कन्या राशि

बारा राशियोमे से एक राशी

यह राशि चक्र की छठी राशि है।दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फ़ूल की डाली लिये कन्या है। इसका विस्तार राशि चक्र के १५० अंशों से १८० अंश तक है। इस राशि का स्वामी बुध है, इस राशि के तीन द्रेष्काणों के स्वामी बुध,शनि और शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण,चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते है। उत्तराफ़ाल्गुनी के दूसरे चरण के स्वामी सूर्य और शनि है, जो जातक को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के प्रति अधिक महत्वाकांक्षा पैदा करते है, तीसरे चरण के स्वामी भी उपरोक्त होने के कारण दोनो ग्रहों के प्रभाव से घर और बाहर के बंटवारे को जातक के मन में उत्पन्न करती है, चौथा चरण भावना की तरफ़ ले जाता है और जातक दिमाग की अपेक्षा ह्रदय से काम लेना चालू कर देता है। इस राशि के लोग संकोची और शर्मीले प्रभाव के साथ झिझकने वाले देखे जाते है। मकान, जमीन.और सेवाओं वाले कार्य ही इनकी समझ में अधिक आते हैं, कर्जा, दुश्मनी और बीमारी के प्रति इनका लगाव और सेवायें देखने को मिलती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में ठन्ड लगना और पाचन प्रणाली के ठीक न रहने के कारण आंतों में घाव हो जाना, आदि बीमारियाँ इस प्रकार के जातकों में मिलती है।

कन्या
कन्या यानि कुंवारी लड़की
कन्या यानि कुंवारी लड़की
मेष वृषभ मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला
वृश्चिक धनु मकर कुम्भमीन
राशि चिह्न कुवांरी कन्या
अवधि (ट्रॉपिकल, पश्चिमी) 22 अगस्त – 22 सितम्बर (2024, यूटीसी)
नक्षत्र कन्या तारामंडल
राशि तत्त्व पृथ्वी
राशि गुण म्युटेबल
स्वामी बुध
डेट्रिमेण्ट बृहस्पति
एग्ज़ाल्टेशन बुध
फ़ॉल देवता
वर्ण वैश्य[1]
खगोलशास्त्र प्रवेशद्वार खगोलशास्त्र परियोजना
कन्या राशि

देवी दुर्गा का एक नाम।

कन्या राशि

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यह राशि चक्र की छठी राशि है।दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फ़ूल की डाली लिये कन्या है। इसका विस्तार राशि चक्र के १५० अंशों से १८० अंश तक है। इस राशि का स्वामी बुध है, इस राशि के तीन द्रेष्काणों के स्वामी बुध,शनि और शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण,चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते है। इन चरणों के स्वामीऔर विस्तार इस प्रकार से है।

नक्षत्र चरण और फ़ल

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उत्तराफ़ाल्गुनी के दूसरे चरण के स्वामी सूर्य और शनि है। जो जातक को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के प्रति अधिक महत्वाकांक्षा पैदा करते है, तीसरे चरण के स्वामी भी उपरोक्त होने के कारण दोनो ग्रहों के प्रभाव से घर और बाहर के बंटवारे को जातक के मन में उत्पन्न करती है। चौथा चरणभावना की तरफ़ ले जाता है और जातक दिमाग की अपेक्षा ह्रदय से काम लेना चालू कर देता है।

सकोची और शर्मीले प्रभाव के साथ झिझकने वाले जातक कन्या राशि के ही देखे जाते है। मगर अपनी भावनाओं पर ज्यादा देर नियंत्रण नही रख पाते।

आर्थिक फ़ल

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मकान, जमीन.और सेवाओं वाले कार्य ही इनकी समझ में अधिक आते हैं,कर्जा,दुश्मनी और बीमारी के प्रति इनका लगाव और सेवायें देखने को मिलती है।

स्वास्थ्य

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फ़ेफ़डों में ठन्ड लगना और पाचन प्रणाली के ठीक न रहने के कारण आंतों में घाव हो जाना, आदि बीमारिया इस प्रकार के जातकों में मिलती है।

  1. "कुंडली में वर्ण कूट मिलान क्या होता है।". दैनिक एस्ट्रोलोजी.