मारुनी नृत्य: मगरी समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर

मारुनी नृत्य नेपाल के मगरी समुदाय का एक अनूठा और सांस्कृतिक धरोहर है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य न केवल नेपाल में बल्कि भारत के दार्जिलिंग, सिक्किम, असम और भूटान में भी मनाए जाते हैं। मारुनी नृत्य का आकर्षण इसके भव्य आभूषणों और रंग-बिरंगे परिधानों में है, जो इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग बनाते हैं। इसे विशेष रूप से दशैं, तिहार, और मंगसिर पूर्णिमा जैसे प्रमुख त्योहारों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है।

मारुनी नृत्य का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, और समय के साथ यह नृत्य सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। यह नृत्य समुदाय की एकता और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है, साथ ही धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को भी सम्मानित करता है। विशेषकर ‘देउसी’ और ‘भैलो’ कार्यक्रमों के दौरान, यह नृत्य 'अच्छाई की बुराई पर विजय' का प्रतीक होता है।

इतिहास और पृष्ठभूमि

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मारुनी नृत्य की उत्पत्ति 14वीं शताब्दी में मगरी राजा बलिहंग राणा मगार के समय मानी जाती है। राजा ने अपनी सेना को उत्साहित करने के लिए इस नृत्य को अपनाया और इसे सैनिकों के बीच एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधि के रूप में प्रस्तुत किया। समय के साथ, यह नृत्य धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों का हिस्सा बन गया, जिसमें शिव और कृष्ण जैसे देवताओं की पूजा की जाती थी।

मारुनी नृत्य का मुख्य उद्देश्य धार्मिक भावना और लोककथाओं को प्रकट करना होता है। इसे विशेषकर दशैं और तिहार जैसे त्योहारों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य में शामिल व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले कदम और आंदोलन, देवताओं और नायक-नायिकाओं की महिमा को दर्शाते हैं। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

मारुनी नृत्य के प्रकार

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मारुनी नृत्य के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो नृत्य की विभिन्न शैलियों और कथाओं को व्यक्त करते हैं:

  1. मारुनी नृत्य: यह पारंपरिक रूप है जिसमें एक महिला नर्तकी और मादल वादक होते हैं। इस नृत्य के दौरान महिला नर्तकी देवताओं की कथाओं का प्रदर्शन करती है, जो सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखते हैं।
  2. थाले मारुनी: इस नृत्य में दो महिलाएं नृत्य करती हैं, और एक मादल वादक के साथ एक 'धतुर्वराय' (हंसी मजाक करने वाला पात्र) भी शामिल होता है। यह नृत्य हास्य और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो दर्शकों को हंसी का अनुभव कराता है।
  3. सोथरी: यह एक बड़ा और अधिक भव्य नृत्य होता है जिसमें 16 महिला नर्तकियां शामिल होती हैं। इसमें एक पुरुष पात्र राजा की भूमिका निभाता है, जो नृत्य को एक रॉयल रूप देता है। इस नृत्य में न केवल कला, बल्कि सत्ता और सम्मान का भी प्रतीक होता है।

वेशभूषा और आभूषण

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मारुनी नृत्य की प्रमुख विशेषताओं में से एक इसकी वेशभूषा और आभूषण हैं। महिला नर्तकियां पारंपरिक ‘पति जामा’, ‘चौबंदी चोलो’ और ‘फुरका’ पहनती हैं, और इनकी आभूषणों में शामिल होते हैं:

  • पोतें (गिलास की मणि वाली माला),
  • तिलहरी (सोने की माला, जिसमें कई मोती होते हैं),
  • कांठा (साबूदानी के गोल आकार के मोती और लाल चपटी पट्टियां),
  • शीर्बंदी (सोने का शीर्बंदी, जो माथे से लटकता है और बालों से जुड़ा होता है),
  • च्याप्टे सुन (सोने की चपटी बालियां),
  • फूली (सोने का नथ)।

इन आभूषणों के अलावा, नृत्य के दौरान नर्तकियां अपने हाथों में जलते दीपक लेकर नृत्य करती हैं, जो ‘अच्छाई की बुराई पर विजय’ के प्रतीक होते हैं।

समय के साथ मारुनी नृत्य

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वर्तमान समय में, मारुनी नृत्य अब केवल मगरी समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नेपाल के विभिन्न जातीय समूहों के साथ-साथ भारत के दार्जिलिंग, सिक्किम, और असम जैसे राज्यों में भी बहुत लोकप्रिय हो गया है। इन क्षेत्रों के गुरुङ, किरात, और खस जातियां इसे तीज, मंगसिर पूर्णिमा, और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार, मारुनी नृत्य ने सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से नेपाल और भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। नृत्य ने समय के साथ विभिन्न समुदायों के बीच एकता का संदेश दिया है, और यह अब एक सामूहिक सांस्कृतिक धरोहर बन चुका है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक उत्सवों और धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।

मारुनी नृत्य ने न केवल विभिन्न जातीय समुदायों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया है, बल्कि यह विभिन्न सामाजिक और धार्मिक समूहों के बीच एकता और साझेदारी का प्रतीक भी बन गया है। अब यह नृत्य नेपाल के साथ-साथ भारत के दार्जिलिंग, सिक्किम, और असम जैसे राज्यों में भी विभिन्न हिस्सों में एक सामूहिक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, और इसे विभिन्न पर्वों और उत्सवों के दौरान देखा जाता है। यह नृत्य अब समय के साथ एक जीवित और प्रासंगिक सांस्कृतिक परंपरा बन चुका है, जो विभिन्न समुदायों के बीच आपसी सम्मान और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

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मारुनी नृत्य केवल एक सांस्कृतिक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह नेपाल और इसके आस-पास के क्षेत्रों में धार्मिक विश्वासों, लोककथाओं और समुदाय की एकता का प्रतीक बन चुका है। यह नृत्य न केवल परंपराओं और संस्कृतियों को जीवित रखता है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने का कार्य भी करता है, जिससे लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व महसूस करते हैं। इस नृत्य के माध्यम से, परंपराओं को संरक्षित किया जाता है और साथ ही यह एक सांस्कृतिक संवाद का भी हिस्सा बनता है।

समय के साथ, मारुनी नृत्य को विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक समूहों द्वारा अपनाया गया है, और अब यह नृत्य नेपाल से लेकर भारत के दार्जिलिंग, सिक्किम और असम तक फैला हुआ है। पहले यह नृत्य केवल मगरी समुदाय तक सीमित था, लेकिन अब यह एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विस्तारित हो चुका है। इस प्रकार, मारुनी नृत्य अपनी पारंपरिक महत्ता को बनाए रखते हुए, नए रूपों में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है। यह नृत्य विभिन्न समाजों को एकजुट करने और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा का एक प्रभावी तरीका बन चुका है।

हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखें और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। यह न केवल हमारे इतिहास का हिस्सा है, बल्कि हमारी पहचान और समाज की एकता को भी दर्शाता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम बच्चों और युवाओं को अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और नृत्य रूपों के महत्व से अवगत कराएं, ताकि वे इसे जीवित रखें और समय के साथ इसे नए रूपों में प्रस्तुत कर सकें। संस्कृति का संरक्षण केवल संरचनाओं और वस्तुओं में नहीं, बल्कि उसे समझने, सिखाने और जीने में है।

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  1. "Maruni — an ethnic dance tale | The Farsight Nepal". Farsight (अंग्रेज़ी में). 2023-05-22. अभिगमन तिथि 2024-12-16.
  2. "Maruni", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2024-10-27, अभिगमन तिथि 2024-12-16