पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के शहर टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह चतुर् आदि शक्तिपीठ में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं।

माँ पूर्णागिरि मन्दिर
चित्र:Maa purna giri.jpg
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवतादुर्गा
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिटनकपुर

[1]

टनकपुर
City
माँ पुर्णगिरी और भारत नेपाल सीमा के पहाड़
माँ पुर्णगिरी और भारत नेपाल सीमा के पहाड़
टनकपुर is located in उत्तराखंड
टनकपुर
टनकपुर
Location in Uttarakhand, India
टनकपुर is located in भारत
टनकपुर
टनकपुर
टनकपुर (भारत)
निर्देशांक: 29°04′26″N 80°06′32″E / 29.074°N 80.109°E / 29.074; 80.109निर्देशांक: 29°04′26″N 80°06′32″E / 29.074°N 80.109°E / 29.074; 80.109
Country India
Stateउत्तराखंड
DistrictChampawat
शासन
 • प्रणालीMunicipality
 • सभाTanakpur Municipal Council
क्षेत्रफल
 • कुल111.2 किमी2 (42.9 वर्गमील)
ऊँचाई255 मी (837 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल2,00,000
 • घनत्व1,800 किमी2 (4,700 वर्गमील)
Languages
 • OfficialHindi
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
PIN262309
Telephone code05943
वाहन पंजीकरणUK 03
वेबसाइटuk.gov.in

उत्पत्ति कथा

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पूर्णगिरि शक्तिपीठ के देवी पूर्णेश्वरी और भैरव पूर्णनाथ है । इसके बार में कालिकापुराण विस्तारित वोला है [1] । वहां ये लिखा है, ओड्राख्यं प्रथमं पीठं द्वितीयं जालशैलकम् । तृतीयं पूर्णपीठं तु कामरूपं चतुर्थकम् ।।

दक्षिणे पूर्णशैलं तु तथा पूर्णेश्वरी शिवाम् । 

पूर्णनाथं महानाथं सरोजामथ चण्डिकाम् ।।

अर्थ :- ओडपीठ, प्रथम, जालशैल (जालन्धरपीठ) द्वितीय, पूर्णगिरिपीठ तृतीय तथा कामरूपपीठ चतुर्थ देवी का पीठ है । कामाख्या यन्त्र के दक्षिण में पूर्णशैल पर देवी पूर्णेश्वरी और महादेव पूर्णनाथ, सरोजा (लक्ष्मी), चण्डिका, शान्तस्वभाववाली दमनी देवी का साधक वहीं पूजन करे । वाराही तन्त्र में भी उसकी पूजा यन्त्र मिलता है।

किंवदन्ती है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री पार्वती (सती) ने अपने पति महादेव के अपमान के विरोध में दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ कुण्ड में स्वयं कूदकर प्राण आहूति दे दी थी। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से महादेव के क्रोध को शान्त करने के लिए सती पार्वती के शरीर के बहुत टुकडे कर दिये। उनमें से चार टुकड़े फेसले गिरा । वहॉ एक शक्ति पीठ स्थापित हुआ। इसी क्रम में पूर्णागिरि शक्ति पीठ स्थल पर सती पार्वती की नाभि गिरी थी।

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यह स्थान चम्पावत से ९५ कि॰मी॰की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र २५ कि॰मी॰की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की ५१ शक्तिपीठों में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए। जहॉ-जहॉ पर सती के अंग गिरे वहॉ पर शान्ति पीठ स्थापित हो गये।कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली , हिमाचल के नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, हिमाचल के ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, हिमाचल में ही चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,हिमाचल के नयना देवी मेंं नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहॉ पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।

यह स्थान टनकपुर से मात्र १७ कि॰मी॰ की दूरी पर है। अन्तिम १७ कि॰मी॰ का रास्ता श्रद्धालु अपूर्व आस्था के साथ पार करते हैं। नेपाल इसके बगल में है। समुद्र तल से ३००० मीटर की ऊचाई पर स्थित है। पूर्णागिरी मन्दिर टनकपुर से २० कि॰ मी॰, पिथौरागढ से १७१ कि॰मी॰ और चम्पावत से ९२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। पूर्णागिरी मे वर्ष भर तीर्थयात्रियो का भारत के सभी प्रान्तो से आना लगा रहता है। विशेषकर नवरात्रि (मार्च-अप्रैल) के महीने में भक्त अधिक संख्या में आते हैं। भक्त यहाँ पर दर्शनों के लिये भक्तिभाव के साथ पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं। पूर्णागिरी पुण्यगिरी के नाम से भी जाना जाता है। यहा से काली नदी निकल कर समतल की ओर जाती है वहा पर इस नदी को शारदा के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थस्थान पर पहुचने के लिये टनकपुर से ठूलीगाड तक आप वाहन से जा सकते हैं। ठूलीगाड से टुन्यास तक सडक का निर्माण कार्य प्रगति पर होने के कारण पैदल ही बाकी का रास्ता तय करना होता है। ठूलीगाड से बांस की चढाई पार करने के बाद हनुमान चट्टी आता है। यहां से पुण्य पर्वत का दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा दिखने लगता है। यहां से अस्थाई बनाई गयी दुकानें और घर शुरू हो जाते हैं जो कि टुन्यास तक मिलते हैं। यहा के सबसे ऊपरी हिस्से (पूर्णागिरी) से काली नदी का फैलाव, टनकपुर शहर और कुछ नेपाली गांव दिखने लगते हैं। यहां का द्रश्य बहुत ही मनोहारी होता है। पुराना ब्रह्मदेव मण्डी टनकपुर से काफी नज़दीक है।

