Rajendervyas
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परीचय
संपादित करेंवैशम्पायन जी राजा जन्मेजय को पाण्डवों के महाराजा युधिष्ठ२ के प्रसंग में कह रहे थे कि महराजा युधिष्ठ२ क्रमशः नन्दा और अपरनन्दा नाम कि नदियों में स्नान करने के बाद होम कुट पर्वत पर गये |
महराज युधिष्ठ२ अप्ने भाई और साथियों के साथ नन्दा और अपरनन्दा नदि में स्नान करने के बाद पवित्र कौशिकी नदि पर गये |
वहां लोमश जी ने कहा, भरत श्रेष्ठ! यह परम पवित्र कौशिकी नदि है | इसके तट पर विशवामित्रजी का रमणीक आश्रम दिखाई दे रहा है | यहि महात्मा कश्यप (विभाण्डक) का आश्रम है, इसे पुष्याश्रम कहते है |
महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋष्य श्रृंग बड़े ही तपस्वी और संयतेन्द्रिय थे | एक बार अनावृष्टि होने पर उन्होंने अपने तप के प्रभाव से वर्षा कर दि थी | वे परम तेजस्वी और समर्थ विभाण्डक कुमार मृगी से उत्पन्न हुए थे |
वे बडे तपोनिष्ठ थे और सर्वदा वन मे ही रहा करते थे |