छिङ राजवंश (चीनी: 清朝, छिङ छाउ) चीन का आख़री राजवंश था, जिसने चीन पर सन् १६४४ से १९१२ तक राज किया। छिङ वंश के राजा वास्तव में हान चीनी जाति के नहीं थे, बल्कि उनसे बिलकुल भिन्न मांचु जाति के थे जिन्होंने इस से पहले आए मिङ राजवंश को सत्ता से निकालकर चीन के सिंहासन पर क़ब्ज़ा कर लिया। छिङ चीन का आख़री राजवंश था और इसके बाद चीन गणतांत्रिक प्रणाली की ओर चला गया।[3]

महान छिंङ
大清
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1644–1912 चीन गणराज्य|
ध्वज (1889–1912) शाही छाप
राष्ट्रगान
《鞏金甌》
ठोस सोने का प्याला
छिङ राजवंश का मानचित्र में स्थान
किंग साम्राज्य, 1765
राजधानी बीजिंग (शुन्तिअन प्रान्त)
भाषाएँ मैंडरिन, मांचु, मंगोलियाई, तिब्बती, तुर्की (उइगुर),[1] कई क्षेत्रीय भाषाओं और अन्य चीनी भाषाओं
धार्मिक समूह स्वर्ग पूजा, बुद्ध धर्म, चीनी लोक धर्म, कन्फ्यूशीवाद, ताओ धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, शैमेनिज्म, अन्य
शासन साम्राज्य
सम्राट
 -  1644–1661 शुन्जी (प्रथम)
 -  1908–1912 पुई (अंतिम)
राज-प्रतिनिधि
 -  1908–12 ज़ेईफेंग
प्रधान मंत्री
 -  1911 इकुआंग
 -  1911–12 युआन शिकाई
इतिहास
 -  महान किंग की स्थापना 15 मई 1636
 -  किंग की मिंग साम्राज्य पर विजय 1644
 -  प्रथम अफीम युद्ध 1839–42
 -  दूसरा अफ़ीम युद्ध 1856–60
 -  चीन-जापानी युद्ध 1 अगस्त 1894 – 17 अप्रैल 1895
 -  सिनहाई क्रांति 10 अक्टूबर 1911
 -  पुइई का अभिज्ञान 12 फरवरी 1912
क्षेत्रफल
 -  1790[2] 1,31,00,000 किमी ² (50,57,938 वर्ग मील)
 -  1880[2] 1,15,00,000 किमी ² (44,40,175 वर्ग मील)
जनसंख्या
 -  1740 est. 14,00,00,000 
 -  1776 est. 26,82,38,000 
 -  1790 est. 30,10,00,000 
मुद्रा नगदी (वेन)

तैल (लीएंग)

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छिङ राजवंश
"छिङ राजवंश" चीनी में (शीर्ष) और मांचू में (नीचे)
चीनी नाम
चीनी 清朝
Great Qing
पारम्परिक चीनी
पारम्परिक चीनी
Manchu name
Manchu ᡩᠠᡳᠴᡳᠩ
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शुरुआत संपादित करें

चिंग राजवंश की स्थापना जुरचेन लोगों के अइसिन गियोरो परिवार ने की थी जो मंचूरिया से थे। उनके सरदार नुरहाची ने जुरचेन क़बीलों को १६वीं शताब्दी में संगठित किया। सन् १६३५ में उसके पुत्र होन्ग ताईजी ने ऐलान किया की अब जुरचेन एक संगठित मान्छु राष्ट्र थे। इन मान्छुओं ने मिंग राजवंश को दक्षिण मंचूरिया के लियाओनिंग क्षेत्र से बाहर धकेलना शुरू कर दिया। १६४४ में मिंग राजधानी बीजिंग पर विद्रोही किसानों ने धावा बोला और उसपर क़ब्ज़ा कर के तोड़-फोड़ करी। इन विद्रोहियों का नेतृत्व ली ज़िचेंग नाम का पूर्व मिंग सेवक कर रहा था, जिसने अपने नए राजवंश की घोषणा कर दी जिसे उसने 'शुन राजवंश' का नाम दिया। जब बीजिंग पर विद्रोही हावी हुए तो अंतिम मिंग सम्राट ने, जिसे 'चोंगझेन सम्राट' (यानि 'शुभ और आदरणीय सम्राट') की उपाधि मिली हुई थी, आत्महत्या कर ली। फिर ली ज़िचेंग ने मिंगों के सेनापति, वू सांगुइ, के ख़िलाफ़ कार्यवाही की। उस सेनापति ने अपने बचाव के लिए मान्छुओं से संधि कर ली और उन्हें बीजिंग में घुसने का मौक़ा मिल गया। राजकुमार दोरगोन के नेतृत्व में उन्होंने बीजिंग में दाख़िल होकर ली ज़िचेंग के नए शुन राजवंश का ख़ात्मा कर डाला। अब चीन पर मान्छुओं का राज शुरू हो गया और १६८३ तक वे पूरे चीन पर नियंत्रण पा चुके थे।

राजकाल संपादित करें

वैसे तो चिंग सम्राट चीनियों से अलग मान्छु जाति के थे, लेकिन समय के साथ-साथ वे ज़रा-बहुत चीनी संस्कृति अपनाने लगे। चीन में सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए इम्तिहान हुआ करते थे और चिंग राजवंश ने इन्हें जारी रखा। मान्छुओं के साथ-साथ चीनियों को भी सरकारी सेवा में स्वीकार किया गया। १८वीं सदी तक वे चीन की सीमाओं को इतना फैला चुके थे की चीन का अकार न उस से पहले कभी इतना बड़ा था और न ही उसके बाद कभी हुआ।

पतन संपादित करें

समय के साथ-साथ चिंग व्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ गया और यूरोप के कई देश एवं जापान चीन में हस्तक्षेप करने लगे। उन्होंने ज़बरदस्ती बहुत से चीनी बंदरगाहों पर अपना नियंत्रण कर लिया। जापान १८६७-८ के मेइजी पुनर्स्थापन के बाद बहुत तेज़ी से आधुनिकरण में लगा हुआ था और १८९४-१८९५ के प्रथम चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित कर दिया। १९११-१९१२ में क्रान्ति हुई और चिंग राजवंश सत्ता से हट गया। औपचारिक रूप से चीन एक गणतंत्र बन गया हालांकि फ़ौज के सेनापतियों में आपसी झड़पें चलती रहीं। अंतिम चिंग सम्राट पूयी को कुछ ही दिनों के लिए बीजिंग में सम्राट के रूप में जुलाई १९१७ में बहाल किया गया लेकिन फिर निकाल दिया गया। १९३२ से १९४५ में जापानियों का मंचूरिया पर क़ब्ज़ा रहा और उन्होंने उसे एक मंचूकूओ नामक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में व्यवस्थित किया (जिसपर उनका नियंत्रण था)। उन्होंने इसका सम्राट भी पूयी को बनाया। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध में १९४५ में जापान की हार के बाद चिंग राजवंश हमेशा के लिया सत्ता से हट गया।[4][5]

इन्हें भी देखें संपादित करें


सन्दर्भ संपादित करें

  1. Elliott (2001), पृ॰प॰ 290–291.
  2. Tan, Qixiang (October 1, 1982). Historical Atlas of China. 8. Beijing: China Map Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-7-5031-1844-9.
  3. China's last empire: the great Qing, William T. Rowe, Harvard University Press, 2009, ISBN 978-0-674-03612-3
  4. The Cambridge History of China, Volume 9 Archived 2014-01-03 at the वेबैक मशीन, Willard J. Peterson, Cambridge University Press, 2002, ISBN 978-0-521-24334-6
  5. The Last Manchu: The Autobiography of Henry Pu Yi, Last Emperor of China, Henry Pu Yi, Paul Kramer, Skyhorse Publishing Inc., 2010, ISBN 978-1-60239-732-3