वैसे तो इस पवित्र शक्ति पीठ के दर्शन हेतु श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। परन्तु चैत्र मास की नवरात्रियों से जून तक श्रद्धालुओं की अपार भीड दर्शनार्थ आती है। चैत्र मास की नवरात्रियों से दो माह तक यहॉ पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं। इस शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में २५ लाख से अधिक होती है। इस मेले हेतु प्रतिवर्ष राज्य शासन द्वारा अनुदान की धनराशि जिलाधिकारी चम्पावत के माध्यम से जिला पंचायत चम्पावत जोकि मेले का आयोजन करते हैं को उपलब्ध कराई जाती है।

बाबा सिद्धनाथ धाम से जुड़ी अहम कड़ी

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मां पूर्णागिरि धाम के साथ बाबा सिद्धनाथ का महत्व भी जुड़ा है। कहा जाता है कि बाबा सिद्धनाथ देवी पूर्णागिरि के भक्त थे जो रोजाना देवी के दर्शन के लिए दरबार में हाजिरी लगाते थे। कहा जाता है कि एक दिन देवी पूर्णागिरि अपने कक्ष में श्रृंगार कर रही थीं कि इस बीच अचानक बाबा सिद्धनाथ देवी के शयन कक्ष में प्रवेश कर गए जिससे क्रोधित होकर देवी ने बाबा के शरीर के टुकड़े कर दिए।

जब देवी को पता चला कि शयन कक्ष में प्रवेश करना वाला कोई और नहीं उनके अनन्य भक्त बाबा सिद्धनाथ थे तो देवी को पछतावा हुआ। तब देवी ने बाबा को वरदान दिया कि मेरे दर्शन के बाद बाबा सिद्धनाथ के दर्शन करने से ही श्रद्धालुओं की यात्रा और मनोकामनाएं पूरी होंगी।

बताया जाता है कि बाबा सिद्धनाथ के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां अलग-अलग रूप में उनके मंदिर स्थापित हुए। पूर्णागिरि धाम के ठीक सामने नेपाल में भी बाबा के शरीर का एक टुकड़ा गिरा था जहां बाद में बाबा का मंदिर स्थापित हुआ।[2]

यहाँ आने के लिये आप सड्क या रेल के द्वारा पहुच सकते है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर है। जो यहाँ से २० कि॰ मी॰ है। सड़क से यहाँ आने के लिये मोटर मार्ग ठूलीगाड तक है जोकि टनकपुर से १४ कि॰ मी॰ है। उसके बाद टुन्यास तक सडक का निर्माण कार्य चल रहा है जिसकी दूरी ५ कि॰मी॰ है। तत्पश्चात ३ कि॰मी॰ का रास्ता पैदल ही पूरा करना होता है। वायु मार्ग से आने के लिए यहाँ का निकटतम हवाई अड़डा पन्तनगर है जो कि खटीमा नानकमत्त्था के रास्ते १२१ कि॰ मी॰ की दूरी पर है।

उपलब्ध सुविधाएँ- यहाँ अस्पताल, डाक घर, टेलीफोन, दवा की दूकाने आदि सामान्य सुविधा की वस्तुएँ यहाँ उपलब्ध हैं। निकटतम पेट्रोल/डीज़ल पम्प टनकपुर में है एवम बाकी सभी साधारण सुविधाओं के लिए टनकपुर सबसे पास का स्थान है।

यहाँ पर्यटन के लिए सबसे उपयुक्त समय वर्षा ऋतु का है। सर्दी के मौसम में गरम कपड़े ज़रूरी हैं। ग्रीष्म ऋतु मे हल्के ऊनी कपडों की ज़रूरत हो सकती है। यहाँ कुमांउनी, हिन्दी और अंग्रेजी़ भाषा बोली जाती है।

चित्र वीथि

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कडियाँ

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  1. [[2]]
  2. "मां पूर्णागिरी मंदिर |108 सिद्ध पीठों में से एक सिद्ध पीठ - Dev Bhomi". devbhomi.in (अंग्रेज़ी में). 2023-01-14. अभिगमन तिथि 2023-10-03.