ब्रिटिश राज के दौरान भारत में पड़ने वाले प्रमुख अकालों की समयसरेखा
यह ब्रिटिश राज के दौरान भारत में पड़ने वाले प्रमुख अकालों की समयसरेखा है। ये सन् 1765 से 1947 तक का कालखन्ड दर्शाती है। इसमें वे सभी अकाल शामिल हैं, जो इस कालखंड में भारतीय उपमहाद्वीप में घटित हुए- मसलन रियासतें (भारतीय शासकों द्वारा प्रशासित क्षेत्र), ब्रिटिश भारत (वे क्षेत्र जिनपर या तो 1765 से 1857 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने, या फिर 1858 से 1947 तक ब्रिटिश राज में ब्रिटिश क्राउन ने राज किया) और मराठा साम्राज्य जैसे ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र भारतीय क्षेत्र।
ब्रिटिश राज के दौरान भारत में प्रमुख अकाल |
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वर्ष 1765 को इसलिए प्रारंभिक वर्ष के रूप में चुना गया है क्योंकि उस वर्ष ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को, बक्सर की लड़ाई में उसकी जीत के बाद, बंगाल क्षेत्र की दीवानी (भूमि राजस्व के अधिकार) प्राप्त हुई थी। हालांकि कंपनी ने 1784 तक बंगाल पर सीधे तौर से राज नहीं किया, जब इसे इसे निज़ामत (क़ानून व्यवस्था पर नियंत्रण) प्राप्त हुई।
18वी सदी के अंत तक भारत का काफ़ी बड़ा हिस्सा ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रत्यक्ष शासन या अप्रत्यक्ष प्रभाव के अधीन आ चुका था। जैसे-जैसे भारत में अंग्रेज़ों का प्रभाव बढ़ता गया, अकाल की घटनाएँ भी नाटकीय तौर पर बढ़ने लगीं, "पहले कंपनी राज में और फिर ब्रिटिश राज में"। वास्तव में, भारत पर ब्रिटिश शासन 1770 में बंगाल में अकाल के साथ शुरू हुआ और 1943 में बंगाल में अकाल के साथ ख़त्म हुआ।''[1]
वर्ष 1947 में ब्रिटिश राज को भंग कर दिया गया था और भारत और पाकिस्तान के रूप में दो अधिराज्य (dominion) नए उत्तराधिकारी राज्य बनकर स्थापित हुए।
समयसरेखा
संपादित करेंभारत में 1765 और 1947 के बीच पड़ने वाले अकालों की कालानुक्रमिक सूची[2] | |||||
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वर्ष | अकाल का नाम | ब्रिटिश क्षेत्र | भारतीय राज्य / रियासतें | मृतकों की संख्या | मानचित्र |
1769–70 | बंगाल का भीषण अकाल | बिहार, उत्तरी और मध्य बंगाल | 1 करोड़[3] (तब की बंगाल की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा)[4]
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1783–84 | चालीसा अकाल | दिल्ली, अवध, पूर्वी पंजाब क्षेत्र, राजपूताना, और कश्मीर | 1782-84 के दौरान 1 करोड़ 10 लाख मौतों का अनुमान है। कई बड़े क्षेत्रों की जनसंख्या घट गई थी।[5] | ||
1791–92 | खोपड़ियों वाला अकाल
(दोजी बर/ स्कल फ़ैमिन) |
मद्रास प्रेसीडेंसी | हैदराबाद, दक्षिणी मराठा देश, दक्कन, गुजरात और मारवाड़ | 1 करोड़ 10 लाख लोग मारे गए। मृतकों की संख्या इतनी अधिक थी कि बहुतों के दाह संस्कार तक नहीं किए जा सके। उनकी हड्डियों से जमीन और रास्ते सफेद दिखने लगे। इस लिए इसे अग्रेजी में स्कल फेमाइन (स्कल = खोपडी, फ़ैमिन = अकाल) कहा जाने लगा।[6] | |
1837–38 | १८३७-३८ का आगरा अकाल | उत्तर-पश्चिमी प्रान्त, आगरा प्रान्त, दिल्ली, हिसार | 8 लाख[7] | ||
1860–61 | १८६०-६१ का ऊपरी दोआब का अकाल | आगरा का ऊपरी दोआबा, दिल्ली, हिसार, पंजाब | पूर्वी राजपुताना | 20 लाख[7] | |
1865–67 | १८६५-६७ का उड़ीसा अकाल | उड़ीसा, बिहार, बेल्लारी, गंजम | 10 लाख (केवल ओडिशा में) और
लगभग 40-50 लाख (सभी क्षेत्रों का कुल)।[8] |
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1868–70 | १८६९ का राजपूताना अकाल | अजमेर, पश्चिमी आगरा, पूर्वी पंजाब | राजपूताना | १५ लाख (ज्यादातर राजपूताना रियासत में))[9] | |
1873–74 | १८७३-७४ का बिहार अकाल |
बिहार | इस अकाल में बंगाल सरकार द्वारा किए गए राहत कार्य के कारण मृत्यु दर कम रही।[10] | ||
1876–78 | १८७६-७८ का बड़ा अकाल | मद्रास प्रेसिडेंसी और बॉम्बे प्रेसिडेंसी | मैसूर और हैदराबाद | 55 लाख ब्रिटिश क्षेत्र में मारे गए।[11] रियासतों की मृतक संख्या अज्ञात है, पर कुल अनुमान 61 लाख से 1 करोड़ 3 लाख तक जाता है।[12] | |
1896–97 | १८९६-९७ का भारतीय अकाल | मद्रास प्रेसिडेंसी, बॉम्बे प्रेसिडेंसी, दक्कन, बंगाल, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, मध्य प्रांत और बरार।[13] | उत्तरी और पूर्वी राजपूताना, मध्य भारत और हैदराबाद के कुछ भाग | 50 लाख [14](10 लाख ब्रिटिश क्षेत्र में मारे गए।[15][a]) | |
1899–1900 | १८९९-१९०० का भारतीय अकाल | बॉम्बे प्रेसिडेंसी, मध्य प्रांत और बरार, अजमेर।[13] | हैदराबाद, राजपुताना, मध्य भारत, बड़ौदा, काठियावाड़, कच्छ | 10 से 45 लाख ब्रिटिश क्षेत्र में मारे गए,[18]रियासतों की मृत्यु दर अज्ञात।[b] | |
