पवन टर्बाइन
- इस आलेख में पवन-ऊर्जा से चालित विद्युत जनरेटर की चर्चा की गयी है। वायु-चालित मशीनरी के लिए पवन-चक्की का इस्तेमाल अनाज को पीसने या पानी पंप करने के लिए होता है।
पवन टर्बाइन एक रोटरी उपकरण है, जो हवा से ऊर्जा को खींचता है। अगर यांत्रिक ऊर्जा का इस्तेमाल मशीनरी द्वारा सीधे होता है, जैसा कि पानी पंप करने लिए, इमारती लकड़ी काटने के लिए या पत्थर तोड़ने के लिए होता है, तो वह मशीनपवन-चक्की कहलाती है। इसके बदले अगर यांत्रिक ऊर्जा बिजली में परिवर्तित होती है, तो मशीन को अक्सर पवन जेनरेटर कहा जाता है।
इतिहास
संपादित करेंपवन मशीनों का इस्तेमाल फारस (वर्तमान ईरान) में 200 ई.पू. के शुरूआती दिनों में होता था।[1] हेरन ऑफ ऐलेक्जेंड्रिया का विंडह्वील (पवनचक्र) इतिहास में वायु चालित मशीन की ज्ञात पहली मिसाल है।[2][3] हालांकि, पहली व्यावहारिक पवन-चक्की का निर्माण अफगानिस्तान और ईरान के बीच के क्षेत्र सिस्टान में 7 वीं सदी में हुआ था। ये लंबवत धुरी वाले पवन-चक्की थे, जिसमें आयताकार ब्लेड के साथ लंबवत लंबे ड्राइव शाफ्ट थे।[4] ये छह से बारह पाल वाले सरकंडे की चटाई या कपड़े जैसी चीज से ढंके होते थे, इन पवन-चक्कियों का इस्तेमाल मक्का पीसने और पानी खींचने के लिए होता था और चक्की घर और गन्ना उद्योग में भी इसका उपयोग होता था।[5]
14 वीं शताब्दी तक, डच पवन चक्की का प्रयोग राइन नदी के डेल्टाई क्षेत्र में निकासी के लिए होता था। 1900 तक डेनमार्क में, पंपों और मिलों जैसे यांत्रिक लोड के लिए लगभग 2500 पवन चक्कियां थीं, अनुमानित रूप से ये सब लगभग 30 मेगावाट बिजली का उत्पादन करतीं थी। बिजली पैदा करनेवाली पहली ज्ञात पवन चक्की 1887 में स्कॉटलैंड में जेम्स ब्लीथ द्वारा स्थापित की गयी थी, वह बैटरी से चार्ज हुआ करतीं थी।[7] संयुक्त राज्य अमेरिका में बिजली उत्पादन के लिए पहली पवन चक्की का निर्माण चार्ल्स एफ ब्रुश ने 1888 में ओहियो के क्लीवलैंड में किया था और 1908 में वहां 5 किलोवाट से 25 किलोवाट तक बिजली पैदा करने वाले 72 वायु चालित विद्युत जेनरेटर थे। सबसे बड़ी मशीन 24-मीटर (79 फीट) टावर में चार ब्लेड वाले 23-मीटर (75 फीट) व्यास के रोटार थे। प्रथम विश्व युद्ध के आसपास के समय, अमेरिकी पवन चक्की निर्माताओं ने प्रत्येक वर्ष 100,000 फर्म पवन चक्की बनाया, जिनमें से ज्यादातर पानी को पंप करने के लिए थे।[8] 1930 के दशक तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में, जहां वितरण प्रणाली तब तक स्थापित नहीं हुई थी, ज्यादातर फार्मों में बिजली के लिए पवन चक्की आम थे। इस अवधि में, उच्च-तन्यता इस्पात सस्ते हो गए थे और पवन-चक्की को पूर्वनिर्मित स्टील के जालीदार खुले टॉवर के ऊपर रखा गया।
आधुनिक क्षैतिज-अक्षवाले हवा जनरेटर का एक अगुआ 1931 में सोवियत संघ के याल्टा में सेवारत था। एक 30-मीटर (98 फीट) टावर पर यह एक 100 किलोवाट जनरेटर था, जो कि 6.3 किलोवोल्ट के एक स्थानीय वितरण प्रणाली से जुड़ा होता था। बताया जाता था कि इसकी क्षमता का कारक सालाना 32 प्रतिशत था, जो कि वर्तमान पवन मशीन से बहुत भिन्न नहीं है।[9] 1941 के अंत में, पहली मेगावाट-श्रेणी के पवन टर्बाइन को वरमोंट में एक उपयोगिता ग्रिड के लिए सिंक्रनाइज़ किया गया था। स्मिथ-पुटनम नाम का पवन टर्बाइन गंभीर रूप से खराब होने से पहले केवल 1,100 घंटे तक ही चला. युद्ध का समय होने के कारण, सामग्री की कमी के चलते इस इकाई की मरम्मत नहीं हुई।
उपयोगिता ग्रिड से जुड़ा पहला पवन टर्बाइन ब्रिटेन में संचालित हुआ, जो 1954 में ओर्कनेय आईलैंड में जॉन ब्राउन एंड कंपनी द्वारा निर्मित हुआ था। यह 18-मीटर (59 फीट) व्यास वाला था, जिसमें तीन ब्लेडों वाले रोटार थे और इसका उत्पादन 100 किलोवाट दर्ज किया गया।[उद्धरण चाहिए]
संसाधन
संपादित करेंकिसी भी स्थान पर उपलब्ध पवन ऊर्जा का एक मात्रात्मक माप पवन ऊर्जा घनत्व (WPD) (डब्ल्यूपीडी)) कहलाता है, यह एक टर्बाइन के घूमते हुए क्षेत्र में प्रति वर्ग मीटर पर उपलब्ध औसत सालाना ऊर्जा की एक गणना है और जमीन के ऊपर अलग-अलग ऊंचाइयों के लिए सारणीबद्ध है। पवन ऊर्जा घनत्व की गणना में हवा का वेग और वायु घनत्व का प्रभाव शामिल है। रंगों के जरिए दिखाए गए एक क्षेत्र विशेष का नक्शा तैयार किया जाता है, उदाहरण के लिए "50 मीटर में औसत सालाना औसत ऊर्जा घनत्व." संयुक्त राज्य अमेरिका में, उपरोक्त गणना के परिणामों को यू. एस. (U.S.) के नेशनल रिन्यूएबल एनर्जी लैब द्वारा विकसित एक सूचकांक में शामिल कर लिया जाता है और "एनआरईएल सीएलएएसएस" (NREL CLASS) को भेज दिया जाता है। इससे बड़ा डब्ल्यूपीडी (WPD) गणना, श्रेणी द्वारा इसे उच्च दर्जा दिया जाता है। श्रेणी का रेंज श्रेणी 1 (200 वाट/वर्ग मीटर या 50 मीटर की दूरी पर कम ऊंचाईवाला) से लेकर श्रेणी 7 (800 से 2000 वाट/वर्ग मीटर) तक होता है। वाणिज्यिक पवन फार्मों को आमतौर पर श्रेणी 3 में या ऊंचाईवाले क्षेत्र में रखा जाता है, हालांकि दूसरी ओर एक पृथक स्थल पर श्रेणी 1 का क्षेत्र होने से फायदा उठाना व्यावहारिक हो सकता है।[10]
प्रकार
संपादित करेंपवन टर्बाइन या तो क्षैतिज अक्ष पर या लंबवत अक्ष पर घूम सकते हैं, पहले किस्म का टर्बाइन कहीं अधिक पुराना और आम दोनों ही है।[11]
क्षैतिज अक्ष
संपादित करेंक्षैतिज अक्षवाले पवन टर्बाइन (HAWT (एचएडब्ल्यूटी)) में मुख्य रोटर शाफ्ट होता है और टावर के शीर्ष पर विद्युत जनरेटर होता है और जिसका रूख जरूरी है हवा की ओर हो। सामान्य वायु फलक द्वारा छोटे टर्बाइनों का रूख तय किया जाता है, जबकि बड़े टर्बाइन में आमतौर पर सर्वो मोटर के साथ एक युग्मित वायु सेंसर का उपयोग किया जाता है। इनमें से ज्यादातर में एक गियर बॉक्स होता है, जो धीमी गति से चक्कर लगानेवाले ब्लेड को तेज गति से घुमाने लगता है, यह विद्युत जनरेटर को चलाने के लिए कहीं अधिक उपयुक्त होता हैं।[12]
चूंकि टावर इसके पीछे वायुमंडलीय विक्षोभ पैदा करता है, इसीलिए टर्बाइन को आमतौर पर इसके सहायक टावर में हवा के प्रवाह की दिशा में तैनात किया जाता हैं। हवा के तेज झोंकों द्वारा टावर से ब्लेड को टकराने से रोकने के लिए टर्बाइन के ब्लेड सख्त बनाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त, ब्लेड को टावर के सामने काफी दूरी पर लगाया जाता है और कभी-कभी हल्की हवा में ये टावर के आगे झुक जाते हैं।
