसच्चं सच्छिकातब्बं-ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि। तं खो पन "इदं दुक्खनिरोधं अरियसच्चं" सच्छिकतं-ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि। |
यह दुःख निरोध आर्य सत्य है, भिक्खुओं!
यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। यह दुःख निरोध आर्य सत्य है, यह साक्षात्करणीय है, भिक्खुओं! यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। यह दुःख निरोध आर्य सत्य है, इसका साक्षात्कार मेरे द्वारा कर लिया गया, यह साक्षात्कृत है, भिक्खुओं! यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। यह दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा आर्य सत्य है, भिक्खुओं! यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। |
"इदं दुक्खनिरोधगामिनीपटिपदा अरियसच्चं"-ति
मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि। तं खो पन "इदं दुक्खनिरोधगामिनीपटिपदा अरियसच्चं" भावेतब्बं-ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि । तं खो पन "इदं दुक्खनिरोधगामिनीपटिपदा अरियसच्चं" भावितं-ति मे, भिक्खवे, पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु चक्खुं उदपादि, ञाणं उदपादि, पञ्ञा उदपादि, विज्जा उदपादि, आलोको उदपादि। |
यह दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपदा आर्य सत्य है,
यह साक्षात्करणीय है, इसका साक्षात्कार किया जा सकना सम्भव है, भिक्खुओं! यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। यह दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपदा आर्य सत्य है, यह मेरे द्वारा भावित है, यह मेरे द्वारा साक्षात्कृत है, भिक्खुओं! यह पहले न सुने गये धम्मों में आँख उत्पन्न हुई है, ज्ञान उत्पन्न हुआ, प्रज्ञा उत्पन्न हुई, विद्या उत्पन्न हुई, आलोक उत्पन्न हुआ है। |
याव कीवञ्च मे, भिक्खवे, इमेसु चतुसु अरिय सच्चेसु-
एवं तिपरिवट्टं द्वादसाकारं- यथाभूतं ञाणदस्सनं न सुविसुद्धं अहोसि, नेव तावाहं, भिक्खवे, सदेवके लोके समारके सब्रह्मके सस्समणब्राह्मणिया पजाय सदेव मनुस्साय अनुत्तरं सम्मासम्बोधिं अभिसम्बुद्धो पच्चञ्ञासिं। |
जब तक कि इन चार आर्य सत्यों को इन तीन प्रकारों से, त्रिगुण करके, बारह अंगों साथ, द्वादशनिदान करके, मुझे यथार्थ विशुद्ध ज्ञान दर्शन नहीं हुआ तब तक मैंने देवों सहित, मार सहित, ब्रह्मा सहित सारे लोक में, देव-मनुष्य श्रमण, ब्राह्मण सहित किसी के भी सम्मुख घोषणा नहीं की कि प्रज्ञा में अनुत्तर सम्यक सम्बोधि का मैंने साक्षात्कार कर लिया है। |
यतो च खो मे, भिक्खवे, इमेसु चतुसु अरिय सच्चेसु-
एवं तिपरिवट्टं द्वादसाकारं- यथाभूतं ञाणदस्सनं न सुविसुद्धं अहोसि, अथाहं, भिक्खवे, सदेवके लोके समारके सब्रह्मके सस्समणब्राह्मणिया पजाय सदेव मनुस्साय अनुत्तरं सम्मासम्बोधिं अभिसम्बुद्धो पच्चञ्ञासिं। ञाणञ्च पन दस्सनं उदपादि: "अकुप्पा चेतोविमुत्ति, अयमन्तिमा जाति, नत्थिदानि पुनब्भवो" ति। |
भिक्खुओ! जब इन चार आर्य सत्यों का द्वादशाकार ज्ञान दर्शन हुआ, तब मैंने देवों सहित, मार सहित, ब्रम्हा सहित सारे लोक में, देव-मनुष्य सहित, श्रमण-ब्राह्मण सहित सम्मुख घोषणा की है कि अनुत्तर सम्यक सम्बोधि का मैंने साक्षात्कार कर लिया है। मेरे अन्दर ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुआ, मेरी विमुक्ति अचल है, यह मेरा अन्तिम जन्म है, अब पुनः जन्म नहीं होगा। |
इदमवोच भगवा,
अत्तमना पञ्चवग्गिया भिक्खू भगवतो भासितं अभिनन्दुं-ति। इमस्मिं च पन वेय्याकरणस्मिं भञ्ञमाने, आयस्मतो कोण्डञ्ञस्स विरजं वीतमलं धम्मचक्खुं उदपादि: यं किञ्चि समुदय धम्मं, सब्बं तं निरोधधम्मं-ति। |
भगवान ने यह कहा। संतुष्ट होकर पंचवर्गीय भिक्खुओं ने भगवान के वचन का अभिनन्दन किया।
इस देशना को सुनकर आयुष्मान कौण्डिन्य को विरज, विमल धम्मचक्षु उत्पन्न हुआ कि यहाँ जो कुछ भी उत्पाद समुदय धम्म हैं, सब निरोधधर्मी हैं, सब नाशवान हैं। |
पवत्तिते च पन भगवता धम्मचक्के
भुम्मा देवा सद्दमनुस्सावेसुं: "एतं भगवता बाराणसियं इसिपतने मिगदाये, अनुत्तरं धम्मचक्कं पवत्तितं, अप्पतिवत्तिय समणेन वा ब्राह्मणेनं वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मुना वा केनचि वा लोकस्मिं"-ति। |
भगवान द्वारा धम्म चक्र प्रवर्तित किये जाने पर भूलोकवासी देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया:
"भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" |
भुम्मानं देवानं सद्दं सुत्वा चातुम्महाराजिका देवानं सद्दमनुस्सावेसुं:
"एतं भगवता बाराणसियं इसिपतने मिगदाये, अनुत्तरं धम्मचक्कं पवत्तितं, अप्पतिवत्तिय समणेन वा ब्राह्मणेनं वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मुना वा केनचि वा लोकस्मिं"-ति।
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भूलोकवासी देवों के शब्द सुनकर चातुर्महाराजिक देवताओं ने साधुनाद किया:
"भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" चातुर्महाराजिक देवों के शब्द सुनकर त्रायत्रिंश देवताओं ने साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" त्रायत्रिंश देवों के शब्द सुनकर यामा देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" यामा देवों के शब्द सुनकर तुषित देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" तुषित देवों के शब्द सुनकर निर्माणरती देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" निर्माणरती देवों के शब्द सुनकर परनिर्मितवशवर्ती देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" परनिर्मितवशवर्ती देवों के शब्द सुनकर ब्रम्हापरिषद देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" ब्रम्हापरिषद देवों के शब्द सुनकर ब्रह्मपुरोहित देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" ब्रह्मपुरोहित देवों के शब्द सुनकर महा ब्रह्मा देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" महाब्रम्हा देवों के शब्द सुनकर परित्ताभ देवताओं ने हर्ष ध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" परित्ताभ देवों के शब्द सुन कर अप्रमाण देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" अप्रमाण देवों के शब्द सुन कर आभास्वर देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" आभास्वर देवों के शब्द सुनकर परित्रशुभ देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" परित्रशुभ देवों के शब्द सुनकर अप्रमाणशुभ देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" अप्रमाणशुभ देवों के शब्द सुनकर शुभकृष्णक देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" शुभकृष्णक देवों के शब्द सुनकर वृहत्फल देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" वृहत्फल देवों के शब्द सुनकर अविह देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" अविह देवों के शब्द सुनकर अतप्य देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" अतप्य देवों के शब्द सुन कर सुदर्श देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" सुदर्श देवों के शब्द सुनकर सुदर्शी देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" सुदर्शी देवों के शब्द सुनकर अकनिष्ठ देवताओं ने हर्षध्वनि करते हुए साधुनाद किया: "भगवान द्वारा वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाय वन में जो अनुपम धम्म चक्र गतिमान किया गया है उसे अब किसी श्रमण-ब्राह्मण, देवता, मार, ब्रह्मा या लोक में किसी के भी द्वारा रोकने पर भी रोका नहीं जा सकता।" |
इतिह तेन खणेन तेन मुहुत्तेन, याव ब्रह्मलोका सद्दो अब्भुग्गञ्छि, अयञ्च दससहस्सि लोकधातु सङ्कम्पि, सम्पकम्पि सम्पवेधि, अप्पमाञो च उलारो ओभासो लोके पातुर-अहोसि, अतिक्कम्म देवानं देवानुभावं-ति। | इस प्रकार ठीक उसी क्षण, उसी मुहूर्त में यह शब्द ब्रह्मलोक तक पहुँच गया और यह दस सहस्री ब्रह्माण्ड काँप उठा, सम्प्रकम्पित, सम्प्रवेधित हो उठा तथा देवताओं की स्वाभाविक आभा से भी अधिक दीप्तिमय प्रकाश उस समय समस्त लोक में फैल गया। |
अथ खो भगवा उदानं उदानेसि:
"अञ्ञासि वत, भो कोण्डञ्ञो, अञ्ञासि वत, भो कोण्डञ्ञो' ति। इतिहिदं आयस्मतो कोण्डञ्ञस्स अञ्ञा कोण्डञ्ञो त्वेव नामं अहोसी' ति। |
तब भगवान ने यह हर्षोद्गार, उदान, व्यक्त किया:
"अहो! कौण्डिन्य ने जान लिया। कौण्डिन्य ने जान लिया।" तब से आयुष्मान कौण्डिन्य का 'अज्ञात कौण्डिन्य' ही नाम पड़ा। |
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- प्रथम बुद्ध सन्देश (भिक्षु धर्मरक्षित)
- धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्तं 2 (नेपाली भाषा में अर्थ सहित)