रघुनाथ सिंह

चुआड़ विद्रोह के महानायक
(रघुनाथ सिंह (भूमिज) से अनुप्रेषित)

रघुनाथ सिंह (17 फरवरी 1795 - 23 सितंबर 1833) एक महान क्रांतिकारी और चुआड़ विद्रोह के महानायक थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ वर्तमान झारखंड क्षेत्र में चुआड़ विद्रोह का नेतृत्व किया था।[1][2] चुआड़ विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध पहला विद्रोह था, जो 1769-1833 तक चला।[3]

शहीद रघुनाथ सिंह

परिचयसंपादित करें

रघुनाथ सिंह का जन्म 17 फरवरी 1795 को वर्तमान झारखंड के धालभूम के दामपाड़ा में एक भूमिज आदिवासी सरदार परिवार में हुआ था। बचपन में उन्हें नयन सिंह के नाम से भी पुकारा जाता था। वह घाटशिला में दामपाड़ा के 60 मौजा के सरदार थे।[4]

दामपाड़ा के आदिवासी सरदार परिवार के तीन पीढ़ियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी। रघुनाथ सिंह बचपन से ही अंग्रेजी कंपनी के अत्याचार से परिचित थे और उनसे नफरत करते थे। रघुनाथ सिंह के दादा जगन्नाथ सिंह पातर धालभूम (घाटशिला) परगना राजा जगन्नाथ धल के शासन में दामपाड़ा के जमींदार (सरदार) थे और उन्हें चुआड़ विद्रोह के आरंभकर्ता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने 1769 में धालभूम में चुआड़ विद्रोह का पहला बिगुल फूंका था।[5][6] रघुनाथ सिंह के पिता बैद्यनाथ सिंह भी चुआड़ विद्रोह के वीर नायकों में से एक थे।[7][8]

अहम भूमिकासंपादित करें

जंगल महल (अब झारखंड और पश्चिम बंगाल) में रहने वाले भूमिज जनजाति को मुग़ल और ब्रिटिश काल में 'चुआड़' कहा जाता था, जिसका अर्थ 'असभ्य' और 'लुटेरा' है।[9][10] भूमिज मुख्यत: जंगलों में शिकार और खेती करते थे, जिनमें से बाद में कुछ जमींदार, सरदार -घटवाल और पाइक बन गए और जंगल महल क्षेत्र भूमिज जनजातीय साम्राज्य की स्थापना की।[11]

इलाहाबाद की संधि (1765) में दिल्ली के मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंप दी। 1765 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर के जंगलमहल जिला में सर्वप्रथम मालगुजारी वसूलना शुरू किया गया और स्थानीय जमींदारों के स्थान पर नए जमींदार नियुक्त किए। स्थानीय पाइकों को मिलने वाली पाइकन भूमि भी छीन ली गई। अंग्रेजी सरकार द्वारा षड़यंत्रकारी तरीके से जल, जंगल, जमीन हड़पने की गतिविधियों, मालगुजारी नियमों और स्थानीय स्वशासन व्यवस्था में बदलाव से नाराज़ भूमिज आदिवासियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला विद्रोह का बिगुल फूंका, जिसे चुआड़ विद्रोह के नाम से जाना जाता है।[12] 1769 ई. में सर्वप्रथम रघुनाथ सिंह के दादा जगन्नाथ पातर ने धालभूम परगना में ब्रिटिश कंपनी के विरुद्ध 5000 भूमिजों (चुआड़) के साथ पहला चुआड़ विद्रोह किया।[13][14][15] जिसमें सुबल सिंह, श्याम गुंजम सिंह, लक्ष्मण सिंह, लाल सिंह, त्रिभुवन सिंह आदि भूमिज सरदारों ने भी उनका साथ दिया।[16] 1790 ई. को रघुनाथ सिंह के दादा जगन्नाथ सिंह पातर शहीद हुए। 1798 में एक बार फिर रघुनाथ सिंह के पिता बैद्यनाथ सिंह ने विद्रोह किया, जिसके दमन के लिए ब्रिटिश सेना बुलाई गई और 1810 में बैद्यनाथ सिंह को पकड़ लिया गया।[17] 1814 ई. उनके पिता बैद्यनाथ सिंह भी शहीद हुए। 1798-99 में रायपुर के सरदार दुर्जन सिंह का भी जोरदार विद्रोह हुआ।

1814 में पिता की मृत्यु के पश्चात, रघुनाथ सिंह ने चुआड़ विद्रोह की बागडोर संभाली और धालभूम, मानभूम और आस-पास के क्षेत्रों में भीषण विद्रोह किया। रघुनाथ सिंह के विद्रोह से ब्रिटिश अधिकारी अत्यंत भयभीत थे। रघुनाथ सिंह और उनके साथी तीर-धनुष और तलवार के साथ ब्रिटिश सेना की आधुनिक हथियारों का सामना करते थे।[18] 1816 में चुआड़ विद्रोह कमजोर हुआ, लेकिन छिटपुट रुप में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह चलता रहा।

