|
चयनित लेख
|
---|
नीतिशास्त्र (अंग्रेज़ी: ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। नीतिशास्र मानव को सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं।
नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं: अधिनीतिशास्त्र, जिसका संबंध नैतिक प्रस्थापनाओं के सैद्धांतिक अर्थ और संदर्भ से हैं, और कैसे उनके सत्य मूल्य (यदि कोई हो तो) निर्धारित किये जा सकता हैं; मानदण्डक नीतिशास्त्र, जिसका संबंध किसी नैतिक कार्यपथ के निर्धारण के व्यवहारिक तरीकों से हैं; अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र, जिसका संबंध इस बात से हैं कि किसी विशिष्ट स्थिति या क्रिया के किसी अनुक्षेत्र में किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए (या उसे क्या करने की अनुमति हैं)। इसमे वकीलो ओर अपने पक्षकार को जो भी सलाह दी जाती है उसी के हिसाब से पक्षकार काम करने को बाधित होता है। अधिक पढ़ें…
|
चयनित जीवनी
|
---|
जिद्दू कृष्णमूर्ति (१२ मई १८९५ - १७ फरवरे, १९८६) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों के लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति, मस्तिष्क की प्रकृति, ध्यान, मानवी सम्बन्ध, समाज में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लायें आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वे सदा इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक मानव को मानसिक क्रान्ति की जरूरत है और उनका मत था कि इस तरह की क्रान्ति किन्हीं वाह्य कारक से सम्भव नहीं है चाहे वह धार्मिक, राजनैतिक या सामाजिक कुछ भी हो।
जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 में आन्ध्र प्रदेश के चिन्तूर जिले के मदन पल्ली नामक स्थान पर हुआ था। बालक कृष्णमूर्ति की गहरी आध्यात्मिकता को देखकर उस समय के प्रमुख थियोसोफिस्ट,सी डब्लू लीड बीटर और श्रीमती एनी बेसेन्ट ने यह स्वीकार किया कि बालक का भविष्य एक महान् आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है। जनवरी 1911 में उडचार में जे. कृष्णामूति की अध्यक्षता में "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" की स्थापना हुई। 1920 में वे पेरिस गये और उन्होंने फ्रेन्च भाषा में कुशलता प्राप्त की 3 अगस्त 1929 को श्रीमती एनी बेसेन्ट और 3000 से अधिक स्टार सदस्यों की उपस्थिति में उन्होंने 18 वषों पूर्व संगठन "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" को भंग कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्व के अनन्तर वे ओहाई (केलिफोर्निया) में रहे। कृष्णमूर्ति पर प्रकृति का बहुत गहरा प्रभाव था। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौन्दर्य को जाने और उसे नष्ट न करे। वे कहते थे कि शिक्षा केवल पुस्तकों से सीखना और तथ्यों को कंठस्थ करना मात्र नहीं है। उनके अनुसार शिक्षा का अर्थ है कि हम इस योग्य बने कि पक्षियों के कलरव को सुन सकें, आकाश को देख सकें, वृक्षों तथा पहाडियों के अनुपम सौंदर्य का अवलोकन कर सकें। अधिक पढ़ें…
|
चयनित साहित्य
|
---|
राष्ट्रों का धन, जिसका अंग्रेज़ी शीर्षक द वेल्थ ऑफ नेशन्स (The Wealth of Nations) और पूर्ण शीर्षक राष्ट्रों का धन की प्रकृति और कारणों की जाँच है, सन् 1776 में प्रकाशित एक पुस्तक है जो इस बात का गहराई से अध्ययन करती है कि किसी राष्ट्र में सम्पन्नता और समृद्धि किस तरह से आती है। यह विश्वभर में इस प्रकार की पहली पुस्तकों में से एक थी और इसे अर्थशास्त्र की एक बुनियादी कृति माना जाता है। यह औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की अर्थव्यवस्था से आरम्भ होती है और श्रम के विभाजन, उत्पादकता और मुक्त बाज़ारों जैसे विस्तृत विषयों को छूती है।
लेखक: एडम स्मिथ, अर्थशास्त्री और आर्थ दार्शनिक
|
|
|
|
क्या आप जानते हैं?
|
---|

- ... कि सत्य के मानदंड मानक और नियम हैं जिनका उपयोग बयानों और दावों की सटीकता का न्याय करने के लिए किया जाता है?
- ... कि एक समर्पण पतन एक ऐसा तर्क है जिसमें सच्चा परिसर है, लेकिन फिर भी एक गलत निष्कर्ष हो सकता है?
- ... की प्राचीन चीनी दार्शनिक और रणनीतिज्ञ आचार्य सून त्ज़ू ने सून त्ज़ू बींग्फ़ा (आचार्य सून की युद्ध नीति) लिखी थी, जो युद्धशास्त्र, युद्धनीति, युद्ध दर्शन और रणनीति की प्राचीनतम ग्रंथों में से है?
- ... कि "दीक्षा और दर्शनशास्त्र की बातें" (डक्ट्स एंड सेइंग्स ऑफ़ फ़ॉलोज़ोफेर्स) इंग्लैंड में पहली बार छपी पुस्तक है?
- ... कि एक सफल प्रायोगिक प्रणाली को स्थिर होना चाहिए और वैज्ञानिकों को सिस्टम के व्यवहार की समझ बनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिलिपि प्रस्तुत करने योग्य होना चाहिए, लेकिन यह अप्रत्याशित है कि यह उपयोगी परिणाम पैदा कर सकता है?
- ... कि प्राचीन चीनी पाठ हुआंगडी यिनफुजिंग, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में पौराणिक सम्राट हुआंगड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, वह तांग राजवंश (618-907 सीई) से एक जालसाजी हो सकता है?
- ... की जैन दर्शन में अनेकान्तवाद के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी चीज़ को केवल अपने नज़रिये से पूर्णतः नहीं समझ सकता?
चयनित सूक्ति
|
---|
“
|
दर्शनशास्त्र का उपहास उड़ाना भी वकाई एक दर्शन है फ्रांसीसी:स मोकेग़ द ला फ़िलोज़ोफ़ी से वाग़ेमौँ फ़िलोज़ॉफ़ Se moquer de la philosophie c’est vraiment philosophe.
|
”
|
|
|
|
|