वायुमंडलीय हवा के विक्षोभ (प्रक्षिप्त मस्तूल) की समस्या के बावजूद हवा के रूख के हिसाब से मशीन तैयार की जाती है, क्योंकि उन्हें हवा के साथ कतार में रखने के लिए अतिरिक्त व्यवस्था की जरूरत नहीं होती है और क्योंकि तेज हवाएं ब्लेड को मोड़ दे सकती हैं, जो इनके प्रसार क्षेत्र को कम कर देता है और इससे हवा में अवरोध पैदा होता है। चक्रीय (जो कि दोहराव है) विक्षोभ के कारण गंभीर खराबी आ सकती है, ज्यादातर एचएडब्ल्यूटी (HAWTs) हवा की दिशा में डिजाइन किए जाते हैं।
उप प्रकार
संपादित करें- 12 वीं सदी की पवन चक्कियां
यूरोप में विकसित की गईं फूहड़ संरचनाएं सामान्यत: (कम से कम) चार ब्लेडवाली होती हैं, आमतौर पर लकड़ी के कपाटवाले या कपड़े के पाल वाली होती हैं। इन पवन चक्कियों को मैन्युअल तौर पर या आखिरी में पंख लगा कर हवा के रूख की ओर लगाये जाते थे और सामान्यत: अनाज पीसने के लिए इनका उपयोग होता था। नीदरलैंड में इनका इस्तेमाल निचले इलाकों से पानी पंप करने के लिए भी होता था और पोल्डरों को सूखा रखने में इनका भूमिका बहुत ही सहायक थी।
2005 में नीदरलैंड के श्र्चिएदम में, बिजली पैदा करने के लिए एक परंपरागत शैलीवाली पवन चक्की (नोलेटमोलेन) का निर्माण किया गया।[13] कुछ42.5 मीटर (139 फीट) ऊंचे हैं, लेकिन यह चक्की दुनिया में सबसे ऊंची टावर चक्कियों में से एक है।
- 19 वीं सदी की पवन चक्कियां
1866 में बेलोइट के विस्कोनसिन में इक्लिप्स पवन चक्की कारखाने की स्थापना हुई और खेतों में पानी पंप करने तथा रेलरोड टैंकों को भरने के लिए चक्कियों का निर्माण शीघ्र ही सफल हो गया। स्टार, डेम्पस्टर और एरोमोटर जैसी अन्य कंपनियों ने भी बाजार में प्रवेश किया। गांवों में विद्युतीकरण से पहले इन चक्कियों का निर्माण लाखोंलाख की संख्या में हुआ और कम संख्या में बनना अभी भी जारी है।[8] इनमें आमतौर पर कई ब्लेड होते थे, जो एक से बेहतर टिप गति अनुपात में संचालित होते थे और इनमें प्रारंभिक टॉर्क अच्छा था। इसमें लगी बैटरी को चार्ज करने के लिए, बत्तियां जलाने के लिए या रेडियो रिसीवर को चलाने के लिए कुछ में छोटे एकदिश धारा विद्युत्-प्रवाह जेनरेटर थे। अमेरिकी ग्रामीण विद्युतीकरण ने बहुत सारे खेतों को केंद्रीय तरीके से पैदा की गयी बिजली से जोड़ा और 1950 के दशक तक निजी पवन चक्की को खेतों में बिजली के लिए प्रारंभिक स्रोत की जगह स्थानांतरित किया। इनका उत्पादन दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे दूसरे देशों में भी किया गया (जहां 1876 में अमेरिकी डिजाइन की नकली की गयी थी[14]). ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल अभी भी ऐसे स्थानों में किया जाता हैं, जहां वाणिज्यिक बिजली लाना काफी महंगा है।
- आधुनिक पवन टर्बाइन
बिजली के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए वायु फार्म में जिन टर्बाइनों का इस्तेमाल होता है उनमें आमतौर पर तीन ब्लेड होते हैं और कंप्यूटर नियंत्रित मोटर के द्वारा हवा के रूख की ओर साधे जाते हैं। इनमें टिप गति कहीं अधिक उच्च होती है320 किलोमीटर प्रति घंटा (200 मील/घंटा), जो अच्छी विश्वसनीयता प्रदान करती है ब्लेड आमतौर पर बादलों के साथ मिलते-जुलते हल्के ग्रे रंग के होते हैं और लंबाई में 20 से 40 मीटर (66 से 131 फीट) या अधिक. ट्यूबलर स्टील टावर का रेंज60 से 90 मीटर (200 से 300 फीट) से लंबा होता है। ब्लेड घूमते हुए प्रति मिनट 10-22 बार चक्कर लगाते हैं। प्रति मिनट 22 चक्कर से टिप की गति बढ़ जाती है।300 फुट प्रति सेकंड (91 मी/से)[15][16] सामान्यतः एक गियर बॉक्स का इस्तेमाल जनरेटर की गति को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है, हालांकि डिजाइन एक कुंडलाकार जनरेटर के प्रत्यक्ष ड्राइव वाला भी हो सकता है। कुछ मॉडल स्थिर गति से काम करते हैं, लेकिन परिवर्तनशील-गति टर्बाइन द्वारा कहीं अधिक ऊर्जा का संग्रह किया जा सकता है, जो ठोस-अवस्था वाले विद्युत कंवर्टर का उपयोग इंटरफेंस के लिए संचारण प्रणाली में करता है। हवा की उच्च गति से होनेवाले नुकसान से बचाने के लिए सभी टर्बाइनों के ब्लेड के सिरे पर पंख लगा दिया जाता है, जो इसकी परिक्रमा को बंद कर देता है, जैसी सुरक्षात्मक सुविधाओं से लैस किया जाता है।
अनुलंब अक्ष वाली डिज़ाइन
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अनुलंब अक्षवाले पवन टर्बाइन (या VAWTs) में मुख्य रोटर शाफ्ट अनुलंबित लगाये जाते हैं। इस व्यवस्था का मुख्य लाभ यह है कि टर्बाइन को प्रभावशाली बनाने के लिए हवा के रूख की ओर लगाये जाने की जरूरत नहीं है। हवा की दिशा जहां अत्यधिक परिवर्तनशील है उस जगह पर लगाये जाने का यह एक फायदा है।
एक लंबवत अक्ष के साथ, जमीन के करीब जनरेटर और गियरबॉक्स रखा जा सकता है, ताकि टावर को इसे संभालने की जरूरत न हो और इसका रखरखाव भी सहज हो। इसकी कमियां यह हैं कि कुछ डिजाइन टॉर्क कंपन पैदा करते हैं।
टावरों पर लंबवत अक्षवाले टर्बाइनों को लगाना कठिन होता है[उद्धरण चाहिए], इसलिए इन्हें हमेशा बुनियाद के करीब लगाया जाता है, मसलन, इसे जमीन में या इमारत की छत पर स्थापित किया जाता है। कम ऊंचाई पर हवा की गति धीमी होती है, इसलिए दिए गए आकार के टर्बाइन में कम पवन ऊर्जा उपलब्ध होती है। हवा का प्रवाह जमीन पर और अन्य वस्तुओं के पास वायु प्रवाह उग्र होता है, जिससे शोर और बीयरिंग में रगड़ होने के साथ कंपन पैदा होने जैसी बात भी हो सकती है, जिससे रखरखाव का काम बढ़ सकता है या इसके काम करने की अवधि कम हो सकती है। हालांकि, जब एक टर्बाइन को एक छत पर लगाया जाता है, तब आमतौर पर इमारत हवा को छत के ऊपर पुनर्निर्देशित करती है और इससे टर्बाइन में हवा की गति दुगुनी हो सकती है। अगर छत पर लगे टर्बाइन टावर की ऊंचाई इमारत की ऊंचाई से लगभग 50% होती हैं, तो यह पवन ऊर्जा के लिए अधिकतम अनुकूल और वायुमंडलीय विक्षोभ के लिए न्यूनतम होता है।
उप प्रकार
संपादित करें- डैर्रियस पवन टर्बाइन
