NGO Name: KRISHANA SANSTHA  Unique Id of VO / NGO: RJ/2009/0011612  Chief Functionary: Chandan Singh Bhati

 Chairman: R S Danta  Secretary: C S Bhati  Treasurer: Meenakshi

 Promoter Name 1: Ashok Tanwar  Umbrella / Parent Organization: Krishana Sanstha Registration Details  Registred With: Registrar of Societies  Type of NGO: Society

 Registration No: 33/96-97  Date of Registration: 19-07-1996  City of Registration: Barmer  Type of NGO: Society  Copy of Registration Certificate: Picture 001.jpg

Sector / Key Issues  Key Issues: Animal Husbandry, Dairying & Fisheries, Aged / Elderly, Agriculture, Art & Culture, Biotechnology, Children, Civic Issues, Differently Abled, Disaster Management, Dalit Upliftment, Drinking Water, Education & Literacy, Environment & Forests, Food Processing, Health & Family Welfare, HIV / AIDS, Human Rights, Information & Communication Technology, Labour & Employment, Micro Finance (SHGs), Minority Issues, Micro Small & Medium Enterprises, New & Renewable Energy, Nutrition, Panchayati Raj  Operational Area-States: Rajasthan  Operational Area-District: Barmer Details of Achievements:  Major Activities / Achievements: Krishana sanstha working in west Rajasthan Desert area in Envierment Winning Award in Year 2000 2001 2003 2004 by District Administrat n Forest Dept Awarded in 1998 2000 2004 2007 Sanstha Working for Sexworkers Devlopment Contact Details  Address: Krishana Sanstha Nehru Nagar Barmer 344001  City: Barmer  State: Rajasthan  Telephone: 02982-223786  Mobile No: 9413307897  E-mail: krishana9449@yahoo.in

 Fax: 02982-230467

history of kiradu in barmer india संपादित करें

Kiradu Ancient Temples

Distance : 39 km from Barmer

Kiradu Ancient Temples lie at a distance of 39km from Barmer city in Hathma village.You find an inscription here dating back to 1161AD indicating that the place was once called Kiratkoop and had once been the capital of the Panwara dynasty. The Panwaras owed their allegiance to the rulers of Gujarat at the time.


¤ Kiradu Someshvara Temple

The Kiradu temples are a group of five temples and are grouped as ancient temples, an important site from the archaeological point of view. The largest and the most impressive amongst them is the Someshvara Temple. Built in the 11th century, the Someshvara ancient temple is said to be the best example of its kind today. Constructed in honour of Lord Shiva (the Destroyer in the holy trinity of Hindu gods), it has a rather stumpy multi-turreted tower and beautiful sculptures dedicated to the god. The inner sanctum has a resplendent image of the Lord. At its base, is a large reverse-curve lotus, which has a resemblance with the early Chola Temples of south India. This ancient temple also depicts scenes from the Hindu epic Ramayana. Other notable features are sculptures of apsaras (mythical dancing girls from the abode of the Gods) and vyalas (a griffin-like mythical beast generally associated with the Buddha) which were rarely seen after 1050AD in temple architecture. All in all, although Barmer is a bit out of the way you’ll get your money’s worth when you visit Someshvara.

बजट में विधवा पेंशन की जमीनी हकीकत

40 फीसदी भी नहीं पहुंची विधवाओं तक... [[चित्र:चित्र:उदाहरण.jpg

]] हर बजट में विधवा, विकलांग और वृद्घजनों के लिए बजट अनुमोदन के साथ ही सहयोग का दम भरने वाली सरकारें जमीनी स्तर पर किस कदर गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगायाा जा सकता है कि चालू वित्तीय वर्ष में राजस्थान में 9 महीने पूरे होने तक विधवा पेंशन की चालीस फीसदी राशि का लाभ भी लाभान्वितों को नहीं मिल सका है। विधवा पेंशन के मामले में सबसे ज्यादा खराब स्थिति बाड़मेर जिले की है, जहां स्वीकृत की गई राशि का दिसम्बर 09 तक केवल दस फीसदी ही खर्च हुआ है। कई जिले ऐसे भी हैं जहां इस मद के लिए स्वीकृत की गई राशि का केवल पचास फीसदी या इससे कुछ अधिक राशि ही खर्च हो सकी है।

