खगोलशास्त्र और भौतिकी में कक्षीय राशियाँ (Orbital elements) वह प्राचल (पैरामीटर) होते हैं जिन्हें निर्धारित करने से किसी खगोलीय पिंड के किसी अन्य पिण्ड की परिक्रमा करने की कक्षा (ऑरबिट) पूरी तरह निर्धारित हो जाती है। किसी भी कक्षा को कई प्राचल के साथ समझा जा सकता है लेकिन कुछ विधियाँ (जिसमें प्रत्येक में छह प्राचल प्रयोग होते हैं) खगोलशास्त्रियों द्वारा आम प्रयोग होती हैं।[1][2]

कक्षीय राशियाँ

केप्लेरियाई राशियाँ

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कक्षाओं का पूर्ण विवरण देने के लिये छह राशियों की आवश्यकता होती है, क्योंकि कक्षीय परिक्रमा करती वस्तुओं की चाल में छह स्वतंत्रता की कोटियाँ (degrees of freedom) होती हैं: त्रिआयामी कार्तीय निर्देशांक प्रणाली में x, y, z अक्षों पर स्थान और गति। खगोलशास्त्र में सबसे प्रचलित छह कक्षीय राशियों की प्रणाली केप्लेरियाई राशियाँ (Keplerian elements) कहलाती हैं क्योंकि केप्लर के ग्रहीय गति के नियम सौर मंडल के ग्रहों की चाल समझने-समझाने में ऐतिहासिक थे।

पहली दो केप्लेरियाई राशियाँ परिक्रमा कक्षा के दीर्घवृत्त (ellipse) आकार का विवरण करती हैं:

  • विकेन्द्रता ( , eccentricity) - यह कक्षा के एक पूर्ण वृत्त से विचलन की माप है। पूर्ण वृत्त की विकेन्द्रता शून्य और परवलय की विकेन्द्रता एक है।
  • अर्ध दीर्घ अक्ष ( , semimajor axis) - यह उपमन्द और अपमन्द की दो दूरियों का औसत है। यानि यह लगभग परिक्रमा-करती वस्तु की केन्द्रीय वस्तु से औसत दूरी समझा जा सकता है और बताता है की कक्षा कितनी बड़ी है।

दूसरी दो राशियाँ उस कक्षीय समतल (orbital plane) के बारे में बताती हैं जिसमें कक्षा बैठी हुई समझी जा सकती है:

तीसरी दो राशियाँ इस प्रकार हैं:

इन्हें भी देखें

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  1. Green, Robin M. (1985). Spherical Astronomy. Cambridge University Press. ISBN 978-0-521-23988-2.
  2. Danby, J. M. A. (1962). Fundamentals of Celestial Mechanics. Willmann-Bell. ISBN 978-0-943396-20-0.