राजस्थान में जौहर और साके
यह सुझाव दिया जाता है कि इस लेख का जौहर में विलय कर दिया जाए। (वार्ता) |
प्राचीन काल में राजस्थान में बहुत बार साके और कई बार जौहर हुए हैं। जौहर पुराने समय में भारत में हिन्दू स्त्रियों द्वारा की [1]जाने वाली क्रिया थी। जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष मृत्युपर्यन्त युद्ध हेतु तैयार होकर वीरगति प्राप्त करने निकल जाते थे तथा स्त्रियाँ [2]जौहर कर लेती थीं अर्थात जौहर कुंड में आग लगाकर खुद भी उस में कूद जाती थी। जौहर कर लेने का कारण युद्ध के बाद अपनी मर्यादा की अपने सतीत्व की रक्षा करना होता था। [3] सिवाना का प्रथम साका 1308 में अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय शीतलदेव की पत्नी ने किया था। दूसरा साका अकबर के आक्रमण के समय 1589 ई. कल्ला रायमलोत ने किया था। कईं छोटे-छोटे राज्यों जैसे पाली (पल्ली) में भी जौहर के किस्से-कहानियाँ सुनने में आए हैं परंतु कोई ठोस गवाह न होने के कारण यह सिर्फ किस्से-कहानी ही बनकर रह गए हैं ।
चित्तौड़गढ़ के साके और जौहर
संपादित करेंचित्तौड़ का प्रथम सका 1303 में हुआ जब दिल्ली के सुल्तान मुल्ला अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर विजय के बाद [4]चित्तौड़ को आक्रांत किया। अलाउद्दीन खिलजी की हवस भरी सोच और राक्षस प्रवृत्ति होने के कारण उसने इस कृत्य को अंजाम दिया जिसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत 1540 मे था रावल रत्न सिंह जी की धर्मपत्नी महारानी मां पद्मिनी को पाने की लालसा इस हमले का कारण बनी। परंतु मां पद्मिनी ने अपने मर्यादा और कुल की रक्षा में यह जोहर किया इसमें कुल 1600 रानियों ने जौहर किया। [5][6]
दूसरा साका; सन १५३४-३५ में हुआ जब गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने एक विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर हमला किया। राजमाता रानी कर्णावती दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी थी। इसी प्रकार तीसरा साका; मुगल बादशाह [7][8][9]अकबर ने १५६७ में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। क्योंकि उदयसिंह द्वितीय ने मालवा के शासक राजबहादुर को शरण दी थी। यह साका जयमल और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है। इसमें फत्ता सिसोदिया की पत्नी फूलकँवर एवम महाबली जयमल मेड़तिया जी की धर्मपत्नी के नेतृत्व में 700 रानियों ने जौहर किया।
जैसलमेर के साके
संपादित करेंजैसलमेर में पहला साका उस समय हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना के साथ [11]आक्रमण कर दुर्ग को घेर [12][13]लिया था। इसमें भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतन सिंह सहित अगणित योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया तथा छत्रानियो ने अग्नि कुंड में जौहर का अनुष्ठान किया।[14][15]
दूसरा साका फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ रावल दूदा त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर किया। [16] तीसरा साका अर्ध साका कहलाता है इसमें वीरों ने केसरिया तो किया (लड़ते हुए वीरगति पाई) लेकिन जौहर नहीं हुआ अतः इसे आधा साका ही माना जाता है यह घटना 1550 ईस्वी की है जब राव लूणकरण वहां का शासक था।उसी समय कंधार का शासक अमीर अली द्वारा आक्रमण कर दिया जाता है जिसके कारण महिलाओ को सूचना मिलती की उनकी विजय होतीं है जिसके कारण वे जौहर नही करती है कुछ पुस्तको में यह मिलता है कि आकमण अचानक होने के कारण वे जौहर नही कर सकी[17]
रणथम्भोर के साके
संपादित करेंरणथंभौर का प्रसिद्ध साका 1301 ईस्वी में हुआ जब वहां के पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापतियों को अपने यहां आश्रय देकर शरणागत वत्सलता के [18]आदर्श और अपनी आन की रक्षा करते हुए विश्वस्त योद्धाओं सहित वीरगति प्राप्त की तथा रानियों का दुर्ग की वीर नारियों ने जौहर का अनुष्ठान किया था।[19][20]
गागरोन के साके
संपादित करेंगागरोन का पहला साका सन 1422 ईस्वी में हुआ जब वहां के अतुल पराक्रमी शासक अचलदास खींची के [21] शासनकाल में मांडू के सुल्तान अलपखां गोरी उर्फ [22] (होशंगशाह) ने आक्रमण किया। फलतः संग्राम हुआ जिसमें अचलदास ने अपने बंधु बांधवों और योद्धाओं सहित शत्रु से जूझते हुए वीरगति प्राप्त की तथा उसकी रानी उमादे और लीला मेवाड़ी ने जौहर का नेतृत्व किया और दुर्ग की अन्य ललनाओं के साथ अपने को जौहर की ज्वाला में होम दिया। अचलदास खींची री वचनिका में इसका विस्तार से वर्णन हुआ है।
गागरोन का दूसरा साका 1444 ईस्वी में हुआ जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया था। इस समय यहां पर अचलदास के पुत्र पाल्हनसी का शासन था , दुर्ग का साका हुआ , लालनाओ ने एक बार फिर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित की और अपने आपको अग्नि में सौप दिया l महूमद खिलजी ने गढ़ का नाम मुस्तफाबाद कर दिया l
कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
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