- "एगबीटर" टर्बाइन, या डैर्रियस टर्बाइन का नाम इसके फ्रांसीसी आविष्कारक जार्ज डैर्रियस के नाम पर रखा गया।[17] इनमें अच्छी क्षमता होती है, लेकिन बड़े टॉर्क तरंगित होने और टावर पर चक्रीय दबाव पैदा होने के कारण इसकी विश्वसनीयता घट जाती हैं। आमतौर पर इन्हें चालू करने के लिए किसी बाहरी शक्ति के स्रोत या एक अतिरिक्त सैवोनियस रोटर की जरूरत होती है, क्योंकि शुरूआती टॉर्क बहुत नीचे होते है। टॉर्क की तरंग को कम करने के लिए तीन या इससे अधिक ब्लेड लगाये जाते हैं, जो रोटर को मजबूती प्रदान करते हैं। इसकी मजबूती को रोटर क्षेत्र के द्वारा ब्लेड के क्षेत्र से विभाजित करके मापा जाता है। अपेक्षाकृत नए डैर्रियस टर्बाइन मोटे-तार द्वारा खड़े नहीं किए जाते हैं, बल्कि ऊपरी सिरे की बीयरिंग एक बाहरी अधिरचना से जुड़ी होती है।
- गिरोमिल
- तिरछे ब्लेड के उलट, एक डार्रियूस टर्बाइन का एक उप प्रकार एकदम सीध में खड़ा होता है। साइक्लो टर्बाइन में पिच परिवर्तनशील होता है जो टॉर्क स्पंदन को कम करने वाला और अपने आप ही चालू हो जाता है।[18] परिवर्तनशील पिच के लाभ इस प्रकार हैं: शुरू के टॉर्क ऊंचे; अपेक्षाकृत सपाट तिरछे टॉर्क चौड़े; निचले ब्लेड की गति का अनुपात; प्रदर्शन का एक उच्च गुणांक; वायुमंडलीय विक्षोभ में कहीं अधिक कुशल संचालन; और निचले ब्लेड की गति का अनुपात, जो ब्लेड को झुकाने वाले दबाव को कम करता है। सीधा, वी, या तिरछे ब्लेड का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सैवोनियस पवन टर्बाइन
- ये दो (या अधिक) कर्षण-प्रारूप वाले उपकरण होते हैं, जिनका इस्तेमाल वायुवेग मापक में होता है, फ्लेटनर निकासी (आमतौर पर बस और वैन में देखा जाता है) और कुछ अधिक विश्वसनीय कम दक्षतावाले विद्युत टर्बाइन में किया जाता है। अगर इसमें कम से कम स्कूप हों तो वे हमेशा अपने आप चलने लगते हैं। कभी-कभी इनमें टॉर्क को सुगमता देने के लिए लंबे पेचदार स्कूप होते हैं।
टर्बाइन डिजाइन और निर्माण
संपादित करेंपवन ऊर्जा को काम में लाने के लिए जिस स्थान पर यह अवस्थित होता है, पवन टर्बाइनों के डिजाइन उसी आधार पर किए जाते हैं। एयरो-डायमानिक मॉडलिंग का प्रयोग टावर की अधिकतम ऊंचाई, नियंत्रण प्रणाली, ब्लेडों की संख्या और ब्लेड का आकार निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
बिजली के वितरण के लिए पवन टर्बाइन पवन ऊर्जा को परिवर्तित करता है। पारंपरिक क्षैतिज अक्ष वाले टर्बाइनों को तीन घटकों में विभाजित किया जा सकता है।
- रोटर घटक, पवन ऊर्जा को धीमी गति के घूर्णी ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए ब्लेडों समेत जिसकी लागत पवन टर्बाइन का लगभग 20% है।
- जेनरेटर घटक, विद्युत जेनरेटर, नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक्स समेत जिसकी लागत पवन टर्बाइन के लगभग 34% हैं और इसमें बिजली पैदा करने के लिए उपयुक्त, आगत आवर्तन की धीमी गति को तेज गति के आवर्तन में परिवर्तित करने के लिए गियर बॉक्स जैसा घटक होता है।
- संरचनात्मक सहायता घटक, टावर और रोटर विचलन तंत्र समेत जिसकी लागत पवन टर्बाइन के लगभग 15% है।[19]
अपरंपरागत पवन टर्बाइन