चालू वित्तीय वर्ष के लिए राजस्थान सरकार ने राज्य के सभी जिलों के लिए विधवा पेंशन मद में 15 हजार 600 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की थी। इसमें से गत वर्ष दिसम्बर तक 9489.96 लाख रुपए ही खर्च हुए। खर्च की गई राशि 60 फीसदी के लगभग ही है। चालीस फीसदी राशि का लाभ अभी तक जरूरतमंदों को नहीं मिला है। सरकारी आंकड़ों पर गौर किया जाए तो राजस्थान का बाड़मेर जिला ऐसा है जहां विधवा महिलाओं को सबसे कम पेंशन का लाभ मिला है। इस जिले के लिए 354 लाख रुपए स्वीकृत किए गए जिसमें दिसम्बर 09 तक 33.27 लाख रुपए का लाभ ही विधवाओं को मिला है। राज्य के अन्य जिलों में दिसम्बर माह तक राशि के खर्च होने में उतार-चढ़ाव की स्थिति रही है। अजमेर जिले के लिए 671 लाख रुपए स्वीकृत किए गए जिसमें से 473.58 लाख रुपए, अलवर के लिए स्वीकृत किए गए 585 लाख रुपए में से 339.70 लाख रुपए, बांसवाड़ा के लिए स्वीकृत 375 लाख रुपए में केवल 185.67 लाख रुपए ही खर्च किए गए हैं।

बारां में 327 लाख में 200.25 लाख, भरतपुर में 604 लाख में से 366.41 लाख, भीलवाड़ा में 843 लाख रुपए में से 471.82 लाख, बीकानेर में 238 लाख में से 139.58 लाख रुपए, बंूदी में 271 लाख में से 197.58, चित्तौडग़ढ़ में 541 लाख रुपए में से 285.48 लाख रुपए की राशि विधवा पेंशन के कोटे से खर्च की गई। चूरू जिले में 344 लाख रुपए की एवज में 332.86 लाख रुपए, दौसा में 363 लाख में से 231.31 लाख रुपए, धौलपुर में 351 लाख में से 231.29 लाख रुपए, डूंगरपुर में 384 लाख में से 177.78 लाख रुपए, हनुमानगढ़ में 390 लाख में से 233.71 लाख रुपए, जयपुर में 794 लाख रुपए में से 580.14 लाख रुपए, जैसलमेर में 67 लाख में से 34.38 लाख रुपए, जालौर में 427 लाख में से 197.18 लाख रुपए, झालावाड़ में 402 लाख में से 248.17 लाख रुपए, झुंझुनू में 388 लाख में से 270.51 लाख रुपए, जोधपुर में 669 लाख में से 393.40 लाख रुपए, करौली में 614 लाख में से 414.17 लाख रुपए, कोटा में 527 लाख में से 291.19 लाख रुपए, नागौर में 605 लाख में से 428.71, पाली में 455 लाख में से 357 .84 लाख रुपए, सवाईमाधोपुर में 338 लाख में से 240.70, राजसमंद में 551 लाख में से 313.29 लाख रुपए, सीकर में 457 लाख में से 177.29 लाख रुपए, श्रीगंगानगर में 561 लाख में से 327.75 लाख रुपए, टोंक 399 लाख में से 313.95 लाख रुपए, उदयपुर में 952 लाख में से 535.47 लाख रुपए और प्रतापगढ़ में 269 लाख रुपए में से 169.03 लाख रुपए विधवा पेंशन मद पर खर्च किए गए हैं।

बर्मेर नेव्स त्रच्क् संपादित करें

Without AC Give the coolness, the Sindh Thar style Anute Zoanpa


Barmer, Rajasthan,

vast desert land - located in difficult circumstances at the Barmer district of Rajasthan dreams are no less beautiful paintings. Tharwasioan's tough but colorful lifestyle affects everyone. Dhoroan made between desert - like attract like Zoanpa everyone.

Made by villagers along the Pakistani border region where the desert of Sindh style Anute Zoanpa colorful lifestyle show, the Thar Desert is the tree to heat the retort Zoanpa These indigenous, in the 48-50 degree heat without the cooler air Kanadishne and provide a feeling of coldness. Rajasthani desert area and go in any direction, Zoanpo different - different kinds Zonkiyon hundreds of eyes are relaxed. For many, the riot of the village Zoanpo meet the diversified, some village Zoanpere, Perve, Ghdaal, filters, etc. forms niches in texture, Mandai, Rupokanne and comfort - features beautiful nature will be saved.

Murr Zoanpo village in the wall, vertical, ash or cement is used. Zoanpoan walls of the upper part of the work area available in dendritic Mandai - plants, grass and bushes are appropriate. Chan or Zoanpa beautiful as the inner portion of the roof is used to Sarkandoan. The Mandan are taken care of in the traditional craft and ritual. Zoanpo conventional flooring is featured Lipa dung. Zoanpo Basaoo the farm is at high altitude location or Dhore. Before fixing the air space, water and guarding fields is taken into account. Zoanpa approach of building full of air time are considered. Face to face Moake windows are placed on the walls, which sustained wind comes.

Sindh border area became Zoanpa style are high. Thar region of Sindh Zoanpo Zoanpo like to make them appealing to the inner portion of Gehru Hanto Pndo and the color is. On his dry, and empty niches and places around Mokhoan folk culture tend Maandne Maande. Maandne Bhuarrangee, and bright colors of these occur. Pndo and wrist watch is made of the effect of their riot. These dendritic Maandono folk style - plants, vegetation, sun, Chanu, Bell - Bute; animal - birds, folk instruments, folk deities are adorable illustration. Somewhere - somewhere Pndo colors instead of the white surface of the Gehru Chitaram are sculpted.

The courtyard is decorated Zoanpa little. Mite and smooth plaster of cow dung in the courtyard of the skirting and between Gehru and Pndo - Maand Maandne between tax court is made attractive. Zoanpa Hotleo elegance of a five-star general homes have become. Domestic - foreign tourists, especially Zoanpoan demand. Charrayo Zopoan is also fond of public officials. Each officer's bungalow usually two - three Zoanpa must seem.

नैसर्गिक सुंदरता कृत्रिम प्रसाधनों की मोहताज नहीं


बाडमेर: आधुनिक बनने की होड़ में शायद ही कोई ऐसा चेहरा बचा हो, जो सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग न करता हो। चेहरे को तमाम सौंदर्य प्रसाधनों के जरिए निखार कर आधुनिक बालाएं अल्प समय की सुंदरता पाकर निहाल हो उठती हैं और इसी अल्प समय की सुंदरता के बलबूते सौंदर्य प्रतियोगिताओं के ताज पहन रही हैं। मगर, राजस्‍थान के बाड़मेर जिले की अत्यन्त खूबसूरत ग्रामीण बालाओं की नैसर्गिक सुंदरता के आगे मेकअप के बूते हासिल किया गया उधार का हुस्न फीका लगता हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में नैसर्गिक सौंदर्य यहां की बालाओं की विशेष पहचान है। शादी-ब्याह के अवसरों पर वे ’कॉस्मेटिक’ के बजाय कुदरती चीजों का इस्तेमाल करती हैं। मुल्तानी मिट्टी (स्थानीय भाषा में जिसे मेट कहा जाता हैं) व चूरी भाटे से ही मेकअप किया जाता है। सैंकडो प्रकार के देसी-विदेशी श्रृंगार प्रसाधनों से सजी-धजी शहरी बालाओं का सौंदर्य ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी बालाओं के प्राकृतिक चीजों से किए गए सौंदर्य के आगे फीका लगता है। हस्तनिर्मित एवं फुटपाथ पर गौर बंजारनो से खरीद गए श्रृंगार प्रसाधनों के उपयोग से नुमाया हुई खूबसूरती का कोई साईड इफेक्ट नही है और न ही इसके उतर जाने पर सौंदर्य धुंधला पडता हैं।

बाड़मेर की विश्वप्रसिद्ध मुल्तानी मिट्टी एक बेहतरीन प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन है। मुल्तानी मिट्टी का चूर अन्तरराष्ट्रीय बाजारों की बडी-बडी दुकानों में महंगी कॉस्मेटिक सामग्री के रूप में मिलता है। यह मिट्टी त्वचा को स्वच्छ व गोरी बनाने में चमत्कारी कार्य करती है। मुल्तानी मिट्टी की ‘मेट बाथ’ तेजी से लोकप्रिय हो रही है। बाड़मेर में निर्यात होकर ‘बेन्टोनाईट’ मुल्तानी मिट्टी शहरों में भड़कीले पैकेटों में पैक होकर खुशबूदार टेलकम पाउडर के रूप में बिकती है। मगर, आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बिना चंदन, मोगरे, गुलाब की महक के मनपसंद ‘मेटबाथ’ व चूरी भाटे का प्रयोग कर श्रृंगार करने वाली महिलाएं बिजलियां गिराने का माद्दा रखती हैं।

बाडमेर जिले में लगभग 6 खानें ‘बेन्टोनाईट’ की हैं। मगर, सरकारी नीतियों में आई विसंगतियों के कारण खानों का संचालन जोखिमभरा हो गया है। खान मालिक भरत दवे बताते हैं कि खनिज विभाग द्वारा सीमित गहराई तक ही बेंटोनाईट के खनन की स्‍वीकृति देने के कारण पूरा खनन नहीं हो पाता, बीच में ही खदान बन्द करनी पडती हैं, जिसके कारण खान संचालकों को घाटा उठाना पडता है। देश भर में बेंटोनाईट की जबरदस्त मांग के बावजूद पर्याप्त आपूर्ति नही हो पा रही है।

Without AC Give the coolness, the Sindh Thar style Anute Zoanpa


Barmer, Rajasthan,

vast desert land - located in difficult circumstances at the Barmer district of Rajasthan dreams are no less beautiful paintings. Tharwasioan's tough but colorful lifestyle affects everyone. Dhoroan made between desert - like attract like Zoanpa everyone.

Made by villagers along the Pakistani border region where the desert of Sindh style Anute Zoanpa colorful lifestyle show, the Thar Desert is the tree to heat the retort Zoanpa These indigenous, in the 48-50 degree heat without the cooler air Kanadishne and provide a feeling of coldness. Rajasthani desert area and go in any direction, Zoanpo different - different kinds Zonkiyon hundreds of eyes are relaxed. For many, the riot of the village Zoanpo meet the diversified, some village Zoanpere, Perve, Ghdaal, filters, etc. forms niches in texture, Mandai, Rupokanne and comfort - features beautiful nature will be saved.

Murr Zoanpo village in the wall, vertical, ash or cement is used. Zoanpoan walls of the upper part of the work area available in dendritic Mandai - plants, grass and bushes are appropriate. Chan or Zoanpa beautiful as the inner portion of the roof is used to Sarkandoan. The Mandan are taken care of in the traditional craft and ritual. Zoanpo conventional flooring is featured Lipa dung. Zoanpo Basaoo the farm is at high altitude location or Dhore. Before fixing the air space, water and guarding fields is taken into account. Zoanpa approach of building full of air time are considered. Face to face Moake windows are placed on the walls, which sustained wind comes.

Sindh border area became Zoanpa style are high. Thar region of Sindh Zoanpo Zoanpo like to make them appealing to the inner portion of Gehru Hanto Pndo and the color is. On his dry, and empty niches and places around Mokhoan folk culture tend Maandne Maande. Maandne Bhuarrangee, and bright colors of these occur. Pndo and wrist watch is made of the effect of their riot. These dendritic Maandono folk style - plants, vegetation, sun, Chanu, Bell - Bute; animal - birds, folk instruments, folk deities are adorable illustration. Somewhere - somewhere Pndo colors instead of the white surface of the Gehru Chitaram are sculpted.

