रासो काव्य हिन्दी के आदिकाल में रचित ग्रन्थ हैं। ये अधिकतर वीर-गाथाओं से सबंधित होती हैं। पृथ्वीराजरासो प्रसिद्ध हिन्दी रासो काव्य है। रास साहित्य चारण परम्परा से संबंधित है तो रासो का संबंध अधिकांशत: वीर काव्य से, जो डिंगल भाषा में लिखा गया ।

रासो शब्द की उत्पत्ति रासो काव्य के अंतर्गत आने वाले दोहे से देखी जाती है:

रासउ असंभू नवरस सरस छंदू चंदू किअ अमिअ सम
शृंगार वीर करुणा बिभछ भय अद्भूत्तह संत सम।

रास और रासो शब्द की व्युत्पति संबंधी विद्वानों में मतभेद है । कुछ मत निम्नलिखित हैं -

रासो साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ संपादित करें

  • इन रचनाओं में कवियों द्वारा अपने आश्रयदाताओं के शौर्य एवं ऐश्वर्य का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।
  • यह साहित्य मुख्यतः चारण कवियों द्वारा रचा गया।
  • इन रचनाओं में ऐतिहासिकता के साथ-साथ कवियों द्वारा अपनी कल्पना का समावेश भी किया गया है।
  • इनमें विविध प्रकार की भाषाओं एवं अनेक प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है।

प्रमुख रासो ग्रन्थ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. आचार्य रामचन्द्र, शुक्ल (2013). हिंदी साहित्य का इतिहास. इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन. पृ॰ 24.