संपादित करेंजर्मनी के विंडपार्क होल्ट्रिम में एक ई-66 पवन टर्बाइन में एक अवलोकन डेक है, जो आगंतुकों के लिए खुला रहता है। अवलोकन डेक के साथ इसी प्रकार का एक अन्य टर्बाइन इंग्लैंड के स्वाफ्फहम में स्थित है। वायुवाहित पवन टर्बाइन की जांच बहुत बार की जा चुकी है, लेकिन विशिष्ट ऊर्जा का उत्पादन अभी तक बाकी है। अवधारणा की अगर बात की जाए तो पवन टर्बाइन का इस्तेमाल सूरज द्वारा गर्म हवा के कारण निकली ऊर्जा को खींचने के लिए बहुत ही बड़े अनुलंब सीध में खड़े सौर टॉवर से जोड़ने में किया जा सकता है।
पवन टर्बाइन का उपयोग मैगनस प्रभाव को विकसित करने में किया गया है [1]
लघु पवन टर्बाइन
संपादित करेंछोटे पवन टर्बाइन नाव या कारवां उपयोग के लिए एक पचास वाट जनरेटर जितने छोटे हो सकते हैं। छोटी इकाइयों में अक्सर प्रत्यक्ष ड्राइव जेनरेटर, प्रत्यक्ष विद्युत आउटपुट, एरो-इलास्टिक ब्लेड, आजीवन चलनेवाले बीयरिंग होते हैं और हवा की दिशा में ये एक विंदु फलक का प्रयोग करते हैं।
बड़े, अधिक महंगे टर्बाइन में आमतौर पर गियर पावर ट्रेन, वैकल्पिक विद्युत आउटपुट, फ्लैप होते हैं और सक्रिय रूप से हवा में लगाये जाते हैं। बड़े पवन टर्बाइनों के लिए प्रत्यक्ष ड्राइव जनरेटर और एरो-इलास्टिक ब्लेड को लेकर शोध किए जा रहे हैं।
रिकार्ड बनानेवाले टर्बाइन
संपादित करेंसर्वाधिक क्षमता
संपादित करेंएनरकॉन ई-126 की निर्धारित क्षमता 7.58 मेगावाट है। [20] , कुल मिलाकर इसकी ऊंचाई 198 मीटर (650 फीट), व्यास 126 मीटर (413 फीट) और 2007 में जब इसे लाया गया तब से विश्व की सर्वाधिक क्षमता वाली टर्बाइन है। [21]
कम से कम चार कंपनियां एक 10 मेगावाट टर्बाइन को विकसित करने में काम कर रही हैं:
- अमेरिकन सुपरकंडक्टर[22]
- विंड पावर लिमिटेड 10 मेगावाट वीएडब्ल्यूटी (VAWT) का एक एरोजेनेरेटर एक्स विकसित कर रहे हैं।[23]
- क्लिपर विंडपावर ब्रिटानिया 10 मेगावाट एचएडब्ल्यूटी (HAWT) विकसित कर रहे हैं।[22][23][24]
- स्वे ने 162.5 मीटर (533 फीट) उच्चता और रोटार के 145 मीटर (475 फीट) व्यासवाले प्रस्तावित 10 मेगावाट के प्रोटोटाइप पवन टर्बाइन को विकसित करने की घोषणा की है।[23][24][25]
सबसे बड़ा प्रवाह क्षेत्र
संपादित करेंसबसे बड़े प्रवाह क्षेत्र वाले टर्बाइन को 2009 में स्पेन के ज़रागोज़ा के जॉलिन में गामेसा द्वारा स्थापित किया गया है। जी10एक्स - 4.5 मेगावाट का 128 मीटर के व्यासवाला एक रोटर है। [26]
सबसे ऊंचा
संपादित करेंसबसे ऊंचा पवन टर्बाइन फूहरलैंडर विंड टर्बाइन लासो है। जमीन के ऊपर इसकी धुरी 160 मीटर और इसके रोटर 205 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। यह दुनिया का 200 मीटर से अधिक ऊंचाईवाला अकेला पवन टर्बाइन है।[27]
सबसे बड़ी अनुलंब-धुरी
संपादित करेंकैप में चैप-चैट में ले नोर्डाइस पवन फर्म क्यूबेक में एक लंबवत धुरीवाला पवन टर्बाइन (वीएडब्ल्यूटी (VAWT)) है, जिसका नाम ईओले (Éoleक) दिया गया है, जो दुनिया का सबसे बड़ा110 मीटर वाला टर्बाइन है।[28] नाम पटरी पर इसकी क्षमता 3.8 मेगावाट है।[29]
अधिकांशत: दक्षिणी वायु
संपादित करेंवर्तमान समय में, दिसंबर 2009 से जो तीन टर्बाइन दक्षिण ध्रुव के बहुत ही करीब काम कर रहे हैं वे अंटार्कटिका में एनरकॉन ई-33, न्यूजीलैंड के स्कॉट बेस बिजली देनेवाला और संयुक्त राज्य अमेरिका का मैक्मुर्डो स्टेशन है[30][31], हालांकि 1997 और 19998 में एम्युंडसेन-स्कॉट साउथ पोल स्टेशन में नॉर्देर्न पावर सिस्टम से संचालित एक संशोधित एचआर3 (HR3) टर्बाइन भी है।[32] मार्च 2010 में सीआईटीईडीईएफ (CITEDEF) ने अर्जेटीना मैरम्बायो बेस पर एक पवन टर्बाइन को डिजाइन किया, निर्माण किया और उसे स्थापित किया है।[33]
सर्वाधिक उत्पादकता
संपादित करेंडेनमार्क के रोलैंड पवन फर्म में चार टर्बाइन हैं जो सर्वाधिक उत्पादकता वाले है और अपने रिकॉर्ड आपस में बांटते हैं। जून 2010 तक इनमें से हरेक का उत्पादन 63.2 प्रति घंटा गिगावाट है।[34]
सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित
संपादित करेंदुनिया के सर्वोच्च ऊंचाई पर स्थित पवन टर्बाइन का निर्माण डेविंड द्वारा किया गया और यह समुद्र स्तर से ऊपर अर्जेटीना के चारों ओर4,100 मीटर (13,500 फीट) एंडेज में स्थित है। यह जगह डी8.2-2000 किलोवाट / 50 हर्ट्ज प्रकार के टर्बाइन का उपयोग करता है। इस टरबाइन में वोइथ (Voith) द्वारा बनाया गया एक विशेष टॉर्क परिर्वतक (विनड्राइव) के साथ एक नई अवधारणा ड्राइव ट्रेन और एक तुल्यकालिक जेनरेटर है। डब्ल्यूकेए को दिसंबर 2007 में काम में लगया गया था और तब से यह वेलारेडो बैरिक गोल्ड खान में बिजली की आपूर्ति करता है।[35]
रिकार्ड धारकों की गैलरी
संपादित करें-
एनेर्कोन ई-126, उच्चतम निर्धारित क्षमता
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दुनिया में सबसे लंबा फुह्रलैंडर विंड टर्बाइन लासो है
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कैप चैट, क्युबेक में इओल सबसे बड़ा अक्ष वायु टर्बाइन है
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सैन जुआन प्रांत, अर्जेंटीना में वेलाडेरो खदान पर उच्चतम स्थापित वायु टर्बाइन
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डेनमार्क में रोंलैंड सबसे अधिक टर्बाइनों का उत्पादक है।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- वातानीत वायु टर्बाइन
- अमेरिकी वायु ऊर्जा संघ
- वायुमंडलीय (पाग) आइसिंग
- संतुलन साधने की मशीन
- कॉम्पैक्ट वायु त्वरण टर्बाइन
- डैरियूस वायु टर्बाइन
- बिजली उत्पादन के साथ पर्यावरण प्रयोजन
- वायु ऊर्जा के पर्यावरण संबंधी प्रभाव
- विद्युत उत्पादक
- एओलिएन बोली
- अस्थायी वायु टर्बाइन
- जीई (GE) 1.5 मेगावॉट वायु टर्बाइन
- हरी उर्जा
- उच्च ऊंचाई का वायु शक्ति
- संकर शक्ति के स्रोत
- वायु टर्बाइन निर्माताओं की सूची
- वायु टर्बाइनों की सूची
- मैग्लेव वायु टर्बाइन
- माइक्रोजेनरेशन (Microgeneration)
- राम वायु टर्बाइन
- नवीकरणीय उर्जा
- सैवोनियास वायु टर्बाइन
- थॉमस ओ. पेरी
- टर्बाइन
- पवन-चक्की
- पवन ऊर्जा
- विंडपम्प
- वायु प्रवाह
- वायु टर्बाइन डिजाइन
- वायु टर्बाइन (यूके घरेलू)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Part 1 — Early History Through 1875". मूल से 2 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-07-31.
