राव चूंडा राठौड़ मारवाड़ के 12वें शासक थे। उनके शासन काल में उनके कूटनीतिक और सैन्य कौशल के माध्यम से मारवाड़ में राठौड़ शासन को मजबूत किया गया।

राव चूंडा
मारवाड़ के राव
मारवाड़ के शासक
शासनावधि1383– 1423
पूर्ववर्तीराव वीरमदेव
उत्तरवर्तीराव कान्हा
निधन1428
जीवनसंगीप्रतिहार राजपूत राजकुमारी
संतानकान्हा
रणमल
पितावीरमदेव

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

चूंडा के पिता वीरमदेव की जोहियों के खिलाफ युद्ध में मृत्यु हो गई, जिसके परिणामस्वरूप उनकी विरासत का राज्य-हरण हो गया। चूंडा को उसके बचपन में आल्हाजी बारहठ नामक एक चारण ने अपने गाँव कलाउ में शरण दी एंव उसको पाला । जब चूंडा वयस्क हो हुआ, आल्हाजी ने उसे घोड़े और हथियारों से लैस किया और उसे उसके चाचा रावल मल्लीनाथ को पहचान बताकर भेंट कराई। [1] [2] उनके चाचा ने उन्हें उनके रखरखाव के लिए सालावरी की एक छोटी चौकी प्रदान की। चूंडा एक कुशल योद्धा और सरदार था और उसने जल्द ही अपने क्षेत्र का विस्तार करना शुरू कर दिया। [3]

प्रतिहारों और तुर्कों के साथ कूटनीति संपादित करें

1395 में मंडोर के प्रतिहारों के प्रधान वीर राव हेमसिंह गहलोत ने चूंडा से संपर्क किया और तुगलक साम्राज्य के खिलाफ गठबंधन का प्रस्ताव रखा। चूंडा सहमत हो गया और एक प्रतिहार राजकुमारी से शादी कर ली गई, और उसे मंडोर के गढ़वाले शहर और दहेज में एक हजार गांव प्राप्त हुए। [3] [4] तुगलक साम्राज्य ने जल्द ही गुजरात के गवर्नर जफर खान के अधीन एक सेना भेजी। राव चूंडा ने राव हेमसिंह गहलोत के नेतृत्व में इस सेना के खिलाफ मंडोर की सफलतापूर्वक रक्षा की, लेकिन तैमूर के आक्रमण ने जफर को राव चूंडा के साथ समझौते की बातचीत शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया। कुछ समय के लिए राव चूंडा ने इस लड़ाई के बाद तुगलक को कर देने के लिए सहमत हुआ, लेकिन बाद में उसने फिर से विद्रोह कर दिया और तुगलक क्षेत्र पर आक्रमण किया। राव चूंडा ने सांभर, डीडवाना, खाटू और अजमेर पर कब्जा कर लिया। उसने अपने भाई जय सिंह पर भी हमला किया और फलोदी पर अपना शशन स्थापित कर लिया। [3] [5]

मौत संपादित करें

राव चूंडा के आक्रामक विस्तार ने आसपास के सरदारों को डरा दिया, जिन्होंने उसके खिलाफ गठबंधन खड़ा किया। इस गठबंधन में पूगल, जांगलू के सांखला के शासक और मुल्तान के खिदर खान शामिल थे। उन्होंने राव चूंडा पर हमला किया और उसे नागौर में घेर लिया, राव चूंडा को इस हमले की आशंका नहीं थी और वह उसकी सेना युद्ध करने में सक्षम नहीं था। स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलने पर, उसने अपने दुश्मनों पर सीधा धावा बोला और इस युद्ध में राव चूंडा की मृत्यु हुई। [3]

संदर्भ संपादित करें

  1. Chandra, Yashaswini (2021-01-22). The Tale of the Horse: A History of India on Horseback (अंग्रेज़ी में). Pan Macmillan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-89109-92-4.
  2. Singh, Sabita (2019-05-27). The Politics of Marriage in India: Gender and Alliance in Rajasthan (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-909828-6.
  3. Hooja, Rima (2006). A History of Rajasthan. Rupa and co. पपृ॰ 379–380. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788129115010. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "CD" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  4. Belli, Melia (2005). Royal Umbrellas of Stone: Memory, Politics, and Public Identity in Rajput funerary arts. Brill. पृ॰ 142. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789004300569.
  5. Chandra, Satish (2006). Medieval India: From Sultanat to the Mughals-Delhi Sultanat (1206-1526). Har Anand. पपृ॰ 222–223. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788124110645.