The courtyard is decorated Zoanpa little. Mite and smooth plaster of cow dung in the courtyard of the skirting and between Gehru and Pndo - Maand Maandne between tax court is made attractive. Zoanpa Hotleo elegance of a five-star general homes have become. Domestic - foreign tourists, especially Zoanpoan demand. Charrayo Zopoan is also fond of public officials. Each officer's bungalow usually two - three Zoanpa must seem.

सरहदें रोक नहीं सकीं लोक संगीत की सोंधी महक को फैलने से


बाड़मेर: पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी है। पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी, रोहड़ी, गढरा, थारपारकर, उमरकोट, खिंपरो, सांगड आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं। पाक में रह रहे मांगणियार मूलतः राजस्थाोन के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों के हैं, जो भारत-पाक युद्ध (1965 और 1971) में पलायन कर पाक चले गए। लोक गीतों के माध्यम से थार संस्कृति और परम्परा की छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मानजनक स्थिति नहीं थी। पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यहां यजमानी कर अपना पालन-पोषण करते थे। सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं। सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए, तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए। बाड़मेर से गये एक परिवार में सन 1961 में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया। इस कोहिनूर ने, जिसे पाकिस्तान और विदेशों में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं, मांगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और ख्यामति दिलाई। उनके अलावा अनाब खान, शौकत खान, हयात खान, मोहम्मद रफीक, सच्चु खान, सगीर खान ढोली ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी है। इसके अलावा, बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निवासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुनर्जीवित कर काफी नाम कमाया। पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं है। पाक की मशहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश-विदेश में ख्यााति अर्जित कर रहे हैं। पाक में मारवाड़ी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं। इन लोक कलाकारों ने पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया है और मारवाडी लोक गीत-संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया है। इसके अलावा पाक में कृष्णा भील, सुमार भील, मोहन भगत, जरीना, माई नूरी, माई डोली, माई सोहनी, सबीरा सुल्तान, दिलबर खान, फरमान अली, आमिर अली, असलम खान, लॉग खान, सुमार खान, मोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत-संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला, गीत संगीत, संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा है। सिन्ध और थार की लोक संस्कृति, परम्पराओं, गीत-संगीत, कला में महज देश का फर्क है। मांगणियार लोक गायकों ने लोक संगीत के जरिए दोनों देशों की सीमाएं तोड़ दी हैं। पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों ने थार शैली के लोक गीत-संगीत को पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा, अपितु उसे दुनिया भर में नई उंचाइयां दीं। पाकिस्तान में एक वक्त हारमोनियम समाप्त सा हो गया था, ऐसे में फिरोज मांगणियार ने हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया।

दाल बाटी चूरमा संपादित करें

दाल बाटी चूरमा विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज रंगीलो राजस्थान……..जहां कि रेतीली भूमि आज भी वहा के राजपूतो की शोर्यगाथा सुनती है जहा आज भी ढोला मारू के प्यार की कहानियां गूंजती है सावन में मोर नाचते है पपीहे गाते है उनकी पीहू पीहू दिल में हुक सी जगाती है….जहां औरते आज रंग बिरंगे लहंगा चुनरी में सजी वहा की मारवाड की संस्क्रती को दर्शाती है और उतने ही प्यार से मेहमानों का स्वागत करती है आइये आप को राजस्थानी रसोई में ले कर चलते है……………..

दाल बाटी सामग्री बाटी के लिए………. आटा –चार कप बेसन –एक कप घी –एक कप दही –आधा कप अजवाइन –एक छोटा चम्मच नमक –स्वादानुसार विधि आटे में दही,बेसन ,घी ,अजवाइन तथा जरूरत के अनुसार पानी डाल कर नरम गूंध लें नींबू के आकार की गोलियाँ बना लें .ढक कर एक घंटे के लिए रख दें गर्म कोयले पर बारी बारी से सुनहरा होने तक सेक ले फिर गर्म घी में डाल कर रखें