1943–44 | १९४३ का बंगाल का अकाल | बंगाल | भुखमरी से १५ लाख और कुल महामारी मिलाकर 21 से 35 लाख मौतें।[19] |
गैलरी
संपादित करें-
1800 से 1878 के बीच भारत में अकाल का नक्शा।
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1876-78 के भीषण अकाल के दौरान बेल्लारी जिला, मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश भारत में जानवरों की दुर्दशा (ग्राफिक मैगज़ीन)I
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3 महीने के बच्चे के साथ अकाल पीड़ित माँ की तस्वीर। बच्चों का वजन 3 पाउंड है। फोटोग्राफर: डब्ल्यूडब्ल्यू हूपर (1876-78 का भीषण अकाल)
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१९४३ के बंगाल के अकाल के बाद बंगाल के भविष्य की कल्पना करता एक पोस्टर।
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सरकारी अकाल राहत अहमदाबाद, ल. 1901।
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इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़ का "फ़ैमिन इन इंडिया" (भारत में अकाल) फ्रंट कवर, 21 फरवरी, 1874।
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1876-78 के भीषण अकाल के दौरान पाँच क्षीण बच्चे। फोटोग्राफर: डब्ल्यूडब्ल्यू हूपर।
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बंगाल स्पीक्स (1944) का एक चित्रण- बेघर लोग 1943 के बंगाल के अकाल के दौरान फुटपाथ पर भोजन करते हुए।
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बंगाल में अकाल: गंगा पर अनाज की नावें। इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़, 21 मार्च, 1874।
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ग्राफिक, 27 फरवरी, 1897 ड्राइंग, शीर्षक "भारत में अकाल,", क्षीण ख़रीददार एक व्यापारी की दुकान से अनाज खरीदते हुए- भारत में बाज़ार का एक दृश्य।
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1876-78 के भीषण अकाल में बंगलौर, भारत में क्षीण महिलाओं और बच्चों का एक समूह। फोटोग्राफर: डब्ल्यूडब्ल्यू हूपर।
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बंगाल स्पीक्स (1944) से चित्रण 1943 के बंगाल के अकाल में भुखमरी का घातक परिणाम।
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बेल्लारी, मद्रास प्रैज़िडन्सी, द ग्राफिक, अक्टूबर १८७७ में भीषण अकाल से सम्बंधित राहत-कार्य।
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अक्टूबर 1877 में अकाल के दौरान मद्रास प्रैज़िडन्सी के बेल्लारी ज़िले में दो बच्चे (ग्राफिक से उत्कीर्णन)।
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1874 के बिहार अकाल के अकाल, और 1876-78 के भीषण अकाल से सम्बंधित टोकन।
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अकाल राहत शिविर, मद्रास प्रैज़िडन्सी, 1876-78 में "कुक्स रूम"। फ़ोटोग्राफ़र: डबल्यूडबल्यू हूपर।
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१८७३-७४ के बिहार अकाल के दौरान जरूरतमंदों को बहुत अधिक दान और आपूर्ति देने से चेताती हुई मिस प्रूडेंस (बुद्धि का मानवीय रूप), और मांग की उत्तरार्द्ध (Law of Supply and Demand) की अपनी स्वयं की व्याख्या करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉन बुल (पंच से "मेंडिंग द लेसन" का कार्टून)।
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ब्रिटिश भारत में 1876-78 के भीषण अकाल के शिकार (1877 में चित्रित)। अंततः कुल 670,000 वर्ग किलोमीटर (257,000 वर्ग मील) क्षेत्र में अकाल पड़ा और 5,85,00,000 की कुल आबादी के लिए संकट का कारण बना। इस अकाल से मरने वालों की संख्या 55 लाख के आसपास होने का अनुमान है। [20]
और देखें
संपादित करेंटिप्पणियाँ
संपादित करें- ↑ According to a 1901 estimate published in The Lancet, this and other famines in India between 1891 to 1901 caused 19,000,000 deaths from "starvation or to the diseases arising therefrom",[16] an estimate criticised by the writer and retired Indian Civil Servant Charles McMinn.[17]
- ↑ According to a 1901 estimate published in The Lancet, this and other famines in India between 1891 to 1901 caused 19,000,000 deaths from "starvation or to the diseases arising therefrom",[16] an estimate criticised by the writer and retired Indian Civil Servant Charles McMinn.[17]
संदर्भ
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- ↑ Grove 2007, पृष्ठ 80
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- ↑ अ आ Fieldhouse 1996, पृष्ठ 132
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आगे की पढाई
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