प्रवेशद्वार:पादप
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पादप प्रवेशद्वारपादप जगत पौधों का संसार है। इस संसार में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इनके भोजन बनाने की क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इनमें यूकैरियोटिक प्रकार की कोशिका पाइ जाती है। पादप जगत इतना विविध है कि इसमें एक कोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल बरगद के वृक्ष सम्मिलित हैं। जीव जंतुओं या किसी भी जीवित वस्तु के अध्ययन को जीवविज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान की दो मुख्य शाखाएँ हैं : प्राणिविज्ञान, जिसमें जंतुओं का अध्ययन होता है और वनस्पतिविज्ञान या पादपविज्ञान, जिसमें पादपों का अध्ययन होता है। edit
चयनित लेख पीपल (अंग्रेज़ी: सैकरेड फिग, संस्कृत:अश्वत्थ) भारत, नेपाल, श्री लंका, चीन और इंडोनेशिया में पाया जाने वाला बरगद, या गूलर की जाति का एक विशालकाय वृक्ष है जिसे भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है तथा अनेक पर्वों पर इसकी पूजा की जाती है। बरगद और गूलर वृक्ष की भाँति इसके पुष्प भी गुप्त रहते हैं अतः इसे 'गुह्यपुष्पक' भी कहा जाता है। अन्य क्षीरी (दूध वाले) वृक्षों की तरह पीपल भी दीर्घायु होता है। इसके फल बरगद-गूलर की भांति बीजों से भरे तथा आकार में मूँगफली के छोटे दानों जैसे होते हैं। बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकड़ों वर्षो तक खड़ा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हैं। वसंत ऋतु में इस पर धानी रंग की नयी कोंपलें आने लगती है।... विस्तार से पढ़ें...
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चयनित चित्रगाजर के रस में विटामिन ‘ए’,'बी’, ‘सी’, ‘डी’,'ई’, और ‘के’ मिलते हैं। इसके सेवन से रक्त में वृद्धि होती है।
प्रत्याशी -- पुरालेख edit
चयनित जीवनी कार्ल लीनियस या कार्ल वॉन लिने एक स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री, चिकित्सक और जीव विज्ञानी थे, जिन्होने द्विपद नामकरण की नींव रखी थी। इन्हें आधुनिक वर्गिकी का जनक कहते हैं। इनका जन्म दक्षिण स्वीडन के ग्रामीण इलाके स्मालैंड में हुआ था। लीनियस ने उप्साला विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण की थी और १७३० में वहाँ पर वनस्पति विज्ञान के व्याख्याता हो गए। फिर ये स्वीडन आये और उप्साला में प्रोफेसर बन गये। १७४० के दशक मे इन्हें जीवों और पादपों की खोज और वर्गीकरण के लिए कई यात्राओं पर भेजा गया। १७५० और १७६० के दशकों में, उन्होने जीवों और पादपों और खनिजों की खोज व वर्गीकरण का काम जारी रखा और इस संबंध मे कई पुस्तके भी प्रकाशित कीं। अपनी मृत्यु के समय लीनियस यूरोप के सबसे प्रशंसित वैज्ञानिकों मे से एक थे। विस्तार में...
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चयनित पौधाघृत कुमारी या अलो वेरा, जिसे क्वारगंदल, गिलोय या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है। विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप मे मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों मे मिलता है। घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई ६०-१०० सें.मी तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों मे पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे कांटों की एक पंक्ति होती है। ग्रीष्म ऋतु में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।विस्तार में...
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चयनित पुष्प कमल वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और ख़ूबसूरत फूल खिलते हैं। विश्व में कमलों की दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं। इनके अलावा कई जलीय लिलियों को भी कमल कहा जाता है। कमल का पौधा धीमे बहने वाले या रुके हुए पानी में उगता है। ये दलदली पौधा है जिसकी जड़ें कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में ही उग सकती हैं। इसमें और जलीय लिलियों में विशेष अंतर यह कि इसकी पत्तियों पर पानी की एक बूँद भी नहीं रुकती, और इसकी बड़ी पत्तियाँ पानी की सतह से ऊपर उठी रहती हैं। एशियाई कमल का रंग हमेशा गुलाबी होता है। नीले, पीले, सफ़ेद् और लाल "कमल" असल में जल-पद्म होते हैं जिन्हें कमलिनी कहा गया हैं। यह उष्ण कटिबंधी क्षेत्र पौधा है जिसकी पत्तियां और फूल तैरते हैं, इनके तने लंबे होते हैं जिनमें वायु छिद्र होते हैं। विस्तार से पढ़ें...
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