प्राजक्ता

पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प

प्राजक्ता एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे पारिजात, हरिसिंगार, हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है।[1] इसका वानस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह पूरे भारत में पैदा होता है। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है।

Nyctanthes arbor-tristis

वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
(unranked) Eudicots
(unranked) Asterids
गण: Lamiales
कुल: Oleaceae
वंश: Nyctanthes
जाति: N. arbor-tristis
द्विपद-नामकरण
Nyctanthes arbor-tristis
L.

यह 10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है और पूरे भारत में विशेषतः बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित, सफेद और सुन्दर होते हैं। इसके पुष्प सूर्यास्त के एक घण्टे बाद खिलते हैं और सुबह सूर्योदय होने तक मुरझा कर गिर जाते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- शेफालिका। हिन्दी- हरसिंगार।

मराठी- पारिजातक।कोंकणी- पार्दक। गुजराती- हरशणगार। बंगाली- शेफालिका, शिउली।

असमिया- शेवालि।

तेलुगू- पारिजातमु, पगडमल्लै। तमिल- पवलमल्लिकै, मज्जपु।

मलयालम - पारिजातकोय, पविझमल्लि। कन्नड़- पारिजात।

उर्दू- गुलजाफरी। इंग्लिश- नाइट जेस्मिन।

मैथिली- सिंघार, सिंगरहार

उत्पत्ति कथा

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पारिजात का वृक्ष

[हरिवंश]] में पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति क्षीरसागर से बताई गई है। वह स्वर्गीय वृक्ष है। इन्द्र ने उसे शची का क्रीडावृक्ष बताकर शिव से ले लिया था। वह शचीदेवी और इन्द्र को मनोवांछित पदार्थ देता था। हरि ने सत्यभामा के पुण्यकार्य सम्पादन के लिए उसको स्वर्ग से लाने का संकल्प किया था-

मया मुने प्रतिज्ञातं पुण्यार्थं सत्यभामया।
स्वर्गादिहानयिष्यामि पारिजातमिति प्रभो ॥

सत्यभामा इस वृक्ष को पाकर बहुत प्रमुदित हुई और तदर्थ पुण्यव्रत के लिए सामग्री संगृहीत की थी-

ननन्द सत्या कौरव्य देवी प्राप्य मनोरथम् ।
पुण्यकार्थं तु सम्भारान् सम्भर्तुमुपचक्रमे ॥ ( हरिवंश 2, 68, 35 एवं 75, 67 )

शिवधाम में इस वृक्ष को 'संगीताश्रयी द्रुम' भी कहा गया है। उसके आश्रय में सदा उत्सव रहता था । वहाँ गन्धर्वराज चित्ररथ पुत्र सहित प्रसन्नतापूर्वक देवसम्बधी वाद्य बजाते थे । ऊर्णायु, चित्रसेन, हाहा, हूहू, डुम्बर, तुम्बुरु तथा अन्य गन्धर्वगण छह गुणों (वक्रिम, स्निग्ध, मधुर, लास्य, विभक्त तथा अवबद्ध) से युक्त गीतों का गान करते थे । उर्वशी, विप्रचित्ति, हेमा, रम्भा, हेमदन्ता, घृताची और सहजन्या आदि अप्सराएँ भी अपने नृत्य व गीतकला का प्रदर्शन करती थीं :

गन्धर्वाधिपतिः श्रीमांसस्तत्र चित्ररथो नृप ।
सपुत्रो वादयामास देववाद्यानि हृष्टवत् ॥
ऊर्णाश्चित्रसेनश्च हाहा हूहूस्तथैव च ।
डुम्बरस्तुम्बुरुश्चैव जगुरन्ये च षड्गुणान् ॥
उर्वशी विप्रचित्तिश्च हेमा रम्भा च भारत।
हेमदन्ता घृताची च सहजन्या तथैव च ॥ ( तत्रैव 69, 13-15 )

यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है।

रासायनिक संघटन : इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1% होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16% पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1%), मैनिटाल (1.3%), एक राल (1.2%), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।

 
हरसिंगार की टहनी, पत्तियाँ, पुष्प

इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है।

विधि: हरसिंगार के ढाई सौ ग्राम पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी लगभग 700 मिली बचे तब उतारकर ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें। इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज सुबह-शाम एक कप मात्रा में इसे पिएँ।

ऐसी चार बोतलें पीने तक सायटिका रोग जड़ से चला जाता है। किसी-किसी को जल्दी फायदा होता है फिर भी पूरी तरह चार बोतल पी लेना अच्छा होता है। इस प्रयोग में एक बात का खयाल रखें कि वसन्त ऋतु में ये पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः यह प्रयोग वसन्त ऋतु में लाभ नहीं करता।

  1. "हरसिंगार के गुण भी सुंदर". वेबदुनिया. Archived from the original on 13 अगस्त 2009. Retrieved २१ मई २००९. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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