- ↑ ए.जी. ड्रैच्मन, "हेरोंस विंडमिल", सेंटौरस, 7 (1961), पीपी 145-151
- ↑ डाईट्रीच लोह्र्मन, "वॉन डेर ओस्टलिचेन ज़ुर वेस्टलिचेन विंडमुह्ल", Archiv für Kulturgeschichte, खंड 77, अंक 1 (1995), पीपी 10-30 (10f.)
- ↑ अहमद वाई हसन, डोनाल्ड रूटलेज हिल (1986). इस्लामी प्रौद्योगिकी: एक सचित्र इतिहास, पृष्ठ 54. कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस. ISBN 0-521-42239-6.
- ↑ डोनाल्ड रूटलेज हिल, "मेकैनिकल इंजीनियरिंग इन द मिडिवल नियर ईस्ट", साइंटिफिक अमेरिकन, मई 1991, पृष्ठ 64-69. (cf. डोनाल्ड रूटलेज हिल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग Archived 2007-12-25 at the वेबैक मशीन)
- ↑ [8]
- ↑ "James Blyth". Oxford Dictionary of National Biography. Oxford University Press. मूल से 17 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-10-09.
- ↑ अ आ "क्वर्की ओल्ड-स्टाइल कौन्ट्रेप्शन मेक वॉटर फ्रॉम विंड ऑन द मेसास ऑफ़ वेस्ट टेक्सास". मूल से 3 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
- ↑ एलन व्याट: इलेक्ट्रिक पॉवर: चैलेंजेस एंड चौइसेस . बुक प्रेस लिमिटेड., टोरंटो 1986, ISBN 0-920650-00-7
- ↑ http://www.nrel.gov/gis/wind.html Archived 2010-12-01 at the वेबैक मशीन डाइनामिक मैप्स, जीआईएस डेटा एंड टूल्स
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- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 फ़रवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
आगे पढ़ें
संपादित करें- टोनी बर्टन, डेविड शार्प, निक जेनकींस, एर्विन बोसैन्यी: विंड एनर्जी हैन्डबुक, जॉन विले एंड संस, 1 संस्करण (2001), ISBN 0-471-48997-2
- डैरेल, डॉज, अर्ली हिस्ट्री थ्रो 1875, टेलोनेट (TeloNet) वेब विकास, कॉपीराइट 1996-2001
- डेविड, मैकाले, न्यू वे थिंग्स वर्क, हॉफ्टन मिफिन कंपनी, बोस्टन, कॉपीराइट 1994-1999, पृष्ठ 41-42
- एरिच हाओ विंड टर्बाइन: फंदामेंताल्स, टेक्नोलॉजीज़, एप्लीकेशन, इकोनॉमिक्स बर्खौसर, 2006 ISBN 3-540-24240-6 (गूगल बुक्स पर पूर्वावलोकन)
- डेविड स्पेरा (एड.) विंड टर्बाइन प्रौद्योगिकी: विंड टर्बाइन इंजीनियरिंग में मूलभूत अवधारणाएं, द्वितीय संस्करण (2009), एएसएमई (ASME) प्रेस, ISBN #: 9780791802601
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंWind turbine से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
- हार्वेस्टिंग द विंड (45 लेक्चर्स अबाउट विंड टर्बाइन्स बाई प्रोफ़ेसर मगदी राघेब
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