1831 में गंगा नारायण सिंह ने जंगल महल में भूमिजों का एक संगठित विद्रोह आरंभ किया, जिसमें धालभूम, बड़ाभूम, मानभूम, पंचेत, कुईलापाल, धदका, रायपुर, पातकुम, मिदनापुर, काशीपुर, अंबिकानगर, फुलकुष्मा, आदि क्षेत्रों के भूमिज जमींदार, सरदार-घटवाल, पाइक और किसानों ने समर्थन दिया। जिसमें दामपाड़ा के सरदार रघुनाथ सिंह ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई‌।[19][20] 1831-34 के इस विद्रोह को अंग्रेजों ने 'गंगा नारायण का हंगामा' कहा है, जबकि कई इतिहासकारों ने इसे भूमिज विद्रोह और चुआड़ विद्रोह के नाम से भी लिखा है। रघुनाथ सिंह मरते दम तक ब्रिटिश सेना से लड़ते रहे और 23 सितंबर 1833 को उन्हें फांसी दिया गया और भारत के एक वीर सपूत शहीद हो गए।[21][22]

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1. Sharma, Neelesh (2021-02-17). "रधुनाथ सिंह का 226वाँ जयंती मनाया गया". CHAMAKTA BHARAT (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-03-22.
  2. Mani, Raghubansh (2022-10-10). "चुआड़ विद्रोह के महानायक वीर शहीद रघुनाथ सिंह हैं जिसका इतिहास इतिहासकारों ने विस्तारपूर्वक विभिन्न पुस्तकों में लिखा हैं।". News Dhamaka (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-03-22.
  3. Ray, Nisith Ranjan; Palit, Chittabrata (1986). Agrarian Bengal Under the Raj (अंग्रेज़ी में). Saraswat Library.
  4. "चुआड़ विद्रोह के महानायक रघुनाथ सिंह को लोगों ने किया याद". Hindustan (hindi में). अभिगमन तिथि 2023-03-22.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  5. Journal of Historical Research (अंग्रेज़ी में). Department of History, University of Bihar, Ranchi College. 1959.
  6. Jha, Jagdish Chandra (1967). The Bhumij Revolt, 1832-33: Ganga Narain's Hangama Or Turmoil (अंग्रेज़ी में). Munshiram Manoharlal.
  7. Jha, Jagdish Chandra (1967). The Bhumij Revolt, 1832-33: Ganga Narain's Hangama Or Turmoil (अंग्रेज़ी में). Munshiram Manoharlal.
  8. Society, Bihar Research (1960). The Journal of the Bihar Research Society (अंग्रेज़ी में).
  9. Sengupta, Kaustubh Mani; Das, Tista (2021-08-12). Rethinking the Local in Indian History: Perspectives from Southern Bengal (अंग्रेज़ी में). Taylor & Francis. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-000-42552-9.
  10. Bandyopadhyay, Madhumita (2006). Contesting for Space: A Study of Consequences of Non-tribal Migration Into Tribal Homeland (अंग्रेज़ी में). Rajat Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7880-247-3.
  11. Journal of the Indian Anthropological Society (अंग्रेज़ी में). Indian Anthropological Society. 2002.
  12. Miri, Mrinal (1993). Continuity and Change in Tribal Society (अंग्रेज़ी में). Indian Institute of Advanced Study. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85952-00-0.
  13. Dāsa, Narendranātha (1956). History of Midnapore (अंग्रेज़ी में). G. Das.
  14. Reichel, Eva (2020-08-10). The Ho: Living in a World of Plenty: Of Social Cohesion and Ritual Friendship on the Chota Nagpur Plateau, India (अंग्रेज़ी में). Walter de Gruyter GmbH & Co KG. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-11-066625-0.
  15. Journal of Historical Research (अंग्रेज़ी में). Department of History, Ranchi University. 1959.
  16. Saha, Sheela; Saha, D. N. (2004). The Company Rule in India: Some Regional Aspects (अंग्रेज़ी में). Kalpaz Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7835-251-0.
  17. Devalle, Susana B. C. (1992). Discourses of Ethnicity: Culture and Protest in Jharkhand (अंग्रेज़ी में). Sage Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7036-268-5.
  18. Jha, Jagdish Chandra (1967). The Bhumij Revolt, 1832-33: Ganga Narain's Hangama Or Turmoil (अंग्रेज़ी में). Munshiram Manoharlal.
  19. "Subaltern, forgotten: How mainstream narratives neglected the Bhumij, among the first to revolt against the British". www.downtoearth.org.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-03-22.
  20. Saha, Sheela; Saha, D. N. (2004). The Company Rule in India: Some Regional Aspects (अंग्रेज़ी में). Kalpaz Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7835-251-0.
  21. "रांची : चुआड़ विद्रोह के महानायक शहीद रघुनाथ व गंगा नारायण को सम्मान देगी सरकार". Prabhat Khabar. अभिगमन तिथि 2023-03-22.
  22. News, Rajdhani (2020-09-23). "चुहाड विद्रोह के महानायक वीर शहीद रघुनाथ सिंह मुंडा की चालकबेडा में मूर्ति का अनावरण". Rajdhani News (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-03-22.