रबारी समाज मेला सारणेश्वर महादेव
सन् ई 1298 में वर्तमान राजधानी दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात राज्य के सोलंकी साम्राज्य को समाप्त किया एवं सिद्धपुर स्थित सोलंकी सम्राटों द्वारा निर्मित विशाल रूद्रमाल के शिवालय को ध्वस्त किया। उसके शिवलिंग को निकाल कर खुन से लथपथ गाय के चमडे में लपेटकर, जंजीरो से बान्धकर हाथी के पैर के पीछे घसीटता हुआ दिल्ली की ओर अलाउद्दीन खिलजी अग्रसर हुआ। आबूपर्वत की तलेटी में बसी चन्द्रावती महानगरी पहुंचते ही सिरोही रियासत के महाराव विजय राजजी को इस बात की सूचना मिली और उन्होने एक पत्र अपने भतीज जालोर के महान शुरवीर कान्हडदेव सोनीगरा को भेजा एवं दूसरा पत्र अपने समधी मेवाड के महाराणा रतन सिंहजी को यह लिखते हुए भेजा कि मरने के लिए इससे सुयोग्य अवसर प्राप्त नही हो सकता। कान्हडदेव सोनीगरा अपने पूर्ण सैन्य बल के साथ उपस्थित हुए और महाराणा ने अपनी सेना भेजी। सिरोही, जालोर एवं मेवाड की राजपूत सेनाओं ने मिलकर सुल्तान का पीछा किया एवं सिरणवा पहाड की तलेटी में इनका युद्ध हुआ जिसमें भगवान शंकर की कृपा से राजपूत सेनाएं विजयी हुई और दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी हारा।
अलाउद्दीन खिलजी 10 महीने बाद एक विशाल सेना को तैयार कर अपना बदला लेने की दृष्टि से उसने 1299 ई सन् के भाद्र मास में सिरोही पर आक्रमण किया इस संकल्प से कि वो क्षारणेश्वर के शिवलिंग को तोडकर उसके टुकडे-टुकडे करेगा एवं सिरोही नरेश का सिर काटेगा। उस भीषण युद्ध में रबारी[1] (देवासी) समाज के द्वारा सिरणवा पहाड के हर पत्थर एवं पेड के पीछे खडे होकर गोफन के पत्थरो से मुसलमान सेना पर ऐसा भीषण प्रहार किया कि उसे पराजित होना पडा। रबारियों[2] के निर्णयाक योगदान एवं बलिदान को मद्देनजर रखते हुए सिरोही नरेश महाराव विजयराजजी ने उन्हे सम्मानित करने की दृष्टि से उस दूसरी विजय जो भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी ,अर्थात देवझुलनी एकादशी ,को हुई थी को इस मन्दिर का वार्षिकोत्सव मेला स्थापित किया एवं उस एक दिन के लिए मन्दिर व महल का राज रबारियों को सौंपा गया। यह परम्परा सिरोही नरेश द्वारा आज दिन तक निभाई जा रही है इसीलिए इस मेले [3]में सर्वाधिक उपस्थिति रबारियों की रहती है। इस मेले में रबारी समाज के लोगो द्वारा अपनी परम्परिक वेशभूषा लाल पगड़ी धोती और कुर्ता पहन आना अनिवार्य माना गया है ,अन्यथा मेले में प्रवेश नही दिया जाता है.
- ↑ "सिरोही से दो बार हार कर लौटा अलाउद्दीन, जीत की याद में आज भी भरता है मेला". Bhaskar. 11 Sep 2018. अभिगमन तिथि 11 Sep 2018.
- ↑ "sarneshwar-mahadev-sirohi". magikindia. 13 Jan 2022.
- ↑ "ऐतिहासिक सारणेश्वर मेले में पहुंचे हजारों श्रद्धालु, सड़क पर उमड़ा सैलाब, गूंजते रहे महादेव के जयकारें". Patrika. 22 Sep 2018.