ग्वालियर स्टार ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा ब्रिटिश सेना और अंग्रेजों के नेतृत्व वाली बंगाल सेना द्वारा प्रस्तुत सैन्य अभियान पदक है, जिसने 1843 में ग्वालियर अभियान में भाग लिया था। ग्वालियर अभियान भारत के ग्वालियर पर क़ब्ज़ा करने के लिए अंग्रेज़ों ने मराठा सेना से दिसंबर 1843 में लड़ा था।

ग्वालियर स्टार

ग्वालियर स्टार: महाराजपुर और पुन्नियार की लड़ाईयों के लिए दिए गए दो अलग संस्करण।
ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा पुरस्कृत
प्रकार सैन्य अभियान पदक
पात्रता सैन्य अधिकारी और अन्य श्रेणियाँ
देने का कारण महाराजपुर और पुन्नियार की लड़ाइयाँ
अभियान ग्वालियर अभियान
अकवार कोई नहीं

इतिहास संपादित करें

मराठा साम्राज्य का मध्य और उत्तरी भारत के अधिकतर भाग पर नियंत्रण हुआ करता था, लेकिन 1818 में अंग्रेजों ने धीरे-धीरे भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश नियंत्रण जमाकर उन्हें विस्थापित कर दिया। ग्वालियर के महाराजा की मृत्यु हो गई थी और एक छोटे बच्चे को ब्रिटिश समर्थन के साथ महाराजा के रूप में नियुक्त किया गया था। हालाँकि, ग्वालियर में मराठों ने अफ़ग़ानिस्तान में असफल ब्रिटिश अभियान को आज़ादी हासिल करने और युवा महाराजा को हटाने के एक अवसर के रूप में देखा। ग्वालियर में मराठों की आजादी के लिए प्रयास करने की सम्भावना को भाँपकर लॉर्ड एलेनबोरो ने आगरा के पास अभ्यास सेना का गठन किया। बातचीत के प्रयास विफल होने के बाद, अंग्रेज़ों ने दो-तरफ़ा हमला किया। अंग्रेज (जनरल सर ह्यू गफ की कमान में) और मराठा सेना (महाराजा सिंधिया की कमान में) एक ही दिन (29 दिसंबर 1843) में दो लड़ाइयों में भिड़ गए।[1]

विवरण संपादित करें

इस पदक का व्यास 50 मिलीमीटर (2.0 इंच) है और इसका आकार पर छः कोने वाले सितारे का है। ये छः कोने ग्वालियर अभियान के दौरान ज़ब्त की गई बंदूकों को दर्शाते हैं। स्टार के केंद्र में एक चाँदी की डिस्क है, जिसपर दिनांक 29 दिसंबर, 1843, और ग्वालियर अभियान की दो लड़ाइयों में से एक का नाम (महाराजपुर या पुन्नियार) अंकित है। पदक का पिछला हिस्सा प्लेन है और इसपर उस सैनिक के नाम और रेजिमेंट हैं जिसे पदक प्रदान किया गया था।[1]

इन्हें कलकत्ता की टकसाल में निर्मित किया गया था। यह पदक ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा मूल रूप से छाती पर लगाए जाने के लिए पीछे की तरफ़ एक क्लिप के साथ एक स्टार के रूप में प्रस्तुत किया गया था। अंततः इनमें से अधिकांश को अलग-अलग डिज़ाइन की रिंग या बार के साथ फिट किया गया, ताकि उन्हें एक रिबन द्वारा लटकाया किया जा सके और अन्य पदकों के साथ पहना जा सके। इस्तेमाल किया गया रिबन कई ईस्ट इंडिया कंपनी के पदक पर इस्तेमाल किया जाने वाला सामान्य रिबन था, जो कि लाल-सफेद-पीले-सफेद-नीले ढाल वाला रिबन था, जैसे कि कंधार, ग़ज़नी और काबुल मेडल में प्रयोग में लाया गया था। [1]

महाराजपुर के लिए लेडीज़ स्टार संपादित करें

भारत के अंग्रेज़ गवर्नर जनरल लॉर्ड एलेनबोरो ने सेना के अधिकारियों की उन चार पत्नियों में से प्रत्येक को एक विशेष स्वर्ण सितारा भेंट किया, जिन्होंने न चाहते हुए भी घटनाक्रम के चलते खुद को महाराजपुर के युद्ध में उपस्थित पाया।

हालांकि स्टार का डिज़ाइन व्यापक रूप से अभियान के पदक के ऊपर किया गया है, पर इसकी पिछली तरफ़ बीच में रानी विक्टोरिया का चेहरा, लड़ाई का नाम और तारीख अंकित हैं। स्टार को एक सोने और तामचीनी की नकल रिबन और बकसुआ से लटकाया जाता है। लेडी गफ ने अपना चित्र लेडीज स्टार पहने चित्रित किया था। [2]

संदर्भ संपादित करें

  1. John W. Mussell, editor. Medal Yearbook 2015. पृ॰ 174. Published Token Publishing Limited, Honiton, Devon. 2015.
  2. "Lady Gough wearing Maharajpoor Star". National Army Museum. मूल से 28 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अक्तूबर 2019.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें