सिंदूर (1987 फ़िल्म)

1987 की के॰ रवि शंकर की फ़िल्म

सिन्दूर 1987 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। यह ए॰ कृष्णमूर्ति द्वारा निर्मित और के॰ रवि शंकर द्वारा निर्देशित है। इसमें शशि कपूर, जयाप्रदा, जितेन्द्र, ऋषि कपूर, गोविन्दा, नीलम की प्रमुख भूमिकाएँ हैं और संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा निर्मित किया गया है।[1]

सिंदूर

सिंदूर का पोस्टर
निर्देशक के॰ रवि शंकर
लेखक कादर ख़ान (संवाद)
पटकथा ज्ञानदेव अग्निहोत्री
निर्माता ए॰ कृष्णमूर्ति
अभिनेता शशि कपूर,
गोविन्दा,
नीलम,
जयाप्रदा,
ऋषि कपूर,
जितेन्द्र
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
प्रदर्शन तिथियाँ
14 अगस्त, 1987
देश भारत
भाषा हिन्दी

संक्षेप संपादित करें

विधवा लक्ष्मी (जयाप्रदा), कॉलेज जाने वाली अपनी समर्पित बेटी, ललिता (नीलम) की देखभाल करने वाली माँ है। रवि (गोविन्दा) उसका साथी छात्र है। विजय चौधरी (शशि कपूर) कॉलेज में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर के रूप में शामिल होते हैं। वह छात्रों के साथ अच्छा तालमेल साझा करते हैं। कुछ गलतफहमियों के बाद, ललिता और रवि प्यार में पड़ जाते हैं। कॉलेज के एक समारोह में, ललिता ने "पतझड़ सावन बसंत बहार" गीत गाया, जहाँ वह गीत के बोल भूल जाती है और गीत को प्रोफेसर विजय चौधरी पूरा करते हैं। यह पूछने पर कि वह गाने को कैसे जानते हैं, वह जवाब देते हैं कि यह एक बहुत प्रसिद्ध गीत है और उनकी पत्नी का पसंदीदा था। ललिता उन्हें बताती है कि उसने अपनी माँ से ये गीत सीखा है।

अपने घर पर, वह अपनी पत्नी को याद करता है। विजय और लक्ष्मी विवाहित जोड़े थे। विजय एक प्रोफेसर था, जबकि लक्ष्मी कुमार (ऋषि कपूर) के साथ गायन कार्यक्रमों में गाती थी। वे एक हिट गायन जोड़ी बनते हैं। इससे विजय और लक्ष्मी के बीच गलतफहमी पैदा होती है। विजय लक्ष्मी को घर छोड़ने के लिए कहता है। उसी दिन, विजय को पता चलता है कि कुमार की शादी हो रही है और उसकी गलतफहमी दूर हो जाती है। लेकिन लक्ष्मी का पता नहीं चल पाता है।

फिल्म वर्तमान में वापस आती है। लक्ष्मी को ललिता और रवि के प्यार के बारे में पता चल जाता है और वह एडवोकेट धरमदास (कादर ख़ान), रवि के मामा और अभिभावक से मिलती है। वह उनकी शादी को तय करते हैं, इस शर्त पर कि अंतिम वर्ष की परीक्षा वो अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे। ललिता के घर जाने पर, विजय लक्ष्मी को विधवा वेश में देखता है और पूरी तरह से हैरान होने पर वह कॉलेज से इस्तीफा दे देता है। ललिता, लक्ष्मी को इस बारे में बताती है। लक्ष्मी अपने निवास पर विजय से मिलती है, और उसे अपने नए अवतार के बारे में कहानी बताती है।

अपने घर से जाने के बाद, लक्ष्मी अपनी सहेली सुनीता से मिलने के लिए पुणे आई। रास्ते में, वह एक दुर्घटना से ललिता नाम की एक छोटी लड़की को बचाती है। प्रेम कपूर (जितेन्द्र) इस लड़की का पिता है। यहाँ, वह उसे अपनी दोस्त सुनीता के बारे में बताती है। प्रेम उसे बताता है कि वह सुनीता का पति है और सुनीता की मृत्यु हो चुकी है। वह लक्ष्मी से अनुरोध करता है कि वह अगले दिन ललिता के जन्मदिन उसकी मां की तरह नाटक करे क्योंकि ललिता एक हृदय रोगी है और वह अपनी मां की मृत्यु के बारे में नहीं जानती है। जन्मदिन की रात को, प्रेम का सौतेले भाई, शेरा (शक्ति कपूर) ललिता का अपहरण कर लेता है। वह फिरौती के रूप में प्रेम की सभी जायदाद की माँग करता है। प्रेम, ललिता को बचाते हुए शेरा द्वारा घायल कर दिया जाता है। अपनी अंतिम सांसें लेते हुए, वह लक्ष्मी से अनुरोध करता है कि वह ललिता की देखभाल करे और उसे अपने बच्चे के रूप में पाले। ललिता को किसी भी झटके से बचाने के लिये और ललिता को यह न पता लगे कि वह उसकी मां नहीं है, वह विधवा के वेष को अपना लेती है। कहानी फिर से वर्तमान में लौटती है। विजय दोबारा गलतफहमी के लिए लक्ष्मी से माफी मांगता है।

मुख्य कलाकार संपादित करें

संगीत संपादित करें

सभी गीत आनंद बख्शी द्वारा लिखित; सारा संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित।

क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."झटपट घूँघट खोल"किशोर कुमार, हरिहरन6:00
2."नाम सारे मुझे भूल जाने"मोहम्मद अज़ीज़, लता मंगेशकर6:17
3."पतझड़ सावन बसंत बहार" (I)लता मंगेशकर, मोहम्मद अज़ीज़5:40
4."पतझड़ सावन बसंत बहार" (II)सुरेश वाडकर, लता मंगेशकर5:30
5."चलो चलो चले दूर कहीं"कविता कृष्णमूर्ति, मोहम्मद अज़ीज़5:30
6."पतझड़ सावन बसंत बहार" (महिला)लता मंगेशकर1:02
7."पतझड़ सावन बसंत बहार" (दुखी)मोहम्मद अज़ीज़1:02

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "गानों की दुनिया का अज़ीम सितारा था, मोहम्मद अज़ीज़ प्यारा था..." एनडीटीवी इंडिया. मूल से 9 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फरवरी 2019.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें