1899-1900 का भारतीय अकाल पश्चिमी और मध्य भारत पर 1899 में गर्मियों के मानसून की विफलता के साथ शुरू हुआ और अगले वर्ष के दौरान, इसने 476,000 वर्ग मील (1,230,000 कि॰मी2) क्षेत्र और 5.95 करोड़ आबादी को प्रभावित किया । [1] अकाल मध्य प्रांत और बरार, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, अजमेर-मेरवाड़ा के मामूली प्रांत और पंजाब के हिसार जिले में तीव्र था; इसने राजपूताना एजेंसी, सेंट्रल इंडिया एजेंसी, हैदराबाद और काठियावाड़ एजेंसी की रियासतों में भी भारी तबाही मचाई । इसके अलावा, बंगाल प्रेसीडेंसी के छोटे क्षेत्र, मद्रास प्रेसीडेंसी और उत्तर-पश्चिमी प्रांत अकाल से बुरी तरह पीड़ित थे।

ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का नक्शा (1909), विभिन्न प्रांतों और मूल राज्यों को दर्शाता है । मध्य प्रांत और बरार, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, अजमेर-मेरवाड़ा, और पंजाब का हिसार जिला विशेष रूप से 1899-1900 के अकाल से पीड़ित थे।
सरकारी अकाल राहत, ल. 1901, अहमदाबाद

कई क्षेत्रों में जनसंख्या 1896-1897 के अकाल से बमुश्किल उबर पाई थी।[2] पिछले अकाल की तरह, इसमें भी पहले सूखा पड़ा था। [3] भारत के मौसम विभाग ने 1900 की अपनी रिपोर्ट में कहा, "भारत की औसत औसत वर्षा 45 इंच (1,100 मि॰मी॰) रही है। इससे पहले किसी भी अकाल वर्ष में आँकड़ा-दोष (defect) इससे 5 इंच (130 मि॰मी॰) से अधिक कम-ज़्यादा नहीं रहा। लेकिन 1899 में यह दोष 11 इंच से अधिक हो गया। " शेष भारत में भी फसल उत्पादन में भारी कमी आई थी। परिणामस्वरूप, खाद्य कीमतों को स्थिर करने के लिए अंतर-क्षेत्रीय व्यापार पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। [4]

परिणामस्वरूप मृत्यु दर अधिक थी। बॉम्बे प्रेसीडेंसी में 4,62,000 लोग मारे गए, और दक्कन पठार में मरने वालों की संख्या 1,66,000 थी। [5] 1876-77 और 1918-19 के बीच बंबई प्रेसीडेंसी को प्रभावित करने वाले सभी अकालों में से इस अकाल के दौरान मृत्यु दर सबसे अधिक थी - प्रति 1000 लोगों पर 37.9 मौतें। [6] 1908 के इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया के अनुमान के अनुसार, अकेले ब्रिटिश प्रशासित जिलों में, लगभग 10 लाख लोग भुखमरी या बीमारी से मर गए; इसके अलावा, चारे की भारी कमी के परिणामस्वरूप, लाखों मवेशी भी मारे गए। [3] अन्य अनुमान 10 लाख [7] [a] और 45 लाख [8] मौतों के बीच आते हैं। इन अकालो ने भारत की सामाजिक आर्थिक दशा को भी गम्भीर क्षति पहुंचाई। जातिवाद को बढ़ावा मिला। कई शिल्पकार व बुनकर जातियां भूखमरी के कारण अपना शिल्प छोड़ कर पूरी तरह कर्ज में डूब कर बंधूवा मजदूर बन गई। इन में बलाई बुनकर जाति भी एक थी । इसकी सामाजिक स्थिति में भी गिरावट आई। गुजरात व राजस्थान से हजारों की संख्या में लोग मालवा व अन्य स्थानों कि ओर पलायन किए।


उत्तरी बॉम्बे प्रेसीडेंसी का एक नक्शा, जो खैरा, पंचमहल, और बड़ौदा की रियासत (नीचे दाईं ओर) के जिलों को दर्शाता है। जोधपुर की रियासत को सबसे ऊपर दाहिनी ओर दिखाया गया है।
भारत में अकाल से पीड़ित बच्चे और पुरुष।

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  1. "In the later nineteenth century there was a series of disastrous crop failures in India leading not only to starvation but to epidemics. Most were regional, but the death toll could be huge. Thus, to take only some of the worst famines for which the death rate is known, some 800,000 died in the North West Provinces, Punjab, and Rajasthan in 1837–38; perhaps 2 million in the same region in 1860–61; nearly a million in different areas in 1866–67; 4.3 million in widely spread areas in 1876–78, an additional 1.2 million in the North West Provinces and Kashmir in 1877–78; and, worst of all, over 5 million in a famine that affected a large population of India in 1896–97. In 1899–1900 more than a million were thought to have died, conditions being worse because of the shortage of food following the famines only two years earlier. Thereafter the only major loss of life through famine was in 1943 under exceptional wartime conditions.(p. 132)"[7]

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