बिन्दुसार

दूसरा मौर्य शासक

बिन्दुसार (राज. 297–273 ई॰पू॰) मौर्य राजवंश के राजा थे, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे। बिन्दुसार को अमित्रघात, सिंहसेन्, मद्रसार तथा अजातशत्रु वरिसार [1] भी कहा गया है। बिन्दुसार महान मौर्य क्षत्रिय सम्राट अशोक के पिता थे।

क्षत्रिय सम्राट बिन्दुसार मौर्य
शाक्यवंशी क्षत्रिय मौर्य राजवंश
Bindusara mauryan empire.png
बिरला मंदिर, दिल्ली में एक शैल-चित्र
सम्राट अशोक मौर्य
शासनावधि298 ईसा पूर्व-272 ईसा पूर्व
राज्याभिषेक298 ईसा पूर्व
पूर्ववर्तीचन्द्रगुप्त मौर्य
उत्तरवर्तीअशोक मौर्य
जन्म340 ईसा पूर्व
निधन273 ईसा पूर्व (लगभग)
जीवनसंगीचारूमित्रा,सुभद्रांगी
संतानसुषीम, अशोक,तिष्य
पूरा नाम
चक्रवर्ती सम्राट बिन्दुसार मौर्य,
पितासम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
मातादुर्धरा
धर्मआजीवक [2]

चन्द्रगुप्त मौर्य एवं दुर्धरा के पुत्र बिन्दुसार ने काफी बड़े राज्य का शासन विरासत में प्राप्त किया। उन्होंने दक्षिण भारत की तरफ़ भी राज्य का विस्तार किया। चाणक्य उनके दरबार में भी प्रधानमन्त्री बनकर रहे।

बिन्दुसार के शासन में तक्षशिला के लोगों ने दो बार विद्रोह किया। पहली बार विद्रोह बिन्दुसार के बड़े पुत्र सुशीम के असफल प्रशासन के कारण हुआ। दूसरे विद्रोह का कारण अज्ञात है पर उसका दमन बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने किया।

बिन्दुसार की मृत्यु 273 ईसा पूर्व (कुछ तथ्य 268 ईसा पूर्व की तरफ़ इशारा करते हैं)। बिन्दुसार को 'एक महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता' कहा जाता है क्योंकि वह प्रसिद्ध व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र एवं महान सम्राट अशोक के पिता थे।

परिचयसंपादित करें

बिंदुसार मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त का उत्तराधिकारी। स्ट्राबो के अनुसार सैंड्रकोट्टस (चंद्रगुप्त) के बाद अमित्रोकोटिज़ उत्तराधिकारी हुआ जिसे एथेनेइयस ने अमित्रोकातिस (संस्कृत अमित्रघात) कहा है।[3] जैन ग्रंथ राजवलिकथे में उसे सिंहसेन कहा गया है। बिंदुसार नाम हमें पुराणों में प्राप्त होता है। चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी के रूप में वही नाम स्वीकार कर लिया गया है। पुराणों के अतिरिक्त परंपरा में प्राप्त नामों से उसके विजयी होने की ध्वनि मिलती है। संभवत: चाणक्य चंद्रगुप्त के बाद भी महामंत्री बने रहें और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने बताया कि उसने पूरे भारत की एकता कायम की। ऐसा मानने पर प्रतीत होता है कि बिंदुसार ने कुछ देश विजय भी किए। इसी आधार पर कुछ विद्वानों के अनुसार बिंदुसार ने दक्षिण पर विजय प्राप्त की। किंतु यह समीचीन नहीं प्रतीत होता। 'दिव्यावदान' के अनुसार तक्षशिला में राज्य के प्रति प्रतिक्रिया हुई। उसे शांत करने के लिए बिंदुसार ने वहाँ अपने लड़के अशोक को कुमारामात्य बनाकर भेजा। जब वह वहाँ पहुंचा, लोगों ने कहा कि हम न बिंदुसार से विरोध करते हैं न राजकुमार से ही, हम केवल दुष्ट मंत्रियों के प्रति विरोध प्रदर्शित करते हैं। बिंदुसार की विजयों को पुष्ट करने अथवा खंडित करने के लिए कुछ भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

इतना अवश्य प्रतीत होता है कि उसने राज्य पर अधिकार बनाए रखने का प्रयास किया। सीरिया के सम्राट् से इसके राजत्व काल में भी मित्रता कायम रही। मेगस्थनीज़ का उत्तराधिकारी डाईमेकस सीरिया के सम्राट् का दूत बनकर बिंदुसार के दरबार में रहता था। प्लिनी के अनुसार मिस्र के सम्राट् टॉलेमी फ़िलाडेल्फ़स (285-247 ई. पू.) ने भी अपना राजदूत भारतीय नरेश के दरबार में भेजा था यद्यपि स्पष्ट नहीं होता कि यह नरेश बिंदुसार ही था। एथेनियस ने सीरिया के सम्राट् अंतिओकस प्रथम सोटर तथा बिंदुसार के पत्रव्यवहार का उल्लेख किया है। राजा अमित्रघात ने अंतिओकस से अपने देश से शराब, तथा सोफिस्ट खरीदकर भेजने के लिए प्रार्थना की थी। उत्तर में कहा गया था कि हम आपके पास शराब भेज सकेंगे किंतु यूनानी विधान के अनुसार सोफिस्ट का विक्रय नहीं होता।

बिंदुसार के कई लड़के थे। अशोक के पाँचवें शिलालेख में मिलता है कि उसके अनेक भाई बहिन थे। सबका नाम नहीं मिलता। 'दिव्यावदान' में केवल सुसीम तथा विगतशोक इन दो का नाम मिलता है। सिंहली परंपरा में उन्हें सुमन तथा तिष्य कहा गया है। कुछ विद्वान्‌ इस प्रकार अशोक के चार भाइयों की कल्पना करते हैं। जैन परंपरा के अनुसार बिंदुसार की माता का नाम दुर्धरा था। बिंदुसार का पुत्र अशोक आगे चलकर महान सम्राट अशोक कहलाया।

सन्दर्भसंपादित करें

  1. Sailendra Nath Sen (1999). Ancient Indian History and Civilization. New Age International. p. 142. ISBN 978-81-224-1198-0.
  2. Mookerji 1966, पृ॰प॰ 40–41.
  3. Strabo (1903), The Geography of Strabo: Literally Translated, With Notes 1, Translated by H. C. Hamilton, Esq. And W. Falconer, M.A., London: George Bell & Sons, p. 109, retrieved 8 April 2013