सामग्री दाल के लिए…………. मूंग की छिलके वाली दाल –सौ ग्राम चना दाल –पचास ग्राम अरहर दाल –पचास ग्राम उडद दाल –पचास ग्राम प्याज बारीक़ कटी –एक टमाटर बारीक़ कटा –एक हर धनिया –थोडा सा घी –दो छोटा चम्मच हल्दी –आधा छोटा चम्मच गर्म मसाला –आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च –एक बड़ा चम्मच लहसुन अदरक का पेस्ट –एक छोटा चम्मच हींग –चुटकी भर नीबू –एक विधि सभी दाले एक साथ उबाल कर रख लें .एक पतीली में दो चम्मच घी डाल कर जीरा,तेज पत्ता और चुटकी भर हींग डालें .प्याज तथा अदरक लहसुन का पेस्ट डाल कर भूरा होने तक भून लें टमाटर डाल कर थोड़ी देर पकाएं .फिर सभी मसाले,दाल तथा नमक डाल कर रस गढा होने तक पकाएं दाल को हरे धनिया से सजाएं नीबू निचोड़ दें (खाते समय गर्म बाटी को दाल में डुबो कर खाएं (

"http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE" से लिया गया

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-- ePanditBot  Talk  २०:०१, २ सितंबर २०१० (UTC)

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिला कलक्टर गौरव गोयल को लीडरशिप के अवार्ड से नवाजा संपादित करें

-च्हन्दन सिन्घ्-Chandan bhati ०३:०५, ८ फ़रवरी २०११ (UTC)--Chandan bhati ०३:०५, ८ फ़रवरी २०११ (UTC)[[चित्र:प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिला कलक्टर गौरव गोयल को लीडरशिप के अवार्ड से नवाजा

]]बाड़मेर। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अघिनियम के लागू होने के उपलक्ष में प्रतिवर्ष 2 फरवरी को मनाए जाने वाले नरेगा दिवस पर देश के चुनिन्दा जिलों का चयन विभिन्न श्रेणियों में उत्कृष्ट कार्यो के लिए कर इस दिन पुरस्कृत किया जाता है। गत वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान बाड़मेर जिले का चयन योजना में टीम लीडरशिप की श्रेणी में किया गया है। इस उपलब्घि पर बुधवार को विज्ञान भवन में जिला कलक्टर गौरव गोयल ने महात्मा गांधी नरेगा सम्मेलन-2011 के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी से यह पुरस्कार ग्रहण किया । सम्मेलन में संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री विलासराव देशमुखी ने भाग किया. जिला स्तर पर राष्ट्रीय पुरस्कारों में बाड़मेर का चयन टीम लीडरशिप के लिए हुआ है. बाड़मेर के जिला कलेक्टर गौरव गोयल इस पुरस्कार के लिए चुने गए तथा जिला प्रमुख श्रीमती मदन कौर तथा आईईसीमैनेजर मदनबारूपाल ने भाग किया

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि सरकार की ग्रामीण रोजगार योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत श्रमिकों को महंगाई के अनुसार अधिक मजदूरी दी जाएगी।

मनमोहन सिंह ने इस योजना की पांचवीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, "हमने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में हुई वृद्धि के आधार पर पारिश्रमिक बढ़ाने का निर्णय लिया है।" इस कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

प्रधानमंत्री ने स्मृतियों को ताजा करते हुए कहा कि 2006 में जब यह योजना शुरू हुई थी तो एक श्रमिक की न्यूनतम दैनिक मजदूरी 65 रुपये थी। उन्होंने कहा, "अब न्यूनतम दैनिक मजदूरी 100 रुपये है, जो अपने आप में एक बड़ी वृद्धि है।" संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया ने कहा कि इस योजना में व्याप्त खामियों पर मंथन करने और नई दिशाओं में बढ़ने का समय आ गया है। सोनिया ने कहा, "यह योजना ग्रामीण लोगों के लिए रोजगार पैदा करने में बहुत सफल रही है, खासतौर से कमजोर वर्गो एवं महिलाओं के लिए। लेकिन इस योजना में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की भी शिकायतें हैं।" उन्होंने कहा, "योजना के क्रियान्वयन में व्याप्त कमियों का विश्लेषण करने, नई दिशाओं की योजना बनाने और आगे बढ़ने का यह एक अवसर है।" मनमोहन सिंह ने कहा कि मनरेगा के लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं का है। यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में समर्थ साबित हुई है। सिंह ने कहा कि यह योजना, गरीबी मिटाने के महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने के लिए संप्रग सरकार का एक बड़ा कदम है।


