सुरेन्द्र गंभीर
डॉ॰ सुरेंद्र गंभीर हिंदी के समाज-भाषा वैज्ञानिक पक्ष के और प्रामाणिक शोध के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने गयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरीशस, फ़िजी और अमरीका के प्रवासी भारतीयों की भाषाओं से संबंधित भाषा-विकास और भाषा-ह्रास के विभिन्न पक्षों पर महत्वपूर्ण काम किया है।
कार्यक्षेत्र
संपादित करेंवे लंबे समय से भारतीय भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन, भाषा की शिक्षा और और भाषा में प्रवीणता जैसे विषयों पर काम करते रहे हैं। इस विषय में उनकी छह पुस्तकें और सौ से भी अधिक शोध पत्र विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और विश्व कोशों में प्रकाशित हो चुके हैं। पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय, कौर्नेल विश्वविद्यालय और विस्कांसिन विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ डॉ॰ गंभीर अमरीकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़ के भाषा-विभाग के दीर्घ काल तक अध्यक्ष रहे हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ॰ गंभीर संप्रति अमरीका में युवा हिंदी संस्था के अध्यक्ष, तथा हैरिटेज लैंग्वेज के हिंदी व उर्दू के प्रतिनिधि हैं।[1]
सम्मान और पुरस्कार
संपादित करेंअमरीका में हिंदी विषयक कार्यों में अपनी भूमिका और भारतीय भाषाओं के अध्ययन तथा शोध में योगदान के लिए डॉ॰ गंभीर को २००७ में 'विश्व हिंदी सम्मेलन' के न्यूयार्क अधिवेशन में, २००८ में अमरीकन इंस्टीट्यूट की ट्रस्टी कौंसिल और २०११ में न्यूजर्सी असेंबली द्वारा भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया जा चुका है। भारतीय साहित्य, दर्शन और धर्म परंपराओं के अध्ययन में भी उनकी गहरी रुचि है। डॉ॰ गंभीर को उनके कृतित्त्व के लिए उन्हें केन्द्रीय हिंदी संस्थान के पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "हैरिटेज लैंग्वेज में हिंदी उर्दू के प्रतिनिधि". मूल से 13 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2012.
- ↑ Khsdilt. "हिंदी सेवी सम्मान पुरस्कार 2008-2009". khsindia.org. नामालूम प्राचल
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