राजस्थान को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे राजस्थान प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला सवाईमाधोपुर राजस्थान प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। देवी,कांगस गौत्र की कुलदेवी हैं,यह शिव मंदिर शिवाड़ से 4 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान कि है। चामुण्डा देवी मंदिर बनास नदी से 3 Km पर बसा हुआ है। पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है। यहां कि प्राकृतिक सौंदर्य लोगो को अपनी और आकर्षित करता है। चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।

श्री चामुंडा देवी मंदिर, सारसोप, सवाईमाधोपुर

देवी की उत्पत्ति कथा

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दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों ने काफी अत्याचार किया। देवताओं ने विचार किया और वह भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी कि अराधना करने को कहा। देवताओं ने पूछा वो देवी कौन है जो कि हमार कष्टो का निवारण करेगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में पर्वितित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

पौराणिक कथा के अनुसार

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चामुण्‍डा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी,चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।

नाम की कहानी

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माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात माता दुर्गा ने दो रूप धारण किये एक माता महाकाली का और दूसरा माता अम्बे का। माता महाकाली जग में विचरने लगी और माता अम्बे हिमालय में रहने लगी। तभी वहाँ चण्ड और मुण्ड आए वहाँ। देखकर देवी अम्बे को मोहित हुए और कहा दैत्यराज से आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ ने अपना एक दूत माता अम्बे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ तीनो लोको के राजा है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता अम्बे के पास गया और शुमभ द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ बलशाली है परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ को बताई तो वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। तभी उसने द्रुमलोचन सेनापति को सेना लेकर माता के पास उन्हे लाने भेजा। जब उसके सेनापति ने माता को कहा कि हमारे साथ चलो हमारे स्वामी के पास नहीं तो तुम्हारे गर्व का नाश कर दूंगा। माता के बिना युद्ध किये जाने से मना किया तो उन्होंने मैया पर कई अस्त्र शस्त्र बरसाए पर माता को कोई हानि नहीं पहुंचा सके मैया ने भी बदले कई तीर बरसाए सेना पर और उनके सिंह ने भी कई असुरों का संहार कर दिया। अपनी सेना का यूँ संहार का सुनकर शुम्भ को क्रोध आया और चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा,रक्तबीज के साथ और कहा कि उसके सिंह को मारकर माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड और मुण्ड माता के पास गये और उन्हे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना महाकाली का रूप धारण कर लिया और असुरो के शीश काटकर अपनी मुण्डो की माला में परोए और सभी असुरी सेना के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर जब माता महाकाली माता अम्बे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से चामुंडा नाम तेरा हुआ विख्यात और घर घर में होवेगा तेरे नाम का जाप। बोलो सच्चिया ज्योतिया वाली माता तेरी सदा ही जय साचे दरबार की जय।

मुख्य आकर्षण

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चामुण्डा देवी मंदिर धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ कि दूरी पर स्थित है। पर्यटक धर्मशाला से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठा कर चामुण्डा देवी मंदिर पहुंचते हैं। प्रकृति ने अपनी सुंदरता यहां पर भरपूर मात्रा में लुटाई है। कलकल करते झरने और तेज वेग से बहती नदियां पर्यटकों के जहन में अमिट छाप छोड़ती है। मंदिर के बीच वाला भाग ध्यान मुद्रा के लिए उपयुक्त स्थान है। यहां पर ध्यान लगाने पर श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति होती है। पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदिया पर्यटको को मोहित कर देती है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी जादूई नगरी में आ गये हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु यात्रा मार्ग में अपने पूर्वजो के लिए प्रार्थना करते हैं कि उन्हें आध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति हो। इसके लिए वह काफी सारे अनुष्ठान करते हैं। श्रद्धालु यहाँ पर स्थित बाण गंगा में स्नान करते हैं। बाण गंगा में स्‍नान करना शुभ और मंगलमय माना जाता है। मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से शरीर पवित्र हो जाता है। श्रद्धालु स्‍नान करते समय भगवान शंकर की आराधना करते हैं। मंदिर के पास ही में एक कुण्ड है जिसमें स्‍नान करने के पश्चात ही श्रद्धालु देवी की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। मंदिर के गर्भ-गृह कि प्रमुख प्रतिमा तक सभी आने वाले श्रद्धालुओं की पहुंच नहीं है। मुख्‍य प्रतिमा को ढक कर रखा गया है। ताकि‍ उसकी पवित्रता में कमी न आ सके। मंदिर के पीछे की ओर एक पवित्र गुफा है जिसके अंदर भगवान शंकर का प्रतीक प्राकृतिक शिवलिंग है। इन सभी प्रमुख आकर्षक चीजो के अलावा मंदिर के पास ही में विभिन्न देवी-देवताओं कि अद़भूत आकृतियां है। मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में हनुमान जी और भैरो नाथ की प्रतिमा है।

अन्य आकर्षण

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चामुण्डा देवी मंदिर के पीछे की ओर ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुस्तकालय और संस्कृत कॉलेज है। चिकित्सालय के कर्मचारियों द्वारा आये हुए श्रद्धालुओं को चिकित्सा संबंधि सामग्री मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित पुस्तकालय में पौराणिक पुस्तकों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध है। यह पुस्‍तकें उचित मूल्य पर क्रय की जा सकती है। यहां पर स्थित सांस्कृतिक कॉलेज को मंदिर की संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहां वेद पुराणो कि मुफ्त कक्षा चलाई जाती है।

प्रमुख पर्व

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चामुण्डा देवी में वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक रात्रि को जगरण किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष हवन और पूजा कि जाती है। माता के भक्त माता की एक झलक पाने के लिए घण्टों कतार में खडें रहते हैं।

यात्री पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हैं। यात्रा मार्ग में अनेंक मनमोहक दृश्य है जो पर्यटको के जेहन में बस जाते हैं। हरी-हरी वादियां और कल-कल कर बहते झरने पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटक सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

वायु मार्ग

चामुण्डा देवी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि यहां से 28 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के बाद में यात्री बस या कार से चामुण्डा देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहाँ से टैक्सी आदि की भी अच्छी सुविधा है। समय-समय पर हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बसे यहाँ से जाती रहती है।

सड़क मार्ग

सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटको के लिए हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग कि बस सेवा है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर उतारती है। चामुण्डा देवी धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ और ज्वालामुखी से 55 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहां से आप अपने निजी वाहनो या किराए के वाहनो से मंदिर तक जा सकते हैं।

रेल मार्ग

पंजाब स्थित पठान कोट से पर्यटक हिमाचल के लिए चलने वाली छोटी रेल गाड़ी के द्वारा पहाड़ी सौन्दर्य और संकीर्ण रास्तो का लुफ्त उठाते हुए मराण्डा तक पहुंच सकते हैं जो कि पालमपुर के पास स्थित है। यहां से चामुण्डा देवी मंदिर कि दूरी 30 कि॰मी॰ है। पठान कोट सभी प्रमुख राज्यो से रेल से जुड़ा हुआ है।

सर्दियों के समय में यहाँ पर काफी अच्छी खासी ठंड पडती है। पारा शून्य डिग्री से नीचे पहुंच जाता है। यदि पर्यटक सर्दियों के समय में यहां पर आये तो विशेष तौर पर गर्म कपड़ अवश्य लेकर आये। अप्रैल से अक्टूबर तक यहाँ पर दिन का मौसम गर्म रहता है। लेकिन रात के समय में हल्‍का सा ठंडा हो जाता है। यहां पर आने के लिए उचित समय जनवरी से मार्च तक का है।