उल्लेखनीय है कि नरेगा में बाड़मेर पेयजल संग्रहण के लिए टांका निर्माण में प्रथम स्थान पर रहा है। बाड़मेर में कुल 44779 टांको का निर्माण किया गया है। जबकि आन्ध्रप्रदेश में चितूर में 34190 तथा झाबूआ मध्य प्रदेश में 25824 टांकों का निर्माण किया गया है।

थार की प्रेम कहानी कोटड़ा के किले से निकली बाघा भारमली प्रेम कहानी संपादित करें

[[चित्र:थार की प्रेम कहानी कोटड़ा के किले से निकली बाघा भारमली प्रेम कहानी]]  बाडमेर प्रेम की कथा अकथ है, अनिवर्चनीय है। फिर भी प्रेम कथा विविध प्रकार से कही जाती है, कही जाती थी और की जाएगी। मरुप्रदो की प्रेम गांथाएं मूमल महेन्द्रा, ढोला मारु तथा बाघा भारमली प्रेम का जीवंत उदाहरण है॥ प्रेम भावत और जीवन नियन्तता है। प्रेम एक व्यवस्थित एवं स्थिर मनोदा है। जब एक व्यक्ति का आकशर्ण दूसरे व्यक्ति पर इतना प्रबल हो कि उसकी प्राप्ति, उसका सानिध्य, उसकी रक्षा और उसकी प्रसन्नता में ही सुख की अनुभूति होने लगे तब उस मनोवृति को प्रेम का नाम दिया जाता है। मानव मन की सबसे सुन्दर दुर्बलता प्रेम है। थार के इस समुन्द्र में कई प्रेम गाथाओं ने जन्म लिया होगा। मगर बाघा भारमली की प्रेम कथा राजस्थान के लोक साहित्यिक के अन्तर्गत अपना विश्ट स्थान रखती है। समाज और परम्पराओं के विपरित बाघा भारमली की प्रेम कथा बाड़मेर के कणकण में समाई है। इस प्रेम कथा को रुठी रानी में अवय विस्तार मिला है। मगर स्थानीय तौर पर यह प्रेम कथा साहित्यकारो द्वारा अपेक्षित हुई है। किन्तु चारण कवियों ने अपने ग्रन्थो में इस प्रेम कथा का उल्लेख अवय किया है। कोटड़ा के किले से जो प्रेम कहानी निकली वह बाघा भारमली के नाम से अमर हुई। मारवाड़ के पिचमी अंचल बाड़मेरजैसलमेर से सम्बन्धित यह प्रणय वृतान्त आज भी यहां की सांस्कृतिक परम्परा एवं लोकमानस में जीवन्त है। उपर्युक्त प्रेमगाथा का नायक बाघजी राठौड़ बाड़मेर जिलान्तर्गत कोटड़ा ग्राम का था। उसका व्यक्तित्व शूरवीरता तथा दानाशीलता से विशेश सम्पन्न था। जैसलमेर के भाटियों के साथ उसके कुल का वैवाहिक संबंध होने के कारण वह उनका समधी (गनायत) था। कथानायिक भारमली जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की दासी थी। 1536 ई में उमा दे का जोधपुर के राव मालदेव (153162ई) से विवाह होने पर भारमली उमा दे के साथ ही जोधपुर आ गई। वह रुपलावण्य तथा भारीरिकसौश्ठव में अप्सरावत अद्वितीय थी। विवाहोपरान्त मधुयामिनी के अवसर पर राव मालदेव को उमा दे रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतीत सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये। इससे राव मालदेव और रानी उमा दे में ॔॔रार॔॔ ठन गई, रानी रावजी से रुठ गई। यह रुठनरार जीवनपर्यन्त रही, जिससे उमा दे ॔॔रुठी रानी॔॔ के नाम से प्रसिद्व हुई। राव मालदेव के भारमली में रत होकर रानी उमा दे के साथ हुए विवासघात से रुश्ट उसके पीहर वालो ने अपनी राजकुमारी का वैवाहिक जीवन निर्द्वन्द्व बनाने हेतु अपने यौद्वा ॔॔गनायत॔॔ बाघजी को भारमली का अपहरण करने के लिए उकसाया। बाघजी भारमली के अनुपम रुपयौवन से माहित हो उसे अपहरण कर कोटड़ा ले आया एवं उसके प्रति स्वंय को हार बैठा। भारमली भी उसके बल पौरुश हार्द्विक अनुसार के प्रति समर्पित हो गई। जिससे दोनो की प्रणयवल्लरी प्रीतिरस से नियप्रति सिंचित होकर प्रफुल्ल और कुसुमितसुरभित होने लगी। इस घटना से क्षुब्ध राव मालदेव द्वारा कविराज आसानन्द को बाघाजी को समझा बुझा कर भारमली को लौटा लाने हेतु भेजा गया। आसानन्द के कोटड़ा पहुॅचने पर बाघ जी तथा भारमली ने उनका इतना आदरसत्कार किया कि वे अपने आगमन का उद्देय भूल अत्यंत होकर वही रहने लगे। उसकी सेवासुश्रूशा एवं हार्दिक विनयभाव से अभिभूत आसाजी का मन लौटने की सोचता ही नही था। उनके भाव विभोर चित्त से प्रेमीयुगल की हृदयकांक्षा कुछ इस प्रकार मुखरित हो उठी जहं तरवर मोरिया, जहं सरवर तहं हंस। जहं बाघो तहं भारमली, जहं दारु तहं मंस॥ तत्पचात आसान्नद बाघजी के पास ही रहे। इस प्रकार बाघभारमली का प्रेम वृतान्त प्रणय प्रवाह से आप्यायित होता रहा। बाघजी के निधन पर कवि ने अपना प्रेम तथा भाौक ऐसे अभिव्यक्त किया ठौड़ ठौड़ पग दौड़, करसां पेट ज कारणै। रातदिवस राठौड़, बिसरसी नही बाघनै॥

विकिसम्मेलन-२०११, भारत संपादित करें

 

नमस्कार Chandan bhati,

प्रथम भारतीय विकि सम्मेलन इस वर्ष मुम्बई में १८ -२० नवम्बर २०११ के मध्य आयोजित हो रहा है।
किसी प्रकार की सूचना एवं सहायता हेतु आप हमारी अधिकारिक वेबसाईट, फेसबुक वृत्तांत और छात्रवृति प्रपत्र देख सकते है। (छात्रवृति आवेदन की अन्तिम तिथि १५ अगस्त २०११ है।)

100 day long WikiOutreach के साथ ही अब समस्त गतिविधियाँ शुरु हो रही है।

सम्मेलन में भाग लेने हेतु आमन्त्रण अब शुरु हो गये है, कृपया अपनी प्रविष्टियों को यहाँ जमा करे।(प्रविष्टियां जमा करने की अन्तिम तिथि ३० अगस्त २०११) है।

क्योंकि आप हमारे Wikimedia India community के भाग है इसलिये हम आपको इस सम्मेलन में भाग लेने एवं अपने अनुभव बाँटने हेतु आमन्त्रित करते है। आपके आपके योगदान हेतु धन्यवाद।

हमें आशा है कि आप १८-२० नबम्बर २०११ के मध्य आयोजित इस सम्मेलन में अवश्य भाग लेंगे।

2021 Wikimedia Foundation Board elections: Eligibility requirements for voters संपादित करें

Greetings,

The eligibility requirements for voters to participate in the 2021 Board of Trustees elections have been published. You can check the requirements on this page.

You can also verify your eligibility using the AccountEligiblity tool.

MediaWiki message delivery (वार्ता) 16:29, 30 जून 2021 (UTC)उत्तर दें

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