सदस्य:Singh007n/अमृत संचार: खालसा साजना कि प्रक्रिया
अमृत संचार(अथ्वा खण्डे दी पौहल) सिख धर्म का बपतिस्मा समारोह हैं। यह रीत की शुरुआत् श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा स्थापना की प्रकरिया के दौरान सन 1699 की गई थी। एक सिख जब इस रीत से गुज़रता है, वह खालसा बन जाता है और हर नर का आखिरी नाम सिहं और हर नारी का आखिरी नाम कौर स्थापित हो जात हैं। इस उपक्रम से किसी भि आयु में गुज़्रा जा सक्ता हैं।
इतिहास
संपादित करेंइस उपक्रम कि शुरुआत गुरु गोबिन्द सिंह के समय के दौरान हुई थी जब उन्होने सन 1699 में बैसाखी के दिन आनन्दपुर साहिब,पंजाब की धरती पर खालसा स्थापना का हुक्म जारी किया था। बैसाखी पर आइ हुइ मण्डली को गुरु गोबिन्द सिहं जी ने एक पहाड़ी पर उप्स्थित तंबू (वर्तमान में केसगड साहिब) से संबोधित किया। उन्होनें अपनी तलवार निकाली और मण्डली से पूछा कि क्या कोइ ऐसा व्यक्ति था जो उनके लिए अपना सर त्यागने के लिए तत्पर था। उन्की पहली पुकार का जवाब किसी ने नही दिया और न ही दूसरी का, परंतु तीसरी अवाज़ देने पर भीड में से, दया राम नामक एक आदमी खडा हुआ और और अपना शीश भेंट करने के लिए तैयार हो गया। गुरु गोबिन्द सिंह उन्हे त्ंबु के अंदर ले गए और शीघ्र ही एक खून से टपकती कृपाण के साथ लौटे। इस्के पशचात उन्होनें फिर एक सर की मांग की और तब एक और स्व्यंसेवक खडा हुआ और गुरु गोबिन्द सिंह जी के सगं तंबू में प्रवेश कर गया। गुरू जी फिर एक बार तंबू से खून से गीली कृपाण के साथ बाहर निकले, यह चक्र तीन बार और हुआ, कुछ ही समय बाद पाँचों स्वयंसेवक तंबू से अहानिकर बाहर आ गए। यह पाँच पुरुष तब से पंज प्यारे कें नाम से जाने जाते हैं। उन सब को अमृत पिलाया गया और खालसा बनाया गया।
यह पाँच पुरुष - भाई दया सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई धरम सिंह और भाई साहिब सिंह हैं। तबसे सिख पुरुषो को नाम दिया गया 'सिह्ं' जिसका अर्थ है शेर और सिख स्त्रियों को 'कौर' नाम दिया गया जिसका अर्थ हैं राजकुमारी या रानी। खण्डे दी पौहल न केवल सिख धर्म के प्राथमिक वस्तुओं और वादों सें जुडे मामलों की प्रतीक हैं, परंतु यह अपने आप में सर्वशक्तिमान भगवान के साथ एकजुट करने के लिए एक शुध और पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए एक वादा हैं। खालसा बनने का एकमात्र मकसद है हमारी अंतरात्मा की सफाई और इस तरह हमारी आत्मा का पर्मात्मा से मिलन।
अमृत समारोह के लिए दिशा-निर्देश
संपादित करें- यह उपक्रम किसी शांत और सुविधाजनक स्थान पर आयोजित करना चाहिये।
- इस उपक्रम के दौरान गुरु ग्रन्थ साहिब जी तथा 6 और सिखों कि ज़रूरत होति हैं जिस्मे से एक सिख गुरु ग्रन्थ साहिब जी से पूजा पढने के लिए और बाकी के पाँच सिख इस कार्य कि पूर्ती के लिए आवश्याक होते हैं।
- जो भि व्यक्ति इस उपक्रम से गुज़रे वह स्वयं कि इछा से गुज़रे और उसे सभी नियमों और दायित्वों का पालन करना होगा।
- इस उपक्रम कि सफलता के लिए हर व्यक्ति को इस कार्यक्रम से पहले अपने बाल धोने होंगे और पाँच क - कृपाण, केश(बाल),कंघा(एक छोटी कंघी),कढा और कच्छा(निर्धारित् प्रकार की जांघिया) की ज़रूरत होगी।