प्रभाचन्द्र
भारतीय जैन भिक्षु।
जैन आचार्य प्रभाचन्द्र (११वीं शताब्दी ई.)[1] इनका गृहस्थ नाम चंद्रगुप्त मौर्य जो मौर्य राजवंश के महान शासक थे चंद्रगुप्त ने भद्रबाहु से दिगम्बर साधु दीक्षा प्राप्त की और श्रवणवेलगुला की चंद्रगिरी पहाड़ी से आचार्य प्रभाचंद्र के रूप में समाधि ली और आचार्य प्रभाचंद्र अनेक जैन दार्शनिक ग्रन्थों के प्रणेता हैं।[2]
आचार्य गुरुवर सिद्धहस्त और ग्रंथो का ज्ञान, मुनि प्रभाचंद्र से पाया भद्रबाहु गुरु का ज्ञान से प्रभावकचरित रचा ।
जीवनी
संपादित करेंप्रभाचन्द्र के अनुसार, अजमेर-विजय के पश्चात कुमारपाल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अजितनाथ का अराधक बन गया।
कृतियाँ
संपादित करें- प्रमेयकमलमार्तण्ड : माणिक्यनन्दी की कृति परीक्षामुख की टीका[3][2]
- तत्त्वार्थवृत्ति-पद-विवरण : पूज्यपाद की कृति सर्वार्थसिद्धि की टीका[4]
- शब्दाम्बुज-भास्कर-वृत्ति : पूज्यपाद की कृति जैनेन्द्र व्याकरण की टीका[4]
- प्रवचनसार-सरोज-भास्कर : कुन्दकुन्द स्वामी की कृति प्रवचनसार की टीका[4]
- प्रभावकचरित : जैन भिक्षुओं का जीवनचरित
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- आचार्य प्रभाचन्द्र कृत प्रमेयकमलमार्त्ण्डसारः (अनेकान्त कुमार जैन)
सन्दर्भ
संपादित करें- Soni, Jayandra (2013), "Prabhācandra की स्थिति के इतिहास में जैन दर्शन" (पीडीएफ), इंटरनेशनल जर्नल के जैन अध्ययन, 9 (8): 1-13
- Dundas, पॉल (2002) [1992], जैन (एड.), रूटलेज, ISBN 0-415-26605-X
- दीक्षित, केके (2013) [1971], जैन आंटलजी, अहमदाबाद: L. D. विद्या संस्थान