महीने-महीने में स्त्रियों के जो रजःस्राव होता है, उस समय वो स्त्रियाँ '''रजस्वला''' कहलाती हैं।
===रजस्वला परिचर्या===
प्राचीन भारतीय संस्कृति में मासिक स्राव के समय विशेष परिचर्या का पालन किया जाता था, जिसे '''रजस्वला परिचर्या''' कहते हैं। इस परिचर्या के अन्तर्गत रसोई घर मे प्रवेश न करना, अंधेरे कमरे मे रहना, चटाई पर सोना, हल्का खाना खाना, मंदिर मे नहीं जाना, पूजा-पाठ न करना, योग प्राणायाम व्यायाम न करना आदि का पालन करना पड़ता था।
रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं में उपरोक्त नियमों का वर्णन है। [[चरक संहिता]] इसका सार देती हैं और कहती है कि ऋतुस्राव के आरम्भ होते ही स्त्री को तीन दिनों और तीन रातों के लिए [[ब्रह्मचर्य]] का पालन करना चाहिए, धरती पर सोना चाहिए, अनटूटे हुए पात्र से हाथों से भोजन ग्रहण करना चाहिए और अपने शरीर को किसी भी प्रकार से शुद्ध नहीं करना चाहिए I