काली
काली, कालिका या महाकाली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वे मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली आदिशक्ति दुर्गा माता का काला, विकराल और भयप्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिये हुई थी। उनको विशेषतः बंगाल, ओडिशा और असम में पूजा जाता है। काली को शाक्त परम्परा की दस महाविद्याओं में से एक भी माना जाता है [1] वैष्णो देवी में दाईं पिंडी माता महाकाली की ही है।
काली | |
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प्रलय, निर्माण, विनाश और शक्ति की देवी | |
![]() भगवान शिव पर पैर रखे खड़ी देवी महाकाली | |
अन्य नाम | कालिका, लक्ष्मीकाली , शिवशक्ति, भैरवी , पार्वती, श्यामा, श्यामाम्बिका ,महाकाली , भद्रकाली , दक्षिणाकाली आदि |
संबंध | महाविद्या, शक्ति, दुर्गा, महाकाली, पार्वती |
निवासस्थान | शमशान, मानिद्वीप |
मंत्र | ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते |
अस्त्र | खप्पर, खडग, मुण्ड और वर मुद्रा |
युद्ध | रक्तबीज वध, नरकासुर वध, अन्धक वध |
दिवस | शनिवार एवं रविवार |
जीवनसाथी | महाकाल |
त्यौहार | काली पूज, नवरात्री, काली चौदस |
'काली' की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवीय प्रकृति के हैं, जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अतः माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु और पूजनीय हैं। इनको महाकाली भी कहते हैं।

काली पूजा अथवा श्यामा पूजा मुख्यतः बंगाल, त्रिपुरा, ओड़िशा, असम में प्रचलित एक हिंदू पर्व है। देवी काली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। हालाँकि इस दिन पूरे भारत में लक्ष्मी पूजा मनाई जाती है, लेकिन देवी के बंगाली, असमिया और ओडिया भक्त इस दिन काली पूजा करते हैं। इसके अलावा, बंगाली कैलेंडर के माघ महीने की कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर रतन्ति काली पूजा और ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि पर फलहारिणी काली पूजा भी काफी लोकप्रिय हैं। बंगाली कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने की अमावस्या के दिन श्रीरामकृष्ण परमहंस देव ने देवी षोडशी के रूप में मां सरदादेवी की पूजा की थी। वह दिन था फल्हारिणी काली पूजा। इस संदर्भ में यह बात ध्यान देने योग्य है कि आज भी रामकृष्ण मठ एवं मिशन में इस पूजा को षोडशी पूजा के नाम से जाना जाता है। षोडशी पूजा का विवरण स्वामी सारदानंद द्वारा लिखित 'श्री श्री रामकृष्ण लीलाप्रसंग' और ब्रह्मचारी अक्षय चैतन्य द्वारा लिखित 'श्री श्री सारदादेवी' पुस्तकों में मिलता है। आज भी बेलूर मठ में 'ठाकुर' के गर्भगृह में 'ठाकुर' के बाईं ओर माता का चित्र रखकर पूजा की जाती है। इस आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण घटना की स्मृति में, यह फल्हारिणी काली पूजा कई स्थानों पर बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। योग- भक्ति पथ के सिद्ध संत भादुड़ी महाशय (Bhaduri Mahasaya) यानी महर्षि नागेंद्रनाथ को दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।[2] इसलिए, यह फलहारिणी काली पूजा कोलकाता के राजा राममोहन राय रोड पर श्रीश्रीनागेंद्र मठ और नागेंद्र मिशन में भी गहन सम्मान और भक्ति के साथ आयोजित की जाती है, यह वह स्थान है जहां महर्षि नागेंद्रनाथ ने अपना अंतिम जीवन बिताया था।
अन्य अर्थ
संपादित करेंबांग्ला में काली का एक और अर्थ होता है - स्याही या रोशनाई।
मुख्य मन्त्र
संपादित करें- सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति-समन्विते।
- भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥ -- (दुर्गा सप्तशती)
रणचण्डी
संपादित करेंदेवराज इन्द्र ने एक बार नमुचि को मार डाला। रुष्ट होकर शुम्भ-निशुम्भ ने उनसे इन्द्रासन छीन लिया और शासन करने लगे। इसी बीच पार्वती ने महिषासुर को मारा और ये दोनों उनसे प्रतिशोध लेने को उद्यत हुए। इन्होंने पार्वती के सामने शर्त रखी कि वे या तो इनमें किसी एक से विवाह करें या मरने को तैयार हो जाऐं। पार्वती ने कहा कि युद्ध में मुझे जो भी परास्त कर देगा, उसी से मैं विवाह कर लूँगी। इस पर दोनों से युद्ध हुआ और दोनों मारे गए।
विभिन्न भारतीय धर्मों में काली
संपादित करेंसनातन हिन्दू धर्म के शाक्त सम्प्रदाय के अलावा तांत्रिक बौद्ध और अन्य सम्प्रदायों में भी काली की पूजा होती है। तांत्रिक बौद्ध धर्म में भयानक रूप वाली योगिनियों , डाकिनियों जैसे वज्रयोगिनी और क्रोधकाली की पूजा होती है।
तिब्बत में क्रोधकाली (अन्य नाम: क्रोदिकाली, कालिका, क्रोधेश्वरी, कृष्णा क्रोधिनी आदि) को 'त्रोमा नग्मो' (पुरानी तिब्बती में : ཁྲོ་མ་ནག་མོ་, Wylie: khro ma nag mo) कहते हैं।
सिखों के दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह ने चण्डी दी वार नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी।
यूरोप के देशों में सन्त सारा (या, सरला काली) का जो तीर्थयात्रा होती है वह प्रथा सम्भवतः मध्ययुग में रोमा लोग के साथ भारत से यूरोप गयी थी।
पश्चिमी जगत में कुछ लोग काली के आधुनिक रूप में पूजते हैं। ये लोग मुख्यतः नारीवादी हैं या 'न्यू एज' के अनुयायी। किन्तु वे काली को जिस रूप में मानते हैं वह सनातन हिन्दू मान्यता से बिलकुल मेल नहीं खाता।
शाक्त पदावली और श्यामा संगीत
संपादित करेंबंगाली भाषा में देवी काली के प्रति श्रद्धा और भक्ति पर केंद्रित अनगिनत गीतों की रचना की गई है। संगीत की इस शैली को शाक्त पदावली के नाम से जाना जाता है। इस शैली की कविता के दो प्रसिद्ध बंगाली कवि रामप्रसाद सेन और कमलाकांत भट्टाचार्य हैं। रामप्रसाद सेन और कमलाकांत भट्टाचार्य दोनों ही माँ काली के निपुण भक्त थे। इन दोनों संतों के विषय में अनगिनत चमत्कारिक कहानियाँ प्रचलित हैं। हालाँकि, आम तौर पर माँ काली को समर्पित सभी संगीत को बंगाली में श्यामा संगीत कहा जाता है। इस बंगाली श्यामा संगीत के दो प्रसिद्ध गायक पन्नालाल भट्टाचार्य और धनञ्जय भट्टाचार्य हैं। पन्नालाल भट्टाचार्य के बड़े भाई प्रफुल्ल भट्टाचार्य और माझला भाई धनञ्जय भट्टाचार्य संत कलाकार पन्नालाल भट्टाचार्य के पहले संगीत शिक्षक थे। पन्नालाल में भक्तिरस पाकर धनञ्जय भट्टाचार्य भक्ति गीत गाना बंद कर दिया। हालाँकि, पन्नालाल भट्टाचार्य की मृत्यु के बाद, उन्होंने कई भक्ति गीत गाए।[3]
पन्नालाल भट्टाचार्य ने श्यामा संगीत गाकर भक्तिरस की गहराइयों में प्रवेश किया था। बाली बारेंद्र पारा स्थित अपने घर में स्थापित मां काली की प्रतिमा में वह प्रतिदिन पूजा करते थे। लेकिन फिर भी पन्नालाल अपने आप से, अपने संगीत से कभी संतुष्ट नहीं हो सके।इसलिए वह बच्चों की तरह रोते थे और मां काली को पुकारते थे। श्यामा संगीत गाते समय भी कई बार उनका पूरा शरीर कांप उठता था, पसीना निकल आता था और आंखों से लगातार आंसू बहते रहते थे।पन्नालाल भट्टाचार्य की इस स्थिति का वर्णन करते हुए उनके बड़े भाई संगीतकार प्रफुल्ल भट्टाचार्य की बेटी शिवानी भट्टाचार्य बंद्योपाध्याय कहती हैं:
"जब छोटा काका मुझे संगीत सिखाते थे तो मैं ऐसे ही उठ जाती थी। मैं खेलने जाता था। छोटा काका को पता भी नहीं चलता था।"
पन्नालाल भट्टाचार्य को जब भी समय मिलता था तो वे विभिन्न श्मशानों में जाते थे। वहां वह देर रात तक मां काली की पूजा करते थे। देवी के दर्शन न कर पाने का असंतोष उन्हें अपनी मृत्यु तक बना रहा।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंविकिमीडिया कॉमन्स पर काली से सम्बन्धित मीडिया है। |
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Pravrajika Vedantaprana, Saptahik Bartaman, Volume 28, Issue 23, Bartaman Private Ltd., 6, JBS Haldane Avenue, 700 105 (ed. 10 October 2015). p.16
- ↑ Sen Shastri, Prof. Tripurasankar (2020). The Levitating Saint. Kolkata, W.B, India: Nagendra Mission. p. 13.
- ↑ "যদি ভুলে